विद्या ददाति विनयम्

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वाणी - यन्त्र (मुख के अवयव) के प्रकार || ध्वनि यन्त्र (वाक्-यन्त्र) के मुख में स्थान

पूर्व के लेख में हमने ध्वनि का अर्थ, परिभाषा, महत्व, भाषाई ध्वनियाँ आदि के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी है। यदि आप उस लेख को पढ़ना चाहते हैं तो नीचे 👇 की लिंक पर क्लिक करें।

ध्वनि का अर्थ, परिभाषा, लक्षण, महत्व, ध्वनि शिक्षण के उद्देश्य ,भाषायी ध्वनियाँ

इस लेख में मानव मुख के अवयवों अर्थात मुखांगों का वर्णन किया गया है जो कि विभिन्न प्रकार की ध्वनियों के उच्चारण में सहायक होते हैं। जैसा की ज्ञात है प्रत्येक प्राणी किसी न किसी प्रकार की ध्वनि या शब्द अपने मुख से निःसृत (निकालते हैं) किया करते हैं। इन ध्वनियों के आधार पर ही प्रत्येक क्रिया, विचार या भावों के लिए अलग-अलग ध्वनि या शब्द उच्चारित करते हैं। मनुष्य के अतिरिक्त अन्य प्राणियों में इस वायु को सोच-समझकर (बुद्धि-पूर्वक) बाहर निकालने की प्रवृत्ति न होने पर उनसे किसी भाषा या व्यक्त-भाव-बोधक ध्वनियों की सृष्टि नहीं होती है।

भाषा से संबंधित ध्वनियों के निर्माण में वह वायु कारण होती है जो मुँह या नाक के द्वारा बाहर निकलती है। जब हवा मुँह के द्वारा बाहर निकलती है तब वह भिन्न-भिन्न प्रकार की ध्वनियों को निर्मित करती है। ध्वनि करना या न करना हमारी इच्छा पर अवलम्बित है। ये ध्वनियों कैसे, कहाँ से और क्यों उत्पन्न होती है इसका विचार (वर्णन) भाषा विज्ञान के लिए आवश्यक है।

हिन्दी भाषा के इतिहास से संबंधित इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।।
1. भाषा का आदि इतिहास - भाषा उत्पत्ति एवं इसका आरंभिक स्वरूप
2. भाषा शब्द की उत्पत्ति, भाषा के रूप - मौखिक, लिखित एवं सांकेतिक
3. भाषा के विभिन्न रूप - बोली, भाषा, विभाषा, उप-भाषा
4. मानक भाषा क्या है? मानक भाषा के तत्व, शैलियाँ एवं विशेषताएँ

जिन साधनों से ये ध्वनियाँ उत्पन्न होती हैं, उन्हें 'ध्वनि यन्त्र' के नाम से जाना जाता है। यह बात अलग है कि भाषा विज्ञान में यह ध्वनि-यन्त्र मनुष्यों के ध्वनि-यन्त्र के लिए ही रूढ़ हो गया है। यह बात अवश्य है कि शरीर के जिन अवयवों से ये ध्वनियाँ निकलती हैं, उनके अन्य कार्य भी है। मुँह, दाँत, जीभ और कण्ठ, काक, श्वास नली आदि मिलकर 'भोजन यन्त्र' भी कहे जाते हैं परन्तु इन्हीं अवयवों से मुख्य रूप से ध्वनियों का भी निर्माण होता है। इसीलिए भाषा, विज्ञान में इनको 'ध्वनि-यंत्र' के नाम से जाना जाता है।

मानव मुख के 'ध्वनि-यन्त्र' में कौन-कौन से अवयव सम्मिलित हैं। इनकी स्थिति मुँह में कहाँ कहाँ है, इसे समझना बहुत ही आवश्यक है। स्वर और व्यन्जनों के उच्चारण में इनकी जानकारी होना चाहिए इसके पश्चात् ही आगे यहाँ स्वर और व्यन्जनों का वर्गीकरण होना चाहिए। इस वर्गीकरण में 'ध्वनि-यन्त्र' के विभिन्न अवयवों की भूमिका को ध्यान में लाते हुए ही उनका नामकरण भेद किया जाता है। मानव मुख के अन्दर और बाहर ध्वनि उत्पादक अवयवों (वाणी-यंत्रों) का चित्र देखें।

sound_organs

उपरोक्त चित्र में निम्न वाणी-यन्त्र दिखाये गये हैं।
1. ओष्ठ
2. दाँत
3. वर्त्स (मसूड़ा)
4. कठोर-तालू
5. मूर्धा
6. कोमल-तालु
7. गल-बिल
8. जिह्वा-नोक
9. जिह्वा-मध्य
10. जिह्वा-पश्च
11. जिह्वा-मूल
12. मुख-विवर
13. नासिका-विवर
14. स्वर-यन्त्र
15. श्वास-नलिका
16. अन्न-नलिका

नीचे दिए गए चित्र में जिह्वा के विभिन्न भागों का अवलोकन करें।

tongue_organs

वाणी-यंत्र भाग (अंग) विवरण

1. ओष्ठ - मानव मुख में ऊपर, नीचे दो ओंठ होते हैं। ये ओंठ बहुत ही कोमल, नरम और लचकदार होते हैं। ये विभिन्न ध्वनियों के उच्चारण में सहायक होते हैं।

2. दाँत - मुँह के अन्दर ऊपर तथा नीचे अंग्रेजी के अक्षर यू की आकृति मैं दाँतों की दो पंक्तियाँ होती हैं। ध्वनि उच्चारण में इन की महती भूमिका होती है।

3. वर्त्स (मसूडा) - मुख के अन्दर दाँतों की दोनों पंक्तियों की मजबूत पकड़ जिनके माध्यम से होती है उन्हें 'मसूड़ा' (वर्त्स) कहते हैं। ये भी विभिन्न ध्वनियों के उच्चारण में सहयोग प्रदान करते हैं।

ध्वनि एवं वर्णमाला से संबंधित इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।।
1. ध्वनि का अर्थ, परिभाषा, लक्षण, महत्व, ध्वनि शिक्षण के उद्देश्य ,भाषायी ध्वनियाँ

4. कठोरतालू - मानव मुख के अंदर ऊपर के अग्र दाँतों के पास उपर की ओर मसूड़ों से लगा हुआ कठोर स्थान कठोर तालु होता है। चित्र में देखें। इस स्थान पर जिह्वा के स्पर्श से विभिन्न प्रकार की ध्वनियाँ उच्चारित होती हैं।

5. मूर्धा - मुख के अन्दर वह भाग जो तालुओं (कठोर तालु और कोमल तालु के बीच के बीचों बीच) का मध्य मूर्धा होता है। इस स्थल का भी विभिन्न प्रकार की ध्वनियों के उच्चारण में उपयोग होता है।

6. कोमल तालू - कठोर तालू के आगे वाला भाग मूर्धा और उसके तुरन्त पीछे वाला भाग कोमल तालु होता है जिसका उपयोग ध्वनियों के उच्चारण में होता है।

7. गल-विल - मनुष्य के गले के अन्दर एक छोटा सा अवयव (संस्थान) जो कण्ठ में रहता है। श्वास नलियाँ यहीं से प्रारंभ होती है। उच्चारण में इसकी महती भूमिका होती है।

8. जिह्वा नोक - जीभ का सबसे आगे वाला भाग, जो सबसे अधिक गतिशील होता है जिह्वा नोक कहलाता है। ध्वनि उच्चारण में इस भाग का सर्वाधिक उपयोग होता है।

9. जिह्वा मध्य - नाम से ही स्पष्ट है जीभ के मध्य का भाग। हमारी जीभ के नोक के आगे वाला भाग और जीभ के पीछे वाले भाग, इन दोनों के मध्य का भाग जिह्वा मध्य कहलाता है।

हिन्दी व्याकरण के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।।
1. व्याकरण क्या है
2. वर्ण क्या हैं वर्णोंकी संख्या
3. वर्ण और अक्षर में अन्तर
4. स्वर के प्रकार
5. व्यंजनों के प्रकार-अयोगवाह एवं द्विगुण व्यंजन
6. व्यंजनों का वर्गीकरण
7. अंग्रेजी वर्णमाला की सूक्ष्म जानकारी

10. जिह्वा पश्च - जिह्वा मध्य के पीछे वाला भाग जोकि कोमल तालु के नीचे होता है उसे जिह्वा पश्च कहते हैं।

11. जिह्वा मूल - जीभ का अन्तिम छोर जहाँ पर यह जुड़ी हुई रहती है उसे जिह्वा मूल कहते हैं। यह जीभ का अन्तिम भाग होता है।

12. मुख विवर (मुख रन्ध्र) - यह मुख के अन्दर श्वास-प्रछ्श्वास के मुख स्थान है, जो भोजन नली से जुड़ा रहता है।

13. नासिका विवर - नाक के भीतर का भाग जो दो भागों में विभक्त होता है और गले के भीतर श्वास नली से जुड़ा रहता है, नासिका विवर कहलाती है।

14. स्वर यन्त्र - गले के अन्दर कण्ठ के दोनों ओर अत्यन्त महीन असंख्य तन्तुओं की बनी दो तन्त्रियाँ होती है, जो इच्छानुसार फैलती और सिकुड़ती हैं। ये ही स्वर-यन्त्र का काम करती हैं।

15. श्वास नलिका - कण्ठ के नीचे की नली जो फेफड़ों से जाकर दोनों और मिलती है, श्वास नलिका है।

16. अन्न नलिका - यह मुख में गले से और आमाशय से जुड़ी नली है, जो भोजन, पानी पेट (अमाशय को पहुँचाती है।)

इस तरह देखा जाए तो मानव मुख के ये अवयव विभिन्न प्रकार की सार्थक ध्वनियों के उच्चारण में सहायक हैं। मुख के ये सारे अंग ध्वनियों को स्वेच्छा से निकालने हेतु मानव की सहायता करते हैं। अतः मनुष्य अपनी इच्छा अनुसार इन मुखाङ्गों का प्रयोग करते हुए उद्देश्य पूर्ण ध्वनियाँ निकालकर अपने भाव को भली प्रकार दूसरों पर प्रकट कर सकता है। अतः आवश्यक है कि विद्यार्थी एवं शिक्षकों को मुख्य अवयव की भली प्रकार जानकारी होनी चाहिए।

हिन्दी व्याकरण के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।।
1. लिपियों की जानकारी
2. शब्द क्या है
3. लोकोक्तियाँ और मुहावरे
4. रस के प्रकार और इसके अंग
5. छंद के प्रकार– मात्रिक छंद, वर्णिक छंद
6. विराम चिह्न और उनके उपयोग
7. अलंकार और इसके प्रकार

I Hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
rfhindi.com

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(संबंधित जानकारी के लिए नीचे दिये गए विडियो को देखें।)
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