मात्रा किसे कहते हैं? हिन्दी स्वरों की मात्राएँ || ऑ ध्वनि, अनुस्वार, अनुनासिक, विसर्ग एवं हलन्त के चिह्न
देवनागरी लिपि के ग्यारह स्वरों में हस्व स्वर - अ, इ, उ, ऋ, दीर्घ स्वर - आ, ई, ऊ, संयुक्त स्वर - ए, ऐ, ओ, औ हैं। व्यन्जनों की बात करे तो 33 व्यन्जनों में स्पर्श व्यन्जन - कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग, पवर्ग, अन्तःस्थ व्यन्जन - य, र, ल, व, एवं ऊष्म व्यन्जन - श, ष, स, ह हैं।
मात्रा किसे कहते हैं?
व्यन्जन के साथ स्वर का मेल होने पर स्वर का जो रूप होता है, उसे मात्रा कहा जाता है। दूसरे शब्दों में स्वर के उच्चारण में लगने वाले समय को मात्रा कहते हैं। स्वरों के मात्रा चिह्न व्यन्जन वर्णों में मिलते हैं।
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स्वरों की मात्राएँ
शब्दों को लिखते समय स्वरों के दो रूपों का प्रयोग किया जाता है। पहले तो अपने मूल रूप में जैसे- अनाज, आम, इमरती, ईमानदार, ऋतु, उल्लेख, ऊर्जा, एक, ऐकिक, ओबामा, औषधि आदि। उक्त शब्दों में 'अ', 'आ', 'इ', 'ई', 'उ', 'ऊ', 'ऋ', 'ए', 'ऐ', 'ओ', 'औ' स्वर अपने मूल रूप में हैं।
दूसरा जब व्यन्जन के साथ स्वर का मेल होता है तब स्वरों का जो रूप होता है, उसे मात्रा कहते हैं। जैसे- कार्य, मिनट, तीन, दुकान, धूप, गृह, बेर, सैर, ठोस, नौकर आदि। उक्त शब्दों में 'क', 'म', 'त', 'द', 'ध', 'ग' 'ब', 'स' 'ठ', 'न' के साथ क्रमशः ा, ि, ी, ु, ू, ृ े, ै, ो, ौ स्वरों के रूप लगे हैं। ये स्वरों के रूप ही मात्राएँ हैं।
व्यन्जनों में मात्राएँ लगाने का नियम
दीर्घ स्वरों की मात्राएँ आ (ा), ई (ी ), और संयुक्त स्वरों की मात्राएँ ओ (ो ), और औ ( ौ) व्यन्जन के बाद जोड़ी जाती हैं। जैसे- का, की, को, कौ। हृस्व स्वर इ ( ि) की मात्रा व्यन्जन के पहले लगाई जाती है। संयुक्त स्वर ए (े) और ऐ (ै) की मात्राएँ व्यन्जन के ऊपर लगाई जाती हैं तथा हृस्व स्वर ऋ (ृ), उ (ु) और दीर्घ स्वर ऊ (ू) की मात्राएँ नीचे लगाई जाती हैं।
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अन्य वर्णों के मात्रा चिह्न
अयोगवाह अनुस्वार (ं) चिह्न - अनुस्वार का चिह्न (ं) इस तरह का होता है। यह शिरोरेखा पर बिंदु (ं) है। यह पञ्चमाक्षर के बदले प्रयुक्त किया जाता है।
जैसे - कङ्कण = कंकण, चञ्चल = चंचल, टण्डन = टंडन, शान्त = शांत, शम्भु = शंभु पञ्चमाक्षरों का उच्चारण नाक से होता है, इसीलिए पञ्चमाक्षरों को 'नासिक्य ध्वनि' भी कहते हैं।
अयोगवाह विसर्ग (ः) चिह्न - विसर्ग का चिह्न (ः) इस तरह का होता है। यह ऊपर-नीचे दो बिंदु हैं। यह कण्ठ से बोला जाता है। इसकी ध्वनि ह् के समान सुनाई पड़ती है।
जैसे - अतः =अतह्, नमः = नमह्, पुनः = पुनह्, प्रातः = प्रातह् आदि।
अनुनासिक (ँ) चिह्न - चन्द्रबिंदु (ँ) वर्ण नहीं है। यह अनुनासिक स्वर का चिह्न है। यह स्वरों के ऊपर रहता है और स्वरों के साथ उच्चरित होता है। इसका उच्चारण मुख और नाक, दोनों से होता है। जैसे - हँस, चाँद, कहीं, सिंचाई, पहुँच, पूँछ, देंगे, जायें, पुस्तकें आदि।
ऑ ध्वनि (ॅ) चिह्न - हिन्दी भाषा में 11 स्वरों के अतिरिक्त 'ऑ ध्वनि' का भी प्रयोग होता है जिसका चिन्ह (ॅ) इस प्रकार का है। अंग्रेजी भाषा के हॉल, डॉक्टर, बॉल, कॉल, कॉलेज, ऑफिस आदि शब्दों में प्रयोग होती है। यह ध्वनि 'आ' एवं 'ओ' ध्वनियों की मध्यवर्ती ध्वनि है। अंग्रेजी के कुछ गिने-चुने शब्दों में ही इसका प्रयोग होता है। बोलचाल में इसका उच्चारण 'आ' की भाँति ही होता है जैसे डॉक्टर, कॉलेज आदि।
हलन्त या हल (्) का चिह्न - संस्कृत में व्यन्जन को हल कहते है। उपर्युक्त सभी व्यंजनों के नीचे एक छोटी तिरछी लकीर खिंची है, उसे ही हिन्दी में हलन्त कहते हैं। हल लगे व्यन्जन अर्थात् स्वर रहित व्यन्जन ही शुद्ध व्यन्जन है। ऐसे व्यन्जन आधा व्यन्जन कहलाते है।
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मात्राओं से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य
(i) 'अ' वर्ण स्वर की कोई मात्रा नहीं होती। सभी व्यन्जन 'अ' स्वर को मिलाकर ही लिखे एवं बोले जाते हैं।
जैसे - क् + अ = क
ख् + अ = ख
ग् + अ = ग
त् + अ = त आदि।
वर्णों का उच्चारण किसी स्वर के साथ ही होता है, 'अ' स्वर की सहायता से 'क', 'ख', 'ग', 'घ', 'च' आदि व्यन्जनों का उच्चारण होता है। मूल रूप से व्यन्जन वर्णों की मूल संख्या 33 है।
क् ख् ग् घ् ङ्
च् छ् ज् झ् ञ्
ट् ठ् ड् द् ण्
त् थ् द् ध् न्
प् फ् ब् भ् म्
श् प् स् ह्
य् र् ल् व्
(ii) उ, ऊ की मात्राएँ 'र' के साथ बीच में लिखी जाती हैं।
जैसे - रुपया, रुमाल, रूप, रुचि, रूद्र आदि।
(iii) 'श' के साथ 'ऋ' की मात्रा लगने पर भिन्न रूप बनता है।
जैसे - श् + ऋ = श्रृ
(श्रृंगार, श्रृंखला आदि)
(iv) 'ह्' के साथ 'ऋ' (ृ) की मात्रा लगने पर यह रूप बनता है। ह् + ॠ = हृ
जैसे - हृदय, हृषीकेश।
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R F Temre
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