बहादुर शाह ज़फ़र की कविता में गुलामी, असहायता और टूटे हुए सपनों का मर्मस्पर्शी चित्रण | कक्षा 12 हिन्दी (आरोह भाग 2 काव्य - खण्ड)
1857 की क्रांति की विफलता के बाद निर्वासित ज़फ़र की यह रचना भारत की गुलामी, व्यक्तिगत पीड़ा और ऐतिहासिक यथार्थ को दर्शाती है।
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