पाठ- 4 'साँवले सपनों की याद' (कक्षा-9 विषय-हिन्दी गद्य-खण्ड) पाठ का सारांश एवं प्रश्नोत्तर || Path 4 'Savle Sapno ki Yad'
पाठ सारांश-
मौत के पंखों पर सवार साँवले सपनों के हुजूम के आगे सालिम है। अब ये जिंदगी से पलायन कर अपनी अंतिम यात्रा पर निकल पड़े हैं। अब उन्हें जगाना सम्भव नहीं है। आदमी की भूल को दूर करने के लिए उन्होंने कहा था कि पक्षियों को आदमी की नजर से देखना उचित नहीं है। वे पक्षियों की आवाज के मीठे संगीत से रोमांचित हो उठते थे। श्रीकृष्ण ने वृन्दावन में पता नहीं कब रासलीला की थी, गोपियों से शरारत की थी, मक्खन लूटा था, मटकी फोड़ी थी। यह भी अज्ञात है कि उन्होंने कब दिल धड़काने वाली बन्सी बजाई थी जिससे वहाँ की दुनिया संगीतमय हो गई थी। लेकिन वृन्दावन में आज भी यमुना का साँवला पानी उस घटनाक्रम की पूरी याद दिला देगा। कृष्ण की बंशी के जादू से वृन्दावन कभी खाली नहीं रहा। लेखक को इसी क्रम में याद आता कि कमजोर शरीर वाले सालिम अली सौ वर्ष के होने ही वाले थे कि चल बसे। पता नहीं वे यात्राओं से थक गए थे या कैंसर उनकी मौत का कारण बना। किन्तु अन्तिम समय तक उनकी आँखों की रोशनी पक्षियों को तलाशने और उनकी हिफाजत को समर्पित रही। 'वर्ड वाचर' सालिम अली की जमीन से लेकर आसमान तक को छू लेने वाली नजरों में ऐसा जादू था जो सारी प्रकृति को अपने घेरे में बाँध लेता था। वे प्रकृति को अपने प्रभाव में लाने के कायल थे। प्रकृति की हँसती-खेलती रहस्य भरी दुनिया को गढ़ने में उनकी जीवन साथी तसमीना ने भी पूरी मदद की थी।
एक दिन सालिम अली ने प्रधानमंत्री चौधरी चरणसिंह से मिलकर पर्यावरण खतरों का चित्र प्रस्तुत किया तो प्रधानमंत्री की आँखें नम हो उठी थीं। अब न सालिम अली हैं, न चौधरी साहब, अब बरफीली जमीनों पर जीने वाले पक्षियों की वकालत कौन करेगा। लेखक को याद आता है कि प्रकृति प्रेंमी लॉरेंस के मरने पर जब उनकी पत्नी से लॉरेंस के बारे में कुछ लिखने को कहा गया तो उन्होंने उत्तर दिया कि मेरी छत पर बैठने वाली गौरैया उनके बारे में ढेर सारी बातें जानती है। इसी प्रकार सम्भव है सालिम अली की छत पर बैठने वाली गौरैया भी उनके बारे में अधिक जानकारी रखती हो।
पहेली के समान जीवन जीने वाले सालिम अली से बचपन में एक गौरैया एयरगन से घायल होकर गिर गई थी। यह घटना ही उन्हें खोज के रास्ते पर ले जाने वाली बनी। वे नैसर्गिक जिंदगी का रूप बन गए थे। उनके परिचित आज भी अनुभव करते हैं कि वे पक्षियों की खोज में निकले हैं। वे खोजपूर्ण नतीजे लेकर आएँगे। सालिम अली तुम लौटोगे क्या?
लेखक परिचय
जाबिर हुसैन
जाबिर हुसैन का जन्म सन् 1945 में गाँव नौनहीं राजगीर, जिला नालंदा, बिहार में हुआ। वे अंग्रेज़ी भाषा एवं साहित्य के प्राध्यापक रहे। सक्रिय राजनीति में भाग लेते हुए 1977 में मुंगेर से बिहार विधानसभा के सदस्य निर्वाचित हुए और मंत्री बने। सन् 1995 से बिहार विधान परिषद् के सभापति हैं।
जाबिर हुसैन हिंदी, उर्दू तथा अंग्रेज़ी-तीनों भाषाओं में समान अधिकार के साथ लेखन करते रहे हैं। उनकी हिंदी रचनाओं में जो आगे हैं, डोला बीबी का मज़ार, अतीत का चेहरा, लोगों, एक नदी रेत भरी प्रमुख हैं।
अपने लंबे राजनैतिक-सामाजिक जीवन के अनुभवों में उपस्थित आम आदमी के संघर्षों को उन्होंने अपने साहित्य में प्रकट किया है। संघर्षरत आम आदमी और विशिष्ट व्यक्तित्वों पर लिखी गई उनकी डायरियाँ चर्चित-प्रशंसित हुई हैं। जाबिर हुसैन ने डायरी विधा में एक अभिनव प्रयोग किया है जो अपनी प्रस्तुति, शैली और शिल्प में नवीन है।
प्रमुख गद्यांशों की ससंदर्भ व्याख्या
[1] इस हुजूम में आगे-आगे चल रहे हैं, सालिम अली। अपने कंधों पर, सैलानियों की तरह अपने अंतहीन सफर का बोझ उठाए। लेकिन यह सफर पिछले तमाम सफरों से भिन्न है। भीड़-भाड़ की जिंदगी और तनाव के माहौल से सालिम अली का यह आखिरी पलायन है। अब तो वो उस वन-पक्षी की तरह प्रकृति में विलीन हो रहे हैं, जो जिंदगी का आखिरी गीत गाने के बाद मौत की गोद में जा बसा हो।
संदर्भ― प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक के 'साँवले सपनों की याद' पाठ से लिया गया है। इसके लेखक जाबिर हुसैन हैं।
प्रसंग― इस गद्यांश में सालिम अली की अन्तिम यात्रा का भावपूर्ण वर्णन करते हुए उनकी प्रमुख विशेषताओं को इंगित किया है।
व्याख्या― इस भीड़ भरे जन समूह में सबसे आगे सालिम अली चल रहे हैं। यह उनकी अन्तिम यात्रा है जिसमें वे अपने कन्धों पर घुमक्कड़ों की तरह सारा सामान लादे हुए हैं। उनकी यह यात्रा पहली सभी यात्राओं से अलग है। इस दुनिया की जनसमूह की भीड़-भाड़ तथा विभिन्न प्रकार के दबावों से मुक्त होने की यह अन्तिम यात्रा है। अब वे वैसे ही प्रकृति में समा रहे हैं जैसे कोई वन का पक्षी अपनी जिंदगी का अन्तिम गीत गाकर मृत्यु की गोद में जा पहुँच हो अब वे लौटकर नहीं आएँगे।
विशेष― (1) सालिम अली की शव यात्रा का भावात्मक अंकन हुआ है।
(2) सरल सुबोध खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है।
(3) भावात्मक शैली का सौन्दर्य दर्शनीय है।
[2] लोग पक्षियों को आदमी की नजर से देखना चाहते हैं। यह उनकी भूल है, ठीक उसी तरह, जैसे जंगलों और पहाड़ों, झरनों और आबशारों को वो प्रकृति की नजर से नहीं, आदमी की नजर से देखने को उत्सुक रहते हैं। भला कोई आदमी अपने कानों से पक्षियों की आवाज का मधुर संगीत सुनकर अपने भीतर रोमांच का सोता फूटता महसूस कर सकता है।
एहसास की ऐसी ही एक ऊबड़-खाबड़ जमीन पर जन्मे मिथक का नाम है, सालिम अली।
संदर्भ― पूर्वानुसार।
प्रसंग― इस गद्यांश में प्रकृति प्रेमी सालिम अली की भावात्मक सूक्ष्म अनुभूति की ओर संकेत किया गया है।
व्याख्या― पक्षी विज्ञानी सालिम अली मानते थे कि पक्षियों को आदमी की दृष्टि से देखना बहुत बड़ी भूल है पक्षियों को आदमी की नजर से देखना उसी प्रकार की भूल है जैसे आदमी वनों पर्वतों, झरनों, सोतों को प्रकृति की दृष्टि से न देखकर आदमी की दृष्टि से देखने। के लिए लालायित रहते हैं। वस्तुतः पक्षियों को पक्षियों की नजर से ही देखना चाहिए। सालिम अली में यह क्षमता थी इसीलिए वे पक्षियों के स्वर का मीठा संगीत सुनकर रोमांचित हो उठते थे। पक्षियों की मधुर आवाज से ही वे ऐसा अनुभव करते थे जैसे उनके हृदय में रोमांच का सोता फूट रहा हो। सालिम अली इसी तरह की ऊँची-नीची धरती पर पैदा होने वाले मिथक थे वे पक्षियों के सहज स्वरों में नये-नये अर्थ खोजते थे।
विशेष― (1) प्रकृति विज्ञानी सालिम अली की पक्षियों की समझ को बताया गया है।
(2) इस अंश से स्पष्ट है कि सालिम अली अति सूक्ष्म अनुभूतिशील थे।
(3) भावात्मक शैली में विषय का प्रतिपादन किया है।
(4) साहित्यिक खड़ी बोली को अपनाया है।
[3] उन जैसा 'बर्ड वाचर' शायद ही कोई हुआ हो। लेकिन एकांत क्षणों में सालिम अली बिना दूरबीन भी देखे गए हैं। दूर क्षितिज तक फैली जमीन और झुके आसमान को छूने वाली उनकी नजरों में कुछ-कुछ वैसा ही जादू था, जो प्रकृति को अपने घेरे में बाँध लेता है। सालिम अली उन लोगों में थे जो प्रकृति के प्रभाव में आने के बजाए प्रकृति को अपने प्रभाव में लाने के कायल होते हैं। उनके लिए प्रकृति में हर तरफ हँसती-खेलती रहस्य भरी दुनिया पसरी थी।
संदर्भ― पूर्वानुसार।
प्रसंग― इस गद्यांश में सालिम अली की प्रकृति को भी अपने प्रभाव में लेने की क्षमता को बताया गया है।
व्याख्या― सालिम की पक्षियों की खोज करने की अभूतपूर्व क्षमता की ओर संकेत करते हुए लेखक कहते हैं कि उन जैसा बर्ड वाचर खोज पाना मुश्किल है। जब वे अकेले होते थे तो कई बार उनके पास पक्षियों को देखने वाली दूरबीन नहीं होती थी। बिना दूरबीन के ही वे समस्त पृथ्वी और आकाश को अपनी जादुई नजर से देख लेते थे। उनकी नजर में कुछ इस प्रकार का जादू था कि वे समस्त प्रकृति को अपने घेरे में बाँध लेता था। उनमें वह क्षमता थी जिसे प्रकृति भी प्रभावित नहीं कर पाती थी। ठीक इसके विपरीत वे प्रकृति को अपने प्रभाव में ले लेते थे। उनके चारों ओर मुस्कान के साथ क्रीड़ा करती भेद भरी प्रकृति का जगत पसरा था। वे प्रकृति के रहस्यों को जानने में सक्षम थे।
विशेष― (1) इस अंश में सालिम अली की प्रकृति को प्रभावित कर लेने वाली क्षमता पर प्रकाश डाला गया है।
(2) सालिम अली संसार के अनोखे बर्ड वाचर थे।
(3) साहित्यिक खड़ी बोली में विषय को समझाया गया है।
(4) भावात्मक शैली का प्रयोग हुआ है।
प्रश्न अभ्यास-
प्रश्न 1. किस घटना ने सालिम अली के जीवन की दिशा को बदल दिया और उन्हें पक्षी प्रेमी बना दिया?
उत्तर - बचपन में सालिम अली की एयरगन से एक नीले कण्ठ की गौरैया घायल हो गई थी। इससे वे गौरैया के बारे में जानने के इच्छुक हुए, और इनके जीवन की दिशा पक्षियों की खोज की हो गई। इन्होंने सारा जीवन पक्षियों की खोज में लगा दिया। वे पक्षी विज्ञानी हो गए।
प्रश्न 2. सालिम अली ने पूर्व प्रधानमंत्री के सामने पर्यावरण से सम्बन्धित किन संभावित खतरों का चित्र खींचा होगा कि जिससे उनकी आँखें नम हो गई होंगी?
उत्तर - सालिम अली ने प्रधानमंत्री के सामने केरल की साइलेंट वैली को रेगिस्तानी हवाओं के झोंकों से बचाने का अनुरोध किया होगा। उन्होंने उन्हें बताया होगा कि इन झोंकों से वहाँ का पर्यावरण दूषित हो जाएगा। पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति चौधरी चरण सिंह की आँखें इसी से नम हो गई होंगी।
प्रश्न 3. लॉरेंस की पत्नी फ्रीडा ने ऐसा क्यों कहा होगा कि 'मेरी छत पर बैठने वाली गौरैया लॉरेंस के बारे में ढेर सारी बातें जानती है।'
उत्तर - लॉरेंस का प्रकृति से बहुत गहरा लगाव था। वे प्रकृति की ओर लौटने के हिमायती थे। इससे पुष्ट होता है कि पेड़-पौधे, पक्षियों से उनकी आत्मिक नजदीकी रही होगी, हो सकता है कि पत्नी फ्रीडा से भी अधिक नजदीक पक्षी ही रहे हों। वे पक्षियों के बीच ही रहते होंगे। इसी को ध्यान में रखकर फ्रीडा ने कहा होगा कि मेरी छत पर बैठने वाली गौरैया लॉरेंस के बारे में ढेर सारी बातें जानती हैं।
प्रश्न 4. आशय स्पष्ट कीजिए-
(क) वो लॉरेंस की तरह नैसर्गिक जिंदगी का प्रतिरूप बन गए थे।
उत्तर -
आशय - लॉरेंस प्रकृति प्रेंमी थे। प्रकृति से उनका गहरा जुड़ाव था। वे प्रकृति की ओर लौटने के हिमायती थे। बचपन की एक घटना ने सालिम अली को भी प्रकृति प्रेंमी बना दिया था। वे जिंदगी भर प्रकृति एवं पक्षियों की खोज में लगे रहे। इसी कारण उनकी जिंदगी भी प्रकृति प्रेंमी लॉरेंस की तरह प्रकृति की प्रतिछाया बन गई थी। वे प्रकृति का पर्याय बन गए थे।
(ख) कोई अपने जिस्म की हरारत और दिल की घड़कन देकर भी उसे लौटाना चाहे तो वह पक्षी सपनों के गीत दोबारा कैसे गा सकेगा ?
आशय- सालिम अली को प्रकृति से गहरा लगाव था। उनका प्रकृति प्रेम समुद्र के टापू की तरह उथला नहीं था। उनके प्रकृति प्रेम में सागर जैसी अथाह गहराई थी। टापू उथला होता जबकि सागर गहरा। सलीम अली में हृदय के प्रत्येक कोने में प्रकृति प्रेम था। पेड़ पौधे पक्षी वनस्पति सब कुछ उनके प्रिय थे। वह प्रकृतिमय हो गए थे। उनका जीवन प्रकृति का प्रतिरूप बन गया था।
प्रश्न 5. इस पाठ के आधार पर लेखक की भाषा-शैली की चार विशेषताएँ बताइए।
उत्तर - इस पाठ के आधार पर लेखक की भाषा-शैली की चार विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
(1)इस पाठ की भाषा सरल, सुबोध खड़ी बोली है जहाँ-तहाँ उर्दू, अंग्रेजी के शब्दों का भी प्रयोग आवश्यकता के अनुसार हुआ है।
(2)इस पाठ की चित्रोपम, सजीव तथा जीवंत भाषा शैली में कौतूहल जगाने की पूरी-पूरी क्षमता है।
(3)भावात्मकता, आत्मीयता, प्रकृति प्रेम को सम्प्रेषित करने में पाठ की भाषा शैली सक्षम है।
(4)संस्मरण शैली ने इस पाठ को प्रभावी बना दिया है।
प्रश्न 6. इस पाठ में लेखक ने सालिम अली के व्यक्तित्व का जो चित्र खींचा है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर - सालिम कमजोर शरीर वाले व्यक्ति थे। वे सौ वर्ष के होने वाले थे। वे लगातार यात्राएँ करते रहते थे। वे पक्षियों की खोज में चाहे जब निकल जाते थे। उनकी आँखों की रोशनी कम नहीं हुई थी। वे पक्षियों की तलाश तथा उनकी हिफाजत को समर्पित थे वे प्रकृति से प्रभावित नहीं होते थे अपितु वे प्रकृति को अपने प्रभाव में ले लेते थे। उनके लिए प्रकृति में हर तरफ एक हँसती-खेलती रहस्य भरी दुनिया पसरी थी। उनका जीवन काफी रोमांचकारी था। प्रकृति तथा पक्षियों के प्रति उनके मन में कभी तृप्त न होने वाली जिज्ञासा थी।
प्रश्न 7. 'साँवले सपनों की याद' शीर्षक की सार्थकता पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर- 'साँवले सपनों की याद' शीर्षक में साँवले शब्द उदासी के लिए आया है। लेखक अपने मित्र सालिम अली की मृत्यु से उदास हैं। यह संस्मरण उनकी मृत्यु के समय का है। यह शीर्षक विषय का आभास देने वाला है। मृत्यु की उदासी के साथ यमुना के साँवले पानी, साँवले रंग वाले कृष्ण का भी उल्लेख इसमें हुआ है। यह शीर्षक कौतूहल जगाने वाला है, आकर्षित करने वाला है तथा छोटा भी है। कुल मिलाकर शीर्षक सार्थक है।
रचना और अभिव्यक्ति
प्रश्न 8. प्रस्तुत पाठ सालिम अली की पर्यावरण के प्रति चिन्ता को भी व्यक्त करता है। पर्यावरण को बचाने के लिए आप कैसे योगदान दे सकते हैं?
उत्तर-
(1)पर्यावरण को बचाने के लिए हम कई तरह से योगदान कर सकते हैं। प्रदूषण प्रमुख रूप से जलवायु एवं ध्वनि में होता है। इसलिए हमें इन तीनों को प्रदूषण से बचाना है।
(2)हमें हानिकारक धुआँ छोड़ने वाले वाहनों के प्रयोग से बचना चाहिए। भट्टी, चूल्हे, आदि से वायु को दूषित नहीं करना है।
(3)जल के स्रोतों कुआँ, नल, तालाब, पम्प आदि के पास गन्दगी नहीं करेंगे।
(4)घर, बाहर पेड़-पौधे लगवायेंगे। औरों को हरियाली बढ़ाने के लिए प्रेरित करेंगे। तेज आवाज के वाद्य यन्त्रों का प्रयोग नहीं करेंगे तथा औरों को तेज आवाज करने से रोकेंगे।
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(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण
होगी।)
Thank you.
R F Temre
rfhindi.com
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