व्याकरण क्या है? अर्थ एवं परिभाषा || व्याकरण के लाभ || व्याकरण के विभाग
भाषा के बोलने, लिखने और पढ़ने में जिन नियमों-विनियमों का पालन किया जाता है, उन नियमों-विनियमों का अध्ययन ही व्याकरण है। जैसा कि हम जानते हैं भाषा 'वाक्यों' से बनती है, 'वाक्य' शब्दों से बनते हैं और 'शब्द' मूल 'ध्वनियों' से बनते हैं। इन्हीं के विभिन्न अंग-प्रत्यंगों का अध्ययन करना, विवेचन करना व्याकरण का मुख्य कार्य है। इस तरह व्याकरण भाषा पर आश्रित होती है।
कामता प्रसाद गुरु के अनुसार, "जिस शास्त्र में शब्दों के शुद्ध रूप और प्रयोग के नियमों का निरूपण होता है, उसे व्याकरण कहते हैं।" व्याकरण का विशेष रूप से सम्बन्ध लिखित भाषा से रहता है अतः ये नियम लिखित भाषा को लक्ष्य करके निश्चित किए जाते हैं। इसका कारण मौखिक भाषा की अपेक्षा लिखित भाषा में शब्दों का प्रयोग अधिक सावधानी के साथ किया जाता है।
व्याकरण शब्द तीन शब्द-खण्डों से बना है- वि + आ + रण जिसका अर्थ है 'भली-भाँति समझाना'। अतः व्याकरण के नियमों का सम्बन्ध शिष्टजन द्वारा स्वीकृत शब्दों के रूपों और प्रयोगों के साथ होता है।
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शास्त्र और कला के रूप में व्याकरण
व्याकरण शास्त्र है या कला? यदि शब्द 'शास्त्र' का विश्लेषण किया जाए तो इस बात का पता चलता है कि शास्त्र द्वारा किसी विषय का व्यवस्थित ज्ञान प्राप्त होता है। दूसरी ओर 'कला' की बात की जाये तो कला द्वारा सम्बंधित विषय का उपयोग सीखा जाता है। इस दृष्टि से व्याकरण 'शास्त्र' और 'कला' दोनों ही कहा जा सकता है। व्याकरण शास्त्र इसलिए है क्योंकि इसके द्वारा भाषा के उन नियमों का अध्ययन किया जाता है या उन नियमों की खोज कर सकते हैं जिनके उपर शब्दों का शुद्ध प्रयोग अवलम्वित होता है। इसे कला इसलिए माना जा सकता है क्योंकि शुद्ध भाषा बोलने-लिखने के लिए उन नियमों का पालन किया जाता है।
व्याकरण से लाभ
हम सभी जानते हैं की भाषा का सही तरह से प्रयोग नियमों-विनियमों का पालन करते हुए ही किया जा सकता है। यदि नियमों का पालन किए बिना भाषा का प्रयोग किया जाएगा तो सही भाव ग्रहण करने में काफी कठिनाई होगी। इस तरह देखा जाए तो भाषा नियमों के विरुद्ध नहीं चल सकती है। व्याकरण इन्हीं नियमों का पता लगाकर भाषा सम्बन्धी सिद्धान्तों को स्थिर करती है। व्याकरण में भाषा की रचना, शब्दों की व्युत्पत्ति विचाराभिव्यक्ति के लिए संदर्भ में उनके शुद्ध प्रयोग बताए जाते हैं जिनकी सहायता से हम भाषा के नियमों को जान सकते हैं और भाषा सम्बन्धी अपनी त्रुटियों को जानकर आवश्यक सुधार कर सकते हैं। इस तरह व्याकरण की सहायता से भाषा का पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने में तथा विदेशी भाषा को सीखने में सहायता मिलती है।
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व्याकरण की सीमाएँ
वैसे तो व्याकरण भाषा के अधीनस्थ है और यह भाषा के अनुसार परिवर्तित होते रहती है। व्याकरण भाषा को नियन्त्रित तो करती है, परन्तु व्याकरण अपने नियम बनाकर भाषा के रूप को बदल सकते हैं। भाषा पहले बोली जाती है और उसके आधार पर व्याकरण के नियम बनाए जाते हैं। भाषा का प्रयोग व्याकरण के निर्माण के हजारों वर्ष पहले होता आ रहा है। व्याकरण के ज्ञान द्वारा भाषा में शुद्धता आ जाती है किन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि व्याकरण के ज्ञान द्वारा शुद्ध भाषा लेखन का पता चलता है अथवा व्याकरण के ज्ञान के अभाव में शुद्ध भाषा नहीं लिखी जा सकती है। कई कवि या लेखक व्याकरण ज्ञान से अपरिचित रहे हैं फिरभी उन्होंने अभ्यास द्वारा मातृ भाषा को शुद्ध रूप में लिखना सीखा है। दूसरी ओर देखें तो अशिक्षित लोग भी व्याकरण के अभाव में शुद्ध भाषा का प्रयोग कर लेते हैं। अन्ततः हम कह सकते हैं कि व्याकरण की सहायता से केवल शब्दों के शुद्ध प्रयोग जानकर अपने विचार स्पष्टतया प्रकट किया जा सकता है, जिससे बुद्धिजीवी पाठक उन्हें सरलतापूर्वक से समझ सकें।
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व्याकरण के विभाग
व्याकरण भाषा सम्बन्धी एक शास्त्र है। अतः व्याकरण में भाषा के निर्माता वाक्यों का विवेचन, विश्लेषण एवं अध्ययन किया जाता है। भाषा के मुख्य अंग की बात करें तो वह है वाक्य। वाक्य शब्दों से बनते हैं और शब्द प्रायः मूल ध्वनियों से। इस तरह से व्याकरण के तीन अङ्ग माने जाते हैं।
(1) वर्ण
(2) शब्द
(3) वाक्य
(1) वर्ण - वर्ण विभाग के अन्तर्गत वर्णों के आकार, उच्चारण और उसके संयोग द्वारा बनने वाले शब्दों के नियमों का अध्ययन किया जाता है।
(2) शब्द - इस विभाग के अन्तर्गत शब्दों के भेद, उनका रूपान्तरण और व्युत्पत्ति सम्बन्धी वर्णनों का अध्ययन किया जाता है।
(3) वाक्य - वाक्य विभाग में वाक्यों के अवयवों के परस्पर सम्बन्धों पर विचार किया जाता है तथा शब्दों द्वारा वाक्य बनाने के लिए नियम दिए जाते हैं।
व्याकरण के अन्तर्गत गद्य और पद्य दोंनो पर विचार किया जाता है। हालाँकि इस सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद है। अधिकांश विद्वानों के मतानुसार पद्य के अंगों जैसे- छन्द, रस व अलंकार आदि साहित्य शास्त्र के विषय होने चाहिए, क्योंकि वे भाषा को रोचकता एवं प्रभावशीलता प्रदान करते हैं। इस संबंध में कामता प्रसाद गुरु का मत है कि "कविता भाषा और काव्य स्वतन्त्रता का परोक्ष सम्बन्ध व्याकरण से है।"
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R F Temre
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