ध्वनि का अर्थ, परिभाषा, लक्षण, महत्व || ध्वनि शिक्षण के उद्देश्य || भाषायी ध्वनियाँ
पूर्व के लेखों में हमने जाना की 'भाषा का आदि इतिहास' क्या था? भाषा के विभिन्न रूप के साथ-साथ 'मानक भाषा' किसे कहते हैं, यह समझा। इस लेख में 'ध्वनि' के बारे में विस्तृत जानकारी पढ़ेंगे।
ध्वनि भाषा का सर्व-प्रमुख एवं सशक्त माध्यम है। मौखिक भाषा ध्वनि के बगैर सम्भव नहीं है। इसी मौखिक भाषा में प्रयुक्त ध्वनियों के लिखित रूप हेतु संकेतों (चिह्नों) का निर्माण किया गया। इस तरह देखे तो ध्वनि भाषा की प्रमुख इकाई है। इसे हम भाषा की रीढ़ कह सकते हैं।
हिन्दी भाषा के इतिहास से संबंधित इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।।
1. भाषा का आदि इतिहास - भाषा उत्पत्ति एवं इसका आरंभिक स्वरूप
2. भाषा शब्द की उत्पत्ति, भाषा के रूप - मौखिक, लिखित एवं सांकेतिक
3. भाषा के विभिन्न रूप - बोली, भाषा, विभाषा, उप-भाषा
4. मानक भाषा क्या है? मानक भाषा के तत्व, शैलियाँ एवं विशेषताएँ
ध्वनि का अर्थ
'ध्वनि' बहुत व्यापक अर्थ वाला शब्द है इसके अन्तर्गत सभी प्रकार की ध्वनियों समाहित हैं। जैसे- घण्टा बजाने की ध्वनि, पक्षियों के चहचहाने की ध्वनि, हवा के चलने की ध्वनि, पशुओं की आवाज, मधुमक्खियों की भिनभिनाहट, बर्तनों की आवाज, वाहनों की आवाज, हँसना आदि अनेक प्रकार की ध्वनियाँ हैं। यद्यपि इनका सम्बन्ध भाषा विज्ञान से नहीं है, क्योंकि भाषा विज्ञान की दृष्टि से ये निरर्थक ध्वनियाँ हैं। मनुष्य के मुख से निकलने वाली ध्वनियाँ सार्थक और निरर्थक हो सकती है। ध्वनि भाषा का प्राण है। भाषा सम्प्रेषण में ध्वनि की अहम भूमिका है।
'ध्वनि' शब्द संस्कृत से लिया गया है। संस्कृत में "ध्वनि शब्दे" एक धातु है, जिससे 'ध्वनि शब्द' बना है। वैज्ञानिक दृष्टि से वायु को दबाव और विदलन से वायुमण्डलीय दबाव में आने वाले परिवर्तन या उतार-चढ़ाव का नाम ध्वनि है।
भाषा विज्ञान में ध्वनि का यह व्यापक रूप ग्राहय नहीं है। यही कारण है कि सामान्य ध्वनि से भाषा-ध्वनि हटकर है। भाषा विज्ञान में भाषा ध्वनि या वाक्-स्वत नाम से जाना जाता है।
ध्वनि की परिभाषा
उच्चारण तथा श्रवण की दृष्टि से स्वतन्त्र व्यक्तित्व रखने वाली भाषा में प्रयुक्त ध्वनि की लघुतम इकाई का नाम ही भाषा ध्वनि है।
बाबूराम सक्सेना ने सामान्य भाषा विज्ञान पुस्तक में ध्वनि के परिभाषा लिखते हुए कहा है- "ध्वनि मनुष्य के विकल्प-परिहीन नियत स्थान और निश्चित प्रयत्न द्वारा उत्पादित और श्रोतेन्द्रिय द्वारा अधिकल्प रूप से ग्रहीत स्वर लहरी है।"
भाषा विज्ञान में ध्वनि का सीधा सम्बन्ध भाषायी ध्वनि से है। इस भाषायी ध्वनि को और अधिक स्पष्ट करने के लिए हम कह सकते हैं कि
"मनुष्य अपने भावों और विचारों को प्रकट करने के लिए जिन विभिन्न ध्वनियों का प्रयोग करता है, उन्हें भाषायी ध्वनि कहते हैं।"
हिन्दी व्याकरण के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।।
1. व्याकरण क्या है
2. वर्ण क्या हैं वर्णोंकी संख्या
3. वर्ण और अक्षर में अन्तर
4. स्वर के प्रकार
5. व्यंजनों के प्रकार-अयोगवाह एवं द्विगुण व्यंजन
6. व्यंजनों का वर्गीकरण
7. अंग्रेजी वर्णमाला की सूक्ष्म जानकारी
ध्वनि व्यवस्था
मानव मुख से जो ध्वनियाँ निःसृत (निकलने वाली) होती है, उनमें एक निश्चित नियम, क्रम तथा व्यवस्था होती है। सार्थक ध्वनियों से सार्थक बात संप्रेषित होती है।
भाषा में ध्वनि-विज्ञान प्रत्येक ध्वनि के ठीक-ठीक उच्चारण स्थान और प्रयत्न को बताता है। ठीक उसी स्थान से और उतना ही प्रयत्न करके यह ध्वनि शुद्ध रूप से उच्चारित की जा सकती है। ऐसा करने से अलग-अलग ध्वनियों जैसे- व-ब, श-स, ड-ड़, ढ-ढ़, ज-ज़, ख-ख़ आदि का अंतर स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है, अन्यथा त्रुटिपूर्ण उच्चारण अर्थ का अनर्थ कर देते हैं।
ध्वनि का महत्व
प्राचीन व्याकरणाचार्यों और भाषा वैज्ञानिकों ने ध्वनि उच्चारण को महत्व देते हुए कहा है कि व्याकरण की शिक्षा और उच्चारण की शिक्षा (अर्थात ध्वनि शिक्षा) का ज्ञान प्रत्येक मनुष्य को अवश्य ही होना चाहिए। विद्वानों यह श्लोक कहा है–
श्लोक-
"यद्यपि बहुनाधीये तथापि पाठ पुत्र व्याकरणम्।
स्वजन श्वजनों मा भूत सकलं शकलं सकृचलकृत ।।"
हिन्दी अर्थ - पुत्र, यद्यपि तुम बहुत न पढ़ो, फिरभी व्याकरण पढ़ो। इसलिए कि अर्थ का अनर्थ जैसे- स्वजन (अपने लोग) का श्वजन (कुत्तें) न हो, सकल (सब) का शकल (टुकडें) न हो, और सकृत् (एक बार) का शकृत् (मल) न हो।
इस तरह उक्त श्लोक में ध्वनि का महत्व स्पष्ट करते हुए कहा गया है कि हमें व्याकरण का ज्ञान अवश्य होना चाहिए क्योंकि व्याकरण के ज्ञान से उच्चारण और अर्थ से शब्दों के बीच अंतर को आसानी से समझा जा सके।
हिन्दी व्याकरण के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।।
1. लिपियों की जानकारी
2. शब्द क्या है
3. लोकोक्तियाँ और मुहावरे
4. रस के प्रकार और इसके अंग
5. छंद के प्रकार– मात्रिक छंद, वर्णिक छंद
6. विराम चिह्न और उनके उपयोग
7. अलंकार और इसके प्रकार
राष्ट्रभाषा हिन्दी की समृद्धि करना हम भारत वासियों का दायित्व है। हिन्दी भाषा के स्तरोन्नयन के लिए ध्वनि शिक्षण का अपना महत्व है। हिन्दी भाषा के लेखन और उच्चारण में त्रुटि न हो और हम सब (शिक्षक और छात्र) प्रभावपूर्ण पद्धति से अपने विचारों की अभिव्यक्ति कर सके। इस दृष्टि से अपने विचारों की अभिव्यक्ति कर सके। ध्वनि शिक्षण के निम्नलिखित उद्देश्य हैं।
1. ध्वनि का सही ज्ञान करना।
2. भाषायी ध्वनियों को समझना।
3. वर्ण व्यवस्था का समझना।
4. स्वर एवं व्यन्जनों का भेद जानना।
5. व्यन्जनों का उच्चारण-दिशा बोध।
6. भाषा के शुद्ध उच्चारण एवं लेखन का ज्ञान।
7. वाग्यन्त्र तथा उच्चारण स्थान जानना।
भाषाई ध्वनियों का महत्व
भाषा की संरचना में भाषायी ध्वनियों का विशेष महत्व है, क्योंकि भाषायी ध्वनियाँ (वर्ण, अक्षर, शब्द आदि) ही भाषा की संरचना करती हैं। बिना भाषा के स्वरूप की कल्पना भी नहीं की जा सकती है।
हिन्दी व्याकरण के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।।
1. शब्द क्या है- तत्सम एवं तद्भव शब्द
2. देशज, विदेशी एवं संकर शब्द
3. रूढ़, योगरूढ़ एवं यौगिकशब्द
4. लाक्षणिक एवं व्यंग्यार्थक शब्द
5. एकार्थक शब्द किसे कहते हैं ? इनकी सूची
6. अनेकार्थी शब्द क्या होते हैं उनकी सूची
7. अनेक शब्दों के लिए एक शब्द (समग्र शब्द) क्या है उदाहरण
8. पर्यायवाची शब्द सूक्ष्म अन्तर एवं सूची
9. शब्द– तत्सम, तद्भव, देशज, विदेशी, रुढ़, यौगिक, योगरूढ़, अनेकार्थी, शब्द समूह के लिए एक शब्द
10. हिन्दी शब्द- पूर्ण पुनरुक्त शब्द, अपूर्ण पुनरुक्त शब्द, प्रतिध्वन्यात्मक शब्द, भिन्नार्थक शब्द
11. द्विरुक्ति शब्द क्या हैं? द्विरुक्ति शब्दों के प्रकार
ध्वनि के लक्षण
पूर्व में ध्वनि का अर्थ प्रतिपादित करते हुए स्पष्ट किया जा चुका है, कि में तीन आधार प्रमुख है-
1. उच्चारण
2. संवहन संचारण (प्रसारण)
3. श्रवण
इनमें उच्चारण का सम्बन्ध वक्ता से, संच्चारण का संबंध ध्वनि वाहिका तरंगों से (इसमें तरंगों की गति और स्वरूप भी आते है), एवं श्रवण का सम्बन्ध श्रोता से है।
डॉ. कपिल देव द्विवेदी ने 'ध्वनि' और 'स्वनिम' का अन्तर स्पष्ट करते हुए ध्वनि के विषय में स्पष्ट किया है। इस आधार पर ध्वनि के लक्षण हैं -
1. ध्वनि एक संकेत मात्र है।
2. ध्वनि एक भौतिक घटना मात्र है।
3. ध्वनियाँ स्थान प्रयत्न आदि के भेद से असंख्य है।
4. ध्वनि का उच्चारण नहीं होता।
5. ध्वनि इकाई है।
6. ध्वनि ध्वनिग्राम का व्यंजक है।
7. ध्वनियों के लिखित रूप वर्ण होते हैं।
8. ध्यनि बोलने और सुनने आती है।
हिन्दी व्याकरण के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।।
1. 'ज' का अर्थ, द्विज का अर्थ
2. भिज्ञ और अभिज्ञ में अन्तर
3. किन्तु और परन्तु में अन्तर
4. आरंभ और प्रारंभ में अन्तर
5. सन्सार, सन्मेलन जैसे शब्द शुद्ध नहीं हैं क्यों
6. उपमेय, उपमान, साधारण धर्म, वाचक शब्द क्या है.
7. 'र' के विभिन्न रूप- रकार, ऋकार, रेफ
8. सर्वनाम और उसके प्रकार
भाषायी ध्वनियाँ
ध्वनि के लिखित रूप 'वर्ण' हैं। यह वर्ण हमारी उच्चारित भाषा की सबसे छोटी इकाई है। इन्हीं इकाईयों से मिलाकर शब्द समूह और वाक्यों की रचना होती है। अतः वर्ण और उच्चारण का घनिष्ठ सम्बन्ध है उन्हें एक-दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता है।
भाषायी ध्वनियाँ वर्ण हैं। भाषा में ध्वनियों को व्यक्त करने के लिए जिन लिखित चिह्नों का प्रयोग किया गया है उसे वर्ण कहते हैं। मूल ध्वनि जिसके खण्ड न किए जा सके वर्ण कहलाते हैं।
भाषा विज्ञान में भाषायी ध्वनि 'स्वनिम' कहलाती है। 'स्वनिम' और कोई चीज नहीं अपितु यह वर्णों का क्रमवार समूह-वर्णमाला ही है। तभी कहा जाता है कि 'स्वनिम' भाषा की वह अर्थ भेदक ध्वन्यात्मक इकाई है, जो भौतिक यथार्थ से न होकर मानसिक यथार्थ से होती है तथा जिसके एकाधिकार ऐसे 'उपस्वत' होते है।
इस तरह भाषा का आधार 'ध्वनि' ही है और ध्वनि ज्ञान के बगैर अपने भावों की अभिव्यक्ति स्पष्ट नहीं हो पाती है। दूसरी ओर ध्वनियों का ज्ञान शिक्षकों, विद्यार्थियों एवं साहित्यकारों के लिए परम आवश्यक है। यदि बारीकी से अध्ययन की आवश्यकता हो तो सर्वप्रथम ध्वनि ज्ञान सभी के लिए जरूरी है।
इन प्रकरणों 👇 के बारे में भी जानें।
1. समास के प्रकार, समास और संधि में अन्तर
2. संधि - स्वर संधि के प्रकार - दीर्घ, गुण, वृद्धि, यण और अयादि
3. वाक्य – अर्थ की दृष्टि से वाक्य के प्रकार
4. योजक चिह्न- योजक चिह्न का प्रयोग कहाँ-कहाँ, कब और कैसे होता है?
5. वाक्य रचना में पद क्रम संबंधित नियम
6. कर्त्ता क्रिया की अन्विति संबंधी वाक्यगत अशुद्धियाँ
I Hope the above information will be useful and
important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण
होगी।)
Thank you.
R F Temre
rfhindi.com
(संबंधित जानकारी के लिए नीचे दिये गए विडियो को देखें।)
Comments