विद्या ददाति विनयम्

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भाषा शब्द की उत्पत्ति || भाषा के स्वरूप - मौखिक, लिखित एवं सांकेतिक

इसके पूर्व के लेख में हमने भाषा के 'आदि इतिहास' के बारे में बहुत संक्षिप्त जानकारी दी है। यदि आप उस जानकारी को पढ़ना चाहते हैं तो नीचे इस 👇लिंक पर क्लिक करें।

भाषा का आदि इतिहास - भाषा उत्पत्ति एवं इसका आरंभिक स्वरूप

आगे हम भाषा के बारे में बात करें तो इसकी उत्पत्ति के सम्बन्ध में कोई निश्चित मत का प्रतिपादन करना सम्भव नहीं है। जैसा कि इसके पूर्व के लेख में हमने बताया है और यह सर्वविदित भी है कि संसार के जीवधारियों के जन्म और विकास के साथ-साथ भाषा की उत्पत्ति और विकास की गाथा अभिन्नतः जुड़ी हुयी है। भाषा विदों की मानना है कि शुरुआत में मनुष्य द्वारा संकेतों का प्रयोग किया जाता था, जिनके माध्यम से ही वह अपने विचार प्रकट करता था और दूसरों के भावों व विचारों समझ लेता था। मानव की शिक्षा, सभ्यता व संस्कृति के विकास के साथ-साथ भाषा के ये संकेत भी बदलते गये और संकेतों का स्थान ध्वनियों ने ले लिया, ये ध्वनियाँ ही आगे चलकर शब्द और वाक्य के रूप में परिवर्तित हो गई और भाषा का मौखिक जिसे हम वाचिक या कथित भी कह सकते हैं इसका प्रचलन बढ़ा। धीरे-धीरे मानव ने इन ध्वनियों के लिये लिपि का आविष्कार भी कर लिया और फिर इसका लिखित रूप भी सामने आया। इस प्रकार देखा जाये तो भाषा की उत्पत्ति और विकास की एक लम्बी कहानी है।

शब्द - 'भाषा' का अर्थ

जैसा कि हम जानते हैं संस्कृत हिन्दी भाषा की जननी है अर्थात हिन्दी भाषा की उत्पत्ति संस्कृत से उत्पन्न हुई है। शब्द 'भाषा' संस्कृत के 'भाष' धातु से बना हुआ है और 'भाष' का अर्थ होता है, बोलना, कहना या बताना। इस प्रकार भाषा का सामान्य अर्थ हुआ, व्यक्ति द्वारा अपने विचारों या भावों की अभिव्यक्ति करना। भाषा अपने सामान्य अर्थ में विचारों (बातों) या भावों को आदान-प्रदान करने का एक माध्यम है। यदि हम भाषा के बारे में पारिभाषिक रूप से कहे तो "पूर्ण निश्चित ध्वनि एवं उच्चारित संकेतों का वह समूह जो मनुष्य के पारस्परिक सम्पर्क को गहन बनाकर विचारों की अभिव्यक्ति में सहायता करता है, उसे भाषा कहते है।"

भाषा के स्वरूप - मौखिक, लिखित एवं सांकेतिक

मनुष्य ने अपने विचारों की अभिव्यक्ति के लिए भाषा का विकास किया है तथा इसके लिए कुछ रूपों को अपनाया है, आज सामान्यतः भाषा में अभिव्यक्ति के तीन रूप प्रचलित हैं-
(1) मौखिक
(2) लिखित
(3) सांकेतिक

(1) मौखिक भाषा - मानव मुख द्वारा उच्चारित ध्वनि संकेतों का समूह यदि अर्थपूर्ण हो तो वह मौखिक भाषा कहलाती है। भाषा का यह रूप मनुष्य को सहज ही सामाजिक वातावरण से प्राप्त होता है। मनुष्य जन्म लेने के साथ अपने माता-पिता एवं परिवार के संपर्क में आने पर धीरे-धीरे बोलना आरम्भ कर देता है। अतः मौखिक रूप ही भाषा का स्वाभाविक एवं मूल रूप कहा जा सकता है। व्यक्ति चाहे शिक्षित हो या अशिक्षित सभी इस मौखिक भाषा का प्रयोग करते हैं। केवल अन्तर इतना है कि पढ़े-लिखे लोग अनपढ़ लोगों की अपेक्षा ज्यादा शुद्ध भाषा का प्रयोग करते हैं। हम भाषा की बात करें तो प्रत्येक भाषा में अनेक ध्वनियाँ होती हैं और 'ध्वनि' मौखिक भाषा की आधरभूत इकाई है। इन्हीं ध्वनियों के परस्पर संयोग से तरह-तरह के शब्द बनते हैं जो वाक्यों में प्रयुक्त होते हैं। भाषा का यह रूप अस्थायी एवं क्षणिक रूप है।

(2) लिखित भाषा - जैसे-जैसे मानव सभ्यता का विकास हुआ उसी के साथ मनुष्य को अपने विचारों एवं भावों को सुदूर क्षेत्रों तक पहुँचाने की आवश्यकता अनुभव हुई इस आवश्यकता को देखते हुए मनुष्य ने भाषा के लिखित रूप का विकास किया तथा इसके लिए उसने भाषा में भिन्न-भिन्न 'चिह्नों' का सहारा लिया। इन्हीं चिह्नों को 'वर्ण' कहा जाता है। जिस प्रकार मौखिक भाषा की आधारभूत इकाई 'ध्वनि' है वहीं लिखित भाषा की आधरभूत इकाई 'वर्ण' है। लिखित भाषा, भाषा का स्थायी रूप है जिसमें हम अपने विचारों को कई पीढ़ियों तक संजोकर रख सकते हैं। इस बात का प्रमाण है, आज भी कई ग्रन्थों एवं साहित्य की पाण्डुलिपियाँ हमारे लिए उपलब्ध हैं।

(3) सांकेतिक भाषा - हम अपने विचारों या भावों को कई बार संकेतों, या इशारों के द्वारा भी व्यक्त करते हैं। उदाहरण के लिए किसी मूक व्यक्ति को अपनी भावनाओं को व्यक्त करना हो तो वह निश्चित ही अपने हाथ, अंगुलियों और चेहरे के हाव-भाव आदि से अपने भावों को अभिव्यक्त करेगा। हम हमारे दैनिक जीवन में कई बार चेहरे, आँखों, अंगुलियों आदि से इशारा कर बच्चों या अन्य को चुप रहने आने या जाने इत्यादि के बारे में कहते हैं। इस तरह यह संकेतों में होकर भी यह एक भाषा है। पशु-पक्षी भी हमारे संकेतों, हाव-भाव एवं व्यवहार से बहुत कुछ समझ जाते हैं। इसी प्रकार हम भी पशु पक्षियों या जानवरों की बोली को अच्छी तरह से समझ लेते हैं। इस प्रकार मौन संकेतों की भी एक भाषा होती है।
इस तरह भाषा मानव जीवन की एक सामान्य व सतत प्रक्रिया है, जिसे ईश्वर ने मानव-मात्र को अमूल्य उपहार के रूप में प्रदान किया है।

हिन्दी व्याकरण के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।।
1. लिपियों की जानकारी
2. शब्द क्या है
3. लोकोक्तियाँ और मुहावरे
4. रस के प्रकार और इसके अंग
5. छंद के प्रकार– मात्रिक छंद, वर्णिक छंद
6. विराम चिह्न और उनके उपयोग
7. अलंकार और इसके प्रकार

I Hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
rfhindi.com

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(संबंधित जानकारी के लिए नीचे दिये गए विडियो को देखें।)
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