विद्या ददाति विनयम्

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ध्वनि उच्चारण में 'प्रत्यन' क्या है? || प्रयत्नों की संख्या || 'प्रयत्न' के आधार पर हिन्दी व्यन्जन के भेद

ध्वनि उच्चारण में 'प्रयत्न' का बहुत महत्व है। बिना 'प्रयत्न' के किसी भी ध्वनि का मुख से उच्चारण संभव नहीं है। मानव अपने भावों की अभिव्यक्ति के लिए विभिन्न प्रकार की ध्वनियों को अपने मुख से उत्पन्न करता है। इन ध्वनियों को उत्पन्न करने के लिए मुख्य अवयव को 'प्रयत्न' करने की आवश्यकता होती है। अतः हम कह सकते हैं वर्णों या ध्वनियों के उच्चारण में जो प्रयास या रीति का प्रयोग किया जाता है, उसे 'प्रयत्न' कहते हैं। ध्वनियों के उच्चारण में मुख्य अवयव द्वारा तीस प्रकार के 'प्रयत्न' किये जाते हैं अतः प्रयत्नों की संख्या 30 है।

हिन्दी भाषा के इतिहास से संबंधित इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।।
1. भाषा का आदि इतिहास - भाषा उत्पत्ति एवं इसका आरंभिक स्वरूप
2. भाषा शब्द की उत्पत्ति, भाषा के रूप - मौखिक, लिखित एवं सांकेतिक
3. भाषा के विभिन्न रूप - बोली, भाषा, विभाषा, उप-भाषा
4. मानक भाषा क्या है? मानक भाषा के तत्व, शैलियाँ एवं विशेषताएँ
5. देवनागरी लिपि एवं इसका नामकरण, भारतीय लिपियाँ- सिन्धु घाटी लिपि, ब्राह्मी लिपि, खरोष्ठी लिपि
6. हिन्दू (हिन्दु) शब्द का अर्थ एवं हिन्दी शब्द की उत्पत्ति

प्रयत्न के भेद

प्रयत्न दो भेद हैं-
(1) आभ्यन्तर प्रयत्न
(2) बाह्य प्रयत्न

(1) आभ्यन्तर प्रयत्न- आभ्यान्तर प्रयत्न से आशय है, मुख के अंदर के उच्चारण अवयवों के द्वारा ध्वनि उत्पन्न करने के लिए प्रयत्न करना। मुख से ध्वनि उत्पन्न होने से पहले वागेन्द्रियों की क्रिया 'आभ्यन्तर प्रयत्न' कहलाती है।
इसके चार भेद हैं-
(i) विवृत
(ii) स्पृष्ट
(iii) ईषद विवृत
(iv) ईषद् स्पृष्ट

(2) बाह्य प्रयत्न - बाह्य प्रयत्न से आशय बाहरी प्रयत्न का होना अर्थात मुख के द्वारा ध्वनि उत्पन्न होने के बाद की क्रिया बाह्य प्रयत्न कहलाती है। इसके दो भेद है-
(i) अघोष
(ii) सघोष।

ध्वनि एवं वर्णमाला से संबंधित इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।।
1. ध्वनि का अर्थ, परिभाषा, लक्षण, महत्व, ध्वनि शिक्षण के उद्देश्य ,भाषायी ध्वनियाँ
2. वाणी - यन्त्र (मुख के अवयव) के प्रकार- ध्वनि यन्त्र (वाक्-यन्त्र) के मुख में स्थान
3. हिन्दी भाषा में स्वर और व्यन्जन || स्वर एवं व्यन्जनों के प्रकार, इनकी संख्या एवं इनमें अन्तर
4. स्वरों के वर्गीकरण के छः आधार
5. व्यन्जनों के प्रकार - प्रयत्न, स्थान, स्वरतन्त्रिय, प्राणत्व के आधार पर

'प्रयत्न' के आधार पर हिन्दी व्यन्जन के भेद

प्रयत्न की दृष्टि से हिन्दी व्यन्जनों के आठ भेद हैं-
(1) स्पर्शी व्यन्जन - जिन व्यन्जनों का उच्चारण करते समय उच्चारण अवयव परस्पर एक दूसरे को स्पर्श करते हैं, उन्हें स्पर्शी व्यन्जन कहते हैं। इनकी संख्या 16 है। 'क्', 'ख्', 'ग्', 'घ्', 'ट्', 'ठ्', 'ड्', 'ढ्', 'त्', 'थ्', 'द्', 'ध्', 'प्', 'फ्', 'ब्', 'भ्'

(2) संघर्षी व्यन्जन - ऐसे व्यन्जन जो मुखाङ्गों के संघर्ष के बाद उच्चारित होते हैं। इन व्यन्जनों के उच्चारण के समय दो उच्चारण वाणी अवयव इतने पास आ जाते हैं कि उनके बीच का मार्ग संकरा हो जाता है और वायु उनसे घर्षण करते हुए निकलती है। इन व्यंजनों की कुल संख्या सात है- 'श्', 'ग्', 'स्', 'ह्', 'ख्', 'ज्', 'फ्'

(3) स्पर्श-संघर्षी व्यन्जन - ऐसे व्यन्जन जिनके उच्चारण में वाणी अवयवों का स्पर्श भी हो और संघर्ष भी। ऐसे व्यन्जनों के उच्चारण में स्पर्श का समय अधिक होता है तथा उच्चारण के बाद वाला अंश संघर्षी हो जाता है। इनकी संख्या चार है। 'च्', 'छ्', 'ज्', 'झ्'

ध्वनि, वर्णमाला एवं भाषा से संबंधित इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।।
1. 'अ' से 'औ' तक हिन्दी स्वरों की विशेषताएँ एवं मुख में उच्चारण स्थिति
2. प्रमुख 22 ध्वनि यन्त्र- स्वर तन्त्रियों के मुख्य कार्य
3. मात्रा किसे कहते हैं? हिन्दी स्वरों की मात्राएँ, ऑ ध्वनि, अनुस्वार, अनुनासिक, विसर्ग एवं हलन्त के चिह्न
4. वर्ण संयोग के नियम- व्यन्जन से व्यन्जन का संयोग
5. बलाघात या स्वराघात क्या है इसकी आवश्यकता, बलाघात के भेद

(4) नासिक्य व्यन्जन - नाम से स्पष्ट है ऐसे व्यन्जन वर्ण जिनके उच्चारण में नाक का भी प्रयोग होता हो। अर्थात जिन व्यन्जनों के उच्चारण में वायु मुखद्वार के साथ-साथ नासाद्वार से भी प्रवाहित होती हो, उन्हें नासिक्य के व्यन्जन कहा जाता है। ये हिन्दी वर्णमाला के स्पर्श व्यन्जनों के पञ्चम वर्ण हैं। इनकी संख्या पाँच है। 'ङ्', 'ञ्', 'ण्', 'न्', 'म्'

(5) पार्श्विक व्यन्जन - पार्श्विक का अर्थ होता है 'बाजू या किनारे वाला'। यह शब्द 'पार्श्व' से बना है जिसका आशय है 'किनारा' या 'बाजू'। अतः ऐसे व्यन्जन वर्ण जिनके उच्चारण में जीभ का अगला भाग मसूढ़े को स्पर्श करता हो तथा वायु दोनों पार्श्वों (बाजुओं) से निकलती हो। ऐसे व्यन्जन वर्ण की संख्या केवल एक है- 'ल्'

हिन्दी व्याकरण के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।।
1. व्याकरण क्या है
2. वर्ण क्या हैं वर्णोंकी संख्या
3. वर्ण और अक्षर में अन्तर
4. स्वर के प्रकार
5. व्यंजनों के प्रकार-अयोगवाह एवं द्विगुण व्यंजन
6. व्यंजनों का वर्गीकरण
7. अंग्रेजी वर्णमाला की सूक्ष्म जानकारी

(6) प्रकम्पित व्यन्जन - यहाँ पर प्रकम्प शब्द का आशय है 'कम्पन' होना। जब किसी वर्ण के उच्चारण में उच्चारण अवयव (मुख के अवयव) में कम्पन होता है तो ऐसी ध्वनि प्रकम्पी ध्वनि कहलाती है। ऐसे वर्ण की संख्या भी केवल एक ही है- 'र्'

(7) उत्क्षिप्त व्यन्जन - उत्क्षिप्त शब्द का अर्थ है 'ऊपर उछाला हुआ'। जिन ध्वनियों के उच्चारण में जिह्वा के आगे के भाग को थोड़ा ऊपर उठाकर झटके से नीचे फेंका जाता है तो ऐसे व्यन्जन वर्णों को उत्क्षिप्त व्यन्जन कहते हैं। इनकी संख्या दो हैं- 'ड्', 'ढ्'।

(8) अर्द्ध-स्वर व्यन्जन - 'अर्द्ध-स्वर' कहने का आशय है, ऐसे वर्ण जिनके उच्चारण में मुख-अवयवों की आकृति स्वरों के उच्चारण के समय बनने वाली आकृति के समान बन जाती हो। अर्थात ऐसे व्यन्जन जिनका उच्चारण स्वर की भाँति होता हो। इन व्यन्जनों के उच्चारण में वायु बिना घर्पण के बाहर जाती है। इनकी संख्या दो हैं- 'य्', 'व्'

हिन्दी व्याकरण के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।।
1. लिपियों की जानकारी
2. शब्द क्या है
3. लोकोक्तियाँ और मुहावरे
4. रस के प्रकार और इसके अंग
5. छंद के प्रकार– मात्रिक छंद, वर्णिक छंद
6. विराम चिह्न और उनके उपयोग
7. अलंकार और इसके प्रकार

I Hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
rfhindi.com

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(संबंधित जानकारी के लिए नीचे दिये गए विडियो को देखें।)
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