व्याकरण का प्रारम्भ || आदि व्याकरण - व्याकरणाचार्य पणिनि || हिन्दी व्याकरण
जैसा कि हम जानते हैं किसी भी भाषा की शुद्धता और सही भाव ग्रहण करने में व्याकरण की महती भूमिका होती है। निश्चित तौर से आदिकाल से ही व्याकरण का अस्तित्व रहा है। ऐसा किवदंती है कि वेदों की रचना के पश्चात समस्त देव-गणों की प्रार्थना पर इन्द्रदेव के द्वारा व्याकरण की रचना की गई थी, जिसका नाम 'शेष' था। चूँकि यह व्याकरण अब कहीं पर भी विद्यमान नहीं है।
यदि हम इस लौकिक संसार की बात करें तो सर्वप्रथम इसमें भाषा सुधार के लिए जिन नियमावलियों के संग्रह को व्याकरण का रूप दिया उनमें सबसे पहला नाम महर्षि पणिनि का आता है।
संसार में मानव अपने भावों की अभिव्यक्ति के लिए जितनी भी भाषाओं प्रयोग आदिकाल से करता आ रहा है, चाहे वे भाषाएँ वैदिक संस्कृत हो, लौकिक संस्कृत हो या प्राकृत पालि, अपभ्रंश या फिर आधुनिक भाषाएँ हों उन सभी भाषाओं के स्वरूप की रक्षा ही व्याकरण रचना का मुख्य उद्देश्य है।
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यास्क मुनि जो कि वैदिक संज्ञाओं के एक प्रसिद्ध व्युत्पतिकार एवं वैयाकरण थे, उनके समय तक अनेक निरुक्तों और व्याकरणों की रचना हो चुकी थी। यास्क मुनि और महर्षि पाणिनि के बीच भी अनेक श्रेष्ठ व्याकरणाचार्य हुए, किन्तु न तो यास्क मुनि के पूर्व का कोई निरुक्त उपलब्ध है और न पाणिनि के पूर्व का कोई भाषा-व्याकरण उपलब्ध है। पाणिनि ने अपने ग्रन्थों में जिस प्रकार पूर्ववर्ती ग्रन्थों का उल्लेख किया है, उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि उसके समय तक व्याकरण के स्वरूप का विकास हो चुका था। पणिनि ने अपने ग्रंथ में 'आपिशलि' के नाम का उल्लेख किया है। पाणिनि (ई. पू. लगभग 550) के पहले कई व्याकरण लिखे जा चुके थे जिनमें केवल आपिशलि और काशकृत्स्न के कुछ सूत्र आज उपलब्ध हैं। आपिशलि तथा काशकृत्स्न को व्याकरण- सम्प्रदाय का जनक माना जाता है। पाणिनि ने अपने व्याकरण में प्रथमा, द्वितीया, षष्ठी, प्रत्यय, कृतु, तद्धित, अव्ययीभाव, बहुब्रीहि, आदि पारिभाषिक शब्दों का प्रयोग किया है, इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि पाणिनि के समय तक व्याकरण का पूर्ण विकसित हो चुकी थी।
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महर्षि पाणिनि - महान व्याकरण प्रवर्तक
महर्षि परिणय रचित अष्टाध्यायी व्याकरण का सर्वप्रथम ग्रंथ माना जाता है। पाणिनि विश्व के सबसे बड़े एवं महान व्याकरणविद् हैं। कई विदेशी व्याकरणाचार्य एवं भाषा-विदों ने भी उनकी प्रशंसा अपने ग्रन्थों में की है। इन्हीं में से एक आधुनिक भाषा-विज्ञान के जनक कहे जाने वाले Leonard Bloomfield ने अपनी पुस्तक 'Language' में पणिनि कृत 'अष्टाध्यायी' की अपने मुक्तकंठ से प्रशंसा करते हुए लिखा है- "यह व्याकरण जो लगभग 350 ई.पू. के आसपास की है। 250 ई.पू. मानव बुद्धि के सबसे महान स्मारकों में से एक है... "आज कोई अन्य भाषा नहीं है जिसमें इतना सटीक वर्णन किया गया है।"
महर्षि पणिनि रचित 'अष्टाध्यायी' के अतिरिक्त पाणिनि ने अपने अन्य तीन ग्रन्थ - 'धातुपाठ', 'गणपाठ' एवं 'उणादि-सूत्र' की रचना की। महर्षि पाणिनि द्वारा रचित 'अष्टाध्यायी' 2500 वर्ष बाद आज भी महत्व है। मानक हिन्दी भाषा की पारिभाषिक शब्दावली के लिए इसी व्याकरण को आधार माना जाता है।
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R F Temre
rfhindi.com
(संबंधित जानकारी के लिए नीचे दिये गए विडियो को देखें।)
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