An effort to spread Information about acadamics

Blog / Content Details

विषयवस्तु विवरण



प्रमुख 22 ध्वनि यन्त्र || स्वर तन्त्रियों के मुख्य कार्य || ध्वनि की उत्पत्ति

  • BY:
     RF Temre

वैसे तो ध्वनि की उत्पत्ति में मुख्यतः चार अवयव कार्य करते हैं -
(क) काकल
(ख) कण्ठ-बिल
(ग) मुख और
(घ) नासिका

उक्त चार अवयवों के माध्यम से ही मानव मुख से विभिन्न प्रकार की ध्वनि उत्पन्न होती हैं। उक्त वाग्यन्त्रों के अलावा विभिन्न प्रकार की ध्वनियों की उत्पत्ति के लिए मुख के और भी अङ्ग जिन्हें मुखाङ्ग / यन्त्र / ध्वनि-यन्त्र/ उच्चारण अवयव / वाग्यन्त्र या वाक्-यंत्र / मुख-अवयव / वाणी-यन्त्र आदि नामों से जाना जाता है। वाग्यन्त्र या ध्वनि-यन्त्र की जानकारी ओष्ठ से लेकर गले के कौवे से नीचे तक के भाग की प्राप्त करेंगे। भाषा विदों ने इसे विभिन्न भागों में बाँटकर इनका वर्णन किया है। वाणी-यन्त्रों विवरण एवं सूची नीचे दी गई है।

हिन्दी भाषा के इतिहास से संबंधित इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।।
1. भाषा का आदि इतिहास - भाषा उत्पत्ति एवं इसका आरंभिक स्वरूप
2. भाषा शब्द की उत्पत्ति, भाषा के रूप - मौखिक, लिखित एवं सांकेतिक
3. भाषा के विभिन्न रूप - बोली, भाषा, विभाषा, उप-भाषा
4. मानक भाषा क्या है? मानक भाषा के तत्व, शैलियाँ एवं विशेषताएँ
5. देवनागरी लिपि एवं इसका नामकरण, भारतीय लिपियाँ- सिन्धु घाटी लिपि, ब्राह्मी लिपि, खरोष्ठी लिपि

(I) उवालि जिह्वा (Pharynx) - इसके अन्तर्गत गलबिल, कण्ठ, कण्ठ मार्ग सम्मिलित होते हैं।
(II) अन्न नलिका (Gullet)
(III) स्वर यन्त्र (Lyrynx) -
इसके अन्तर्गत कण्ठ-पिटक, ध्वनि-यन्त्र सम्मिलित है।
(IV) स्वर-यन्त्र, मुख (Glottis)- इसमें काकल प्रमुखतः है।
(V) स्वर तन्त्री (Vocal Chord) अर्थात ध्वनि तन्त्री
(VI) स्वर-यन्त्र, मुख आवरण (Epiglottis) - इसके अन्तर्गत अभिकाकल, स्वर यन्त्रावरण आते हैं।
(VII) नासिका-विवर (Nasal-Cavity)
(VIII) मुख-विवर (Mouth Cavity)
(IX) अलि जिह्वा (Ovula)-
इसके अन्तर्गत कौआ, घण्टी, शुंडिका सम्मिलित हैं।
(X) कण्ठ (Guttur)
(XI) कोमल तालु (Soft Palate)
(XII) मुर्द्धा (Cerebrum)
(XIII) कठोर तालु (Hard Palate)
(XIV) वर्क्स (Alueola)
(XV) दाँत (Teeth)
(XVI) ओष्ठ (Lips)
(XVII) जिह्वामध्य (Middle of the Tongue)
(XVIII) जिह्वानीक (Tip of the Tongue)
(XIX) जिह्वाग्र (Front of the Tongue, जिवाफलक)
(XX) जिह्वा (Tongue)
(XXI) जिह्वापश्च (Back of the Tongue)
(XXII) जिह्वामूल (Root of the Tongue)।

ध्वनि एवं वर्णमाला से संबंधित इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।।
1. ध्वनि का अर्थ, परिभाषा, लक्षण, महत्व, ध्वनि शिक्षण के उद्देश्य ,भाषायी ध्वनियाँ
2. वाणी - यन्त्र (मुख के अवयव) के प्रकार- ध्वनि यन्त्र (वाक्-यन्त्र) के मुख में स्थान
3. हिन्दी भाषा में स्वर और व्यन्जन || स्वर एवं व्यन्जनों के प्रकार, इनकी संख्या एवं इनमें अन्तर
4. स्वरों के वर्गीकरण के छः आधार
5. व्यन्जनों के प्रकार - प्रयत्न, स्थान, स्वरतन्त्रिय, प्राणत्व के आधार पर
6. 'अ' से 'औ' तक हिन्दी स्वरों की विशेषताएँ एवं मुख में उच्चारण स्थिति

ध्वनि की उत्पत्ति

ध्वनि की उत्पत्ति उस समय होती है जब वायु फेफड़ों से चलकर श्वास नलिका द्वारा कण्ठ-पिटक से बाहर निकलती है, उस समय स्वर-तन्त्रियों के व्यापार में शब्द या ध्वनि की उत्पत्ति होती है। यदि हम साधारण बोलचाल में कहें तो कण्ठ अथवा गले से ध्वनि निकलती है। वायु श्वास नलिका द्वारा कण्ठ-पिटक में आती है और यहीं पर वह ध्वनि का रूप धारण कर लेती है।
जिह्वा और कण्ठ, इन दोनों अवयवों के कारण कण्ठ बिल में जो विभिन्न प्रकार के ध्वनि विकार होते हैं, वे ही तरह-तरह की ध्वनियों को जन्म देते हैं।

कण्ठ-विल में से निकालकर श्वास या तो नासिका विवर में जाती है अथवा मुख विवर में जाती है। जब कण्ठ की घण्टी अथवा कौवा नासिका विवर को बन्द कर लेता है तब श्वास मुख विवर में होकर आती है और वह अनुनासिक अथवा शुद्ध ध्वनि कहलाती है, किन्तु जब नासिका और मुख दोनों के मार्ग खुले रहते हैं तब सानुनासिक ध्वनि उत्पन्न होती है। ध्वनि मुख-विवर में आकर ही प्रायः अपना वास्तविक स्वरूप धारण करती है।

स्वर तन्त्रियों के मुख्य कार्य

(अ) स्वर तन्त्रियाँ साधारणतः श्वास लेते समय ये खुली रहती हैं।
(ब) ये स्वर तन्त्रियाँ कभी-कभी परस्पर इतनी मिल जाती है कि श्वास का आना ही रुक जाता है।
(स) कभी-कभी इन दोनों स्वर तन्त्रियों के बीच में से श्वास इस प्रकार निकल जाती है कि कम्पन नहीं होता, केवल फुसफुसाहट होकर रह जाती है।
(द) ये स्वर तन्त्रियाँ कभी- कभी दृढ़ और कभी-कभी शिथिल हो जाती हैं। इसी से स्वर कभी ऊँचा और कभी नीचा होते रहता है।
(इ) कभी ये स्वर तन्त्रियाँ बहुत ही कम खुलती हैं जिससे बीच में से महाप्राण वायु निकल तो जाती है, परन्तु इस कारण ये तन्त्रियाँ स्वयं तार के समान झनझना उठती हैं।

हिन्दी व्याकरण के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।।
1. व्याकरण क्या है
2. वर्ण क्या हैं वर्णोंकी संख्या
3. वर्ण और अक्षर में अन्तर
4. स्वर के प्रकार
5. व्यंजनों के प्रकार-अयोगवाह एवं द्विगुण व्यंजन
6. व्यंजनों का वर्गीकरण
7. अंग्रेजी वर्णमाला की सूक्ष्म जानकारी


संबंधित जानकारी के लिए नीचे दिये गए विडियो को देखें।👇🏻
(Watch video for related information)

आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।
(I hope the above information will be useful and important. )
Thank you.

R. F. Tembhre
(Teacher)
rfhindi.com


अन्य महत्वपूर्ण जानकारी से संबंधित लिंक्स👇🏻

https://youtu.be/Z_OFTN4606I
  • Share on :

Comments

Leave a reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may also like

हिन्दी भाषा में बिन्दु (Point /Dat) का प्रयोग 14 स्थानों पर होता है | इन बिन्दुओं को क्या कहा जाता है?

इस लेख में हिंदी भाषा में बिंदी/बिन्दु का प्रयोग किन-किन स्थानों पर किया जाता है और इन्हें किन नाम से जाना जाता है इस संबंध में महत्व जानकारी प्रदान की गई है।

Read more

हिन्दी वर्णों/अक्षरों के भाग― शिरोरेखा, अर्द्ध पाई, मध्य पाई, अंत पाई, वक्र, मध्यम् रेखा, हलन्त, बिन्दु, मात्रा चिह्न

इस लेख में हिन्दी वर्णों/अक्षरों के भाग― शिरोरेखा, अर्द्ध पाई, मध्य पाई, अंत पाई, वक्र, मध्यम् रेखा, हलन्त, बिन्दु, मात्रा चिह्न के बारे में जानकारी दी गई है।

Read more

हलन्त का अर्थ, इसके उपयोग एवं प्रयोग के नियम || हलन्तयुक्त एवं हलन्तरहित शब्दों के अर्थ में अंतर || Meaning of Halant and its uses and rules

हिन्दी एवं संस्कृत भाषा में प्रयुक्त एक ऐसा चिन्ह जो वर्णमाला के व्यन्जन वर्णों के नीचे तिरछी रेखा (्) के रूप में लगाया जाता है उसे हलन्त कहते हैं।

Read more

Follow us

Catagories

subscribe

Note― अपनी ईमेल id टाइप कर ही सब्सक्राइब करें। बिना ईमेल id टाइप किये सब्सक्राइब नहीं होगा।