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'अ' से 'औ' तक हिन्दी स्वरों की विशेषताएँ एवं मुख में उच्चारण स्थिति || Hindi Vowels

इस लेख में हिन्दी वर्णमाला के 11 स्वरों 'अ' से 'औ' तक के उच्चारण की स्थिति एवं मुखाङ्गो की स्थिति के बारे में जानकारी दी गई है। प्रत्येक स्वर का विवरण का अवलोकन करें।

'अ'

'अ' स्वर एक अवर्तुलित (जिसके उच्चारण में ओंठों की स्थिति वृत्त के समान गोल न हो) है। यह अग्र स्वर (मुख के सबसे अन्दर के उच्चारण स्थल), ह्रास (कम से कम समय में उच्चारित) और विकृत (मुख विवर खुला होने के कारण विकृत) स्वर है। इसका उच्चारण करते समय जिह्वा नीचले दाँतों को स्पर्श करती है। निचला ओंठ थोड़ा नीचे को लटका होता है। बलाघातित होने पर इस स्वर का उच्चारण तेज झटके से किया जाता है।
उदाहरण- अब, कल, पल, कब, कम आदि।

'आ'

'आ' एक दीर्घ स्वर है। यह अवर्तुलित (जिसके उच्चारण में ओंठों की स्थिति वृत्त के समान गोल न हो), विकृत (मुख विवर खुला होने के कारण विकृत) एवं मध्य (मुख के बीचों-बीच के ध्वनि अंग से उच्चारित) स्वर है। इसका उच्चारण करते समय जिह्वा सामान्य सपाट स्थिति में होती है। जिह्वा नोक निचले दाँतों के मूल के पास रहती है। इस तरह मुख विवर पूरी तरह खुला रहता है, इसीलिए इस स्वर को विकृत कहते हैं। निचला ओंठ थोड़ा नीचे लटका हुआ रहता है।
उदाहरण- आम, नाम, काम, शाम, रात आदि।

हिन्दी भाषा के इतिहास से संबंधित इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।।
1. भाषा का आदि इतिहास - भाषा उत्पत्ति एवं इसका आरंभिक स्वरूप
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'इ'

'इ' एक हृस्व स्वर है। यह भी अवर्तुलित (जिसके उच्चारण में ओंठों की स्थिति वृत्त के समान गोल न हो), अग्र और संवृत (ढका हुआ अर्थात मुख काफी हद तक बन्द रहकर उच्चारित) स्वर है। इसका उच्चारण करते समय जीभ कठोर तालु की ओर उठी हुई होती है जिससे मुख विवर प्रायः बन्द हो जाता है। उच्चारण के समय प्रायः ओंठ थोड़े फैल हुए होते हैं।
उदाहरण- गिर, तिल, हिल, पिट, सिर, फिर आदि।

'ई'

'ई' एक दीर्घ स्वर है। यह अवर्तुलित (जिसके उच्चारण में ओंठों की स्थिति वृत्त के समान गोल न हो), अग्र और संवृत (ढका हुआ अर्थात मुख काफी हद तक बन्द रहकर उच्चारित) स्वर है। इसका उच्चारण करते समय जीभ का मध्य भाग कठोर तालु के अग्रभाग की ओर उठा हुआ रहता है तथा होंठ जरा फैले हुए रहते हैं।
उदाहरण- खीस, बीत, जीत, तीन, बीन, शीश, बीस, तीस आदि।

'उ'

'उ' एक हस्व स्वर है। यह वर्तुलित (जिसके उच्चारण में ओंठों की स्थिति वृत्त के समान गोल हो), पश्च स्वर (मुख के आखिरी छोर अर्थात ओंठों से उच्चारित) तथा संवृत (ढका हुआ अर्थात मुख काफी हद तक बन्द रहकर उच्चारित) स्वर है। इसका उच्चारण करते समय ओंठ गोल हो जाते हैं तथा थोड़े आगे को निकलते हैं। जीभ पीछे को खींच जाती है।
उदाहरण - तुम, दुम, झुक, रुक, उग्र, उष्ण आदि।

ध्वनि एवं वर्णमाला से संबंधित इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।।
1. ध्वनि का अर्थ, परिभाषा, लक्षण, महत्व, ध्वनि शिक्षण के उद्देश्य ,भाषायी ध्वनियाँ
2. वाणी - यन्त्र (मुख के अवयव) के प्रकार- ध्वनि यन्त्र (वाक्-यन्त्र) के मुख में स्थान
3. हिन्दी भाषा में स्वर और व्यन्जन || स्वर एवं व्यन्जनों के प्रकार, इनकी संख्या एवं इनमें अन्तर
4. स्वरों के वर्गीकरण के छः आधार
5. व्यन्जनों के प्रकार - प्रयत्न, स्थान, स्वरतन्त्रिय, प्राणत्व के आधार पर

'ऊ'

'ऊ' एक दीर्घ स्वर है। यह वर्तुलित (जिसके उच्चारण में ओंठों की स्थिति वृत्त के समान गोल हो), पश्च, संवृत (ढका हुआ अर्थात मुख काफी हद तक बन्द रहकर उच्चारित) स्वर है। इसके उच्चारण में जीभ पीछे खिंची हुई, ओंठ गोल किए हुए तथा आगे निकले होते हैं।
उदाहरण- शूर, खूब, क्रूर, पूर,दूर, लू, तू, बू आदि।

'ऋ'

'ऋ' एक हृस्व स्वर है। इसका उच्चारण 'री' की ध्वनि की तरह होता है। यह स्वर विशेष रूप से संस्कृत शब्दों में पाया जाता है। हिन्दी में इसका प्रयोग तत्सम शब्दों में होता है।
उदाहरण- कृपण, कृष्ण, ऋण, ऋषि, ऋतु, कृति, ऋतम्भरा, ऋग्वेद आदि।

'ए'

'ए' एक संयुक्त स्वर है, इसे सन्ध्य (जो दो स्वरों से जुड़ा हुआ हो) स्वर भी कहते हैं। यह एक अवर्तुलित, अग्र और अर्धसंवृत (मुख विवर आधा खुला हुआ हो) स्वर है। इसके उच्चारण में जीभ आगे बढ़ी होती है और उसका मध्य भाग ऊपर उठा होता है। ओंठ थोड़े से फैले हुए रहते हैं।
उदाहरण - तेज, खेद, भेद, देश, मेज, पेश, सेव, मेव, देव आदि।

हिन्दी व्याकरण के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।।
1. व्याकरण क्या है
2. वर्ण क्या हैं वर्णोंकी संख्या
3. वर्ण और अक्षर में अन्तर
4. स्वर के प्रकार
5. व्यंजनों के प्रकार-अयोगवाह एवं द्विगुण व्यंजन
6. व्यंजनों का वर्गीकरण
7. अंग्रेजी वर्णमाला की सूक्ष्म जानकारी

'ऐ'

'ऐ' एक संयुक्त स्वर है। इसे भी सन्ध्य (जो दो स्वरों से जुड़ा हुआ हो) स्वर कहते हैं।यह अवर्तुलित (जिसके उच्चारण में ओंठों की स्थिति वृत्त के समान गोल न हो), अग्र, अर्धविवृत (मुख विवर आधा खुला हुआ हो) द्विस्वरक (2 स्वरों से संयुक्त) है। 'ऐ' का उच्चारण करते हुए जीभ आगे बढ़ी होती है। जीभ का मध्य भाग थोड़ा सा ऊपर उठा होता है और होठ थोड़े फैले होते हैं।
उदाहरण - बैल, बैठ, बैगा, भैसा, ऐनक, ऐसा, थैला, मैला आदि।

'ओ'

'ओ' एक संयुक्त स्वर है। यह वर्तुलित (जिसके उच्चारण में ओंठों की स्थिति वृत्त के समान गोल हो), पश्च और अर्धसंवृत स्वर है। इसे भी सन्ध्य (जो दो स्वरों से जुड़ा हुआ हो) स्वर कहते हैं। इसके उच्चारण में जीभ थोड़ी पीछे को हटी हुई होती है। ओंठ आगे निकले और गोल किए हुए होते हैं। 'ए' की तरह 'ओ' का कोई हृस्व समरूप स्वर नहीं होता है।
उदाहरण - मोना, खोना, बोल, ढोल, सोना, तोला, तोता, कोना, कोली, कोरी, लोरी आदि।

'औ'

'औ' एक संयुक्त स्वर है। यह भी सन्ध्य (जो दो स्वरों से जुड़ा हुआ हो) स्वर कहते हैं। यह वर्तुलित (जिसके उच्चारण में ओंठों की स्थिति वृत्त के समान गोल हो), पश्च, अर्धवितृत (मुख विवर आधा खुला हुआ हो) स्वर है। इसके उच्चारण में जीभ थोड़ी पीछे को हटी हुई होती है, जीभ का पश्च भाग थोड़ा ऊपर उठा हुआ तथा जिह्वा नोक झुकी हुई होती है।
उदाहरण - पौन, औजार, मौन, खौलना, कौन, फौज, औरत, बौर, ठौर आदि।

हिन्दी व्याकरण के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।।
1. लिपियों की जानकारी
2. शब्द क्या है
3. लोकोक्तियाँ और मुहावरे
4. रस के प्रकार और इसके अंग
5. छंद के प्रकार– मात्रिक छंद, वर्णिक छंद
6. विराम चिह्न और उनके उपयोग
7. अलंकार और इसके प्रकार

I Hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
rfhindi.com

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(संबंधित जानकारी के लिए नीचे दिये गए विडियो को देखें।)
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