हिन्दी का सामान्य, व्यवहारिक, साहित्यिक, ऐतिहासिक एवं भाषा-शास्त्रीय अर्थ || Hindi ke vibhinna arth
हिन्दी शब्द का सामान्य अर्थ
हिन्दी संज्ञा (नाम) भाषा को तब प्राप्त हुई जब इस देश में मुसलमानों का आगमन हुआ और मुसलमानों ने इस देश के लिए हिन्द नाम को बहुप्रचलित बना दिया और उन्होंने हिन्द (भारतीय प्रायद्वीप) में रहने वाले लोगों को हिन्दू नाम से सम्बोधित किया। इसी तरह हिन्द में रहने वालों की भाषा को हिन्दी नाम दे दिया गया। फारसी ग्रन्थों में हिन्दी शब्द का प्रयोग "हिन्द देश का वासी" और "हिन्द देश की भाषा" दोनों अर्थों में किया गया और आज भी किया जा सकता है। अतः उपरोक्त स्पष्टीकरण की दृष्टि से हिन्दी शब्द का प्रयोग भारत में बोली जाने वाली किसी आर्य अथवा अनार्य भाषा के लिए किया जा सकता है।
हिन्दी का व्यावहारिक अर्थ
व्यवहार की दृष्टि से हिन्दी उस बड़े भाग की भाषा है, जिसकी सीमा भारत के पश्चिम में जैसलमेर, उत्तर-पश्चिम में अम्बाला, उत्तर दिशा में शिमला से लेकर पूर्व की ओर नेपाल तक के पहाड़ी प्रदेश तथा भागलपुर, दक्षिण पूर्व में रायपुर तथा दक्षिण-पश्चिम में खण्डवा तक पहुँचती है। उक्त क्षेत्र के रहवासियों के द्वारा विचारों के आदान-प्रदान एवं अन्य व्यवहारिक गतिविधियों के लिए प्रयुक्त की जाती है। अतः हिन्दी भारत की व्यवहार की भाषा है।
हिन्दी का साहित्यिक अर्थ
हिन्द भू-भाग के रहवासियों के साहित्य एवं सृजन, पत्र-पत्रिकाओं, शिक्षा-दीक्षा तथा व्यवहार (बोलचाल) आदि की भाषा हिन्दी है। इस तरह देखें तो हिन्दी भारत देश की बोलचाल एवं साहित्य-सृजन की भाषा है। इस अर्थ के अनुसार बिहारी जिसमें भोजपुरी, मगही और मैथिली शामिल हैं, राजस्थानी जिसमें मारवाड़ी, मेवाती आदि शामिल हैं, पूर्वी हिन्दी जिसमें अवधी, बघेली और छत्तीसगढ़ी आदि शामिल हैं। ये सभी हिन्दी की विभाषाएँ हैं।
हिन्दी का ऐतिहासिक अर्थ
ऐतिहासिक दृष्टि से पश्चिमी हिन्दी 'शौरसेनी' की और पूर्वी हिन्दी 'अर्द्धमागधी' की वंशज है। डॉ. ग्रियर्सन, डॉ. सुनीति कुमार चाटुर्ज्या आदि भाषा शास्त्रियों ने हिन्दी शब्द का प्रयोग पश्चिमी हिन्दी के ही अर्थ में प्रयोग किया है और ब्रज, कन्नौजी, बुंदेली, बाँगरू और खड़ी बोली को ही हिन्दी की विभाषाएँ माना है किन्तु अवधी, छत्तीसगढ़ी आदि पूर्वी बोलियों को विभाषाओं की श्रेणी में नहीं रखा है।
हिन्दी का भाषा-शास्त्रीय अर्थ
भाषा-शास्त्र की दृष्टि से हिन्दी केवल उस भू-भाग की भाषा को कह सकते हैं, जिसे प्राचीन काल में मध्य-भारत अथवा अन्तर्वेद कहते थे। यदि आगरा को हिन्दी का केन्द्र मानें तो उत्तर में हिमालय की तराई तक, दक्षिण में नर्मदा की घाटी तक, पूर्व में कानुपर तक और पश्चिम में दिल्ली से आगे तक हिन्दी का क्षेत्र माना जाता है। इसके पश्चिम में पंजाबी और राजस्थानी तथा पूर्व में पूर्वी हिन्दी ही बोली जाती है।
पश्चिमी हिन्दी ही वस्तुतः हिन्दी का वास्तविक रूप है। इसको केन्द्रीय हिन्दी या आर्य-भाषा भी कह सकते हैं। इसकी पाँच प्रधान विभाषाएँ हैं- खड़ी बोली, ब्रज भाषा, कन्नौजी, बुंदेली और बाँगरू।
इस तरह हिन्दी का अलग-अलग अर्थों में महत्वपूर्ण स्थान है। भारत की आत्मा कही जाने वाली इस भाषा का एक समृद्ध इतिहास रहा है
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(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण
होगी।)
Thank you.
R F Temre
rfhindi.com
(संबंधित जानकारी के लिए नीचे दिये गए विडियो को देखें।)
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