विद्या ददाति विनयम्

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पाठ - 10 'वाख' (विषय हिन्दी काव्य खण्ड) कक्षा 9 भावार्थ एवं प्रश्नोत्तर || Path 2 'Vakh' Arth and Question Answer

पद्यांशों की व्याख्या

पद (1) रस्सी कच्चे धागे की,
खींच रही मैं नाव।
जाने कब सुन मेरी पुकार,
करें देव भवसागर पार।
पानी टपके कच्चे सकोरे,
व्यर्थ प्रयास हो रहे मेरे।
जी में उठती रह-रह हूक,
घर जाने की चाह है घेरे।
संदर्भ - यह पद्य हमारी पाठ्यपुस्तक के 'वाख' पाठ से लिया गया है। इसकी कवयित्री ललद्यद हैं।
प्रसंग - इसमें ईश्वर मिलन के प्रयासों की हीनता का उल्लेख किया गया है।
व्याख्या - भक्तिभाव से परिपूर्ण कवयित्री कहती हैं कि मैं इस जीवन रूपी नाव को कमजोर धागों की रस्सी से खींचने का प्रयत्न कर रही हूँ। पता नहीं परमात्मा मेरी करुणापूर्ण पुकार को कब सुनेंगे और मुझे इस संसार रूपी समुद्र से पार करेंगे। जैसे मिट्टी के बिना पकाए गए सकोरे (बर्तन) से पानी टपकता रहता है वैसे ही ईश्वर को पाने के मेरे सभी प्रयास बेकार सिद्ध हो रहे हैं। मेरे हृदय में पुनः पुनः करुण पुकार उठ रही है कि मेरे प्रयत्न असफल क्यों हो रहे हैं? मेरे हृदय में परम-पिता परमात्मा के पास जाने की उत्कट इच्छा है।
विशेष - ( 1 ) भक्त हृदय का परमात्मा से मिलन न हो पाने का कष्ट प्रकट हुआ है।
(2) रूपक तथा अनुप्रास अलंकार।
(3) सरल, सुबोध भाषा का प्रयोग हुआ है।

पद (2) आई सीधी राह से,
गई न सीधी राह।
सुषुम सेतु पर खड़ी थी,
बीत गया दिन आह?
जेब टटोली, कौड़ी न पाईं।
माझी को दूँ क्या उतराई?
संदर्भ - यह पद्य हमारी पाठ्यपुस्तक के 'वाख' पाठ से लिया गया है। इसकी कवयित्री ललद्यद हैं।
प्रसंग - सद्कर्म ही जीव को भवसागर से पार करते हैं। इसलिए यहाँ श्रेष्ठ कर्मों का महत्व बताया गया है।
व्याख्या - कवयित्री अपने गत जीवन के कर्मों पर विचार करते हुए कहती हैं कि जब मैं इस संसार में आई थी तब शुद्ध, निर्मल, निर्विकार थी। किन्तु इस संसार में आकर मैंने स्वार्थ, छल, कपट, बेईमानी आदि विकार पाल लिए। मैं इन्हीं में अपने जीवन को लगाए रही। यही कारण है कि जब मैं सुषुम्ना रूपी पुल पर पहुँची तो वहीं खड़ी रह गई। इतने में ही जीवन रूपी दिन समाप्त हो गया और मैंने भवसागर पार करने के लिए अपने सद्कर्मों का विवरण देखा तो उसमें एक भी श्रेष्ठ कार्य नहीं मिला। मैं सोचती रह गई कि जब मेरे पास सद्कर्मों रूपी मेहनताना है ही नहीं तो परमात्मा रूपी नाविक को भवसागर पार करने के लिए क्या दूँ।
विशेष - (1) संसार रूपी सागर पार करने के लिए सद्कर्मों की आवश्यकता पर बल दिया गया है।
(2) रूपक एवं अनुप्रास अलंकार।
(3) व्यावहारिक भाषा का प्रयोग हुआ है।

पद (3) थल-थल में बसता है शिव ही,
भेद न कर क्या हिन्दू-मुसलमा।
ज्ञानी है तो स्वयं को जान,
यही है साहिब से पहचान॥
संदर्भ - यह पद्य हमारी पाठ्यपुस्तक के 'वाख' पाठ से लिया गया है। इसकी कवयित्री ललद्यद हैं।
प्रसंग - यहाँ बताया गया है कि ईश्वर सर्वत्र मौजूद है। स्वयं की पहचान करके ही ईश्वर को पाया जा सकता है।
व्याख्या - कवयित्री जीव को समझाते हुए कहती हैं कि ईश्वर तो सर्वत्र व्याप्त है इसलिए हिन्दू-मुसलमानों में भेद करना उचित नहीं है। वे कहती हैं - हे जीव! यदि ज्ञानवान है तो अपने वास्तविक रूप की पहचान कर। यदि तू स्वयं को पहचान लेगा तो परमात्मा का भी ज्ञान तुझे हो जाएगा। क्योंकि परमात्मा तो हर जीव में मौजूद रहते हैं। स्वयं को पहचानना ही ईश्वर को जान लेना है।

कवि परिचय

कश्मीरी भाषा की लोकप्रिय संत कवयित्री ललद्यद का जन्म सन् 1320 के लगभग कश्मीर स्थित पाम्पोर के सिमपुरा गाँव में हुआ था। उनके जीवन के बारे में प्रामाणिक जानकारी नहीं मिलती। ललद्यद को लल्लेश्वरी, लला, ललयोगेश्वरी, ललारिफा आदि नामों से भी जाना जाता है। उनका देहांत सन् 1391 के आसपास माना जाता है। ललद्यद की काव्य-शैली को 'वाख' कहा जाता है। जिस तरह हिन्दी में 'कबीर के दोहे', 'मीरा के पद', 'तुलसी की चौपाई' और 'रसखान के सवैये' प्रसिद्ध हैं, उसी तरह ललद्यद के 'वाख' प्रसिद्ध हैं। अपने 'वाखों' के ज़रिए उन्होंने जाति और धर्म की संकीर्णताओं से ऊपर उठकर भक्ति के ऐसे रास्ते पर चलने पर ज़ोर दिया जिसका जुड़ाव जीवन से हो। उन्होंने धार्मिक आडम्बरों का विरोध किया और प्रेम को सबसे बड़ा मूल्य बताया।
लोक-जीवन के तत्वों से प्रेरित ललद्यद की रचनाओं में तत्कालीन पंडिताऊ भाषा संस्कृत और दरबार के बोझ से दबी फ़ारसी के स्थान पर जनता की सरल भाषा का प्रयोग हुआ है। यही कारण है कि ललद्यद की रचनाएँ सैकड़ों सालों से कश्मीरी जनता की स्मृति और वाणी में आज भी जीवित हैं। वे आधुनिक कश्मीरी भाषा का प्रमुख स्तंभ मानी जाती हैं।

प्रश्न अभ्यास

प्रश्न 1. कवयित्री द्वारा मुक्ति के लिए किए जाने वाले प्रयास व्यर्थ क्यों जा रहे हैं?
उत्तर - कवयित्री के परिपक्व प्रयास नहीं हैं। उसके कच्चे, अधूरे प्रयास हैं। जैसे मिट्टी के कच्चे सकोरे से पानी टपकता है वैसे ही उनके कच्चे प्रयासों से मुक्ति नहीं मिल पा रही है। साधना के द्वारा ठोस प्रयत्नों से मुक्ति मिलना सम्भव है।

प्रश्न 2. कवयित्री का 'घर जाने की चाह' से क्या तात्पर्य है?
उत्तर - घर जाने की चाह का तात्पर्य है कि कवयित्री इस संसार सागर से मुक्त होकर परमात्मा से मिलने की इच्छुक हैं। वे ईश्वर से साक्षात्कार करने के लिए आतुर हैं।

प्रश्न 3. भाव स्पष्ट कीजिए -
(क) जेब टटोली कौड़ी न पाई।
उत्तर - सामान्यतः रुपये पैसे जेब में रखे जाते हैं वैसे ही जीवात्मा द्वारा किए गए सद्कर्मो का संचय होता है। जब जीवात्मा के सद्कर्म होते हैं तो उसे संसार के कष्टों से छुटकारा मिल जाता है। कवयित्री कहती हैं कि जब जीवात्मा ने अपने कर्मों को झाँककर देखा तो उसके द्वारा किया गया एक भी श्रेष्ठ कर्म नहीं मिला। इसलिए बिना सद्कर्मों के मुक्ति मिलन असम्भव है। उसकी सद्कर्मों की जेब खाली थी।

(ख) खा-खाकर कुछ पाएगा नहीं।
न खाकर बनेगा अहंकारी॥
उत्तर - यहाँ जीवात्मा को सचेत किया गया है कि यदि खाने में ही जीवन गँवा दिया तो कुछ भी प्राप्त नहीं होगा। और यदि खाना पूरी तरह बन्द कर दिया तो निराहारी होने का अहंकार तुझमें भर जाएगा। ये दोनों ही स्थितियाँ अच्छी नहीं हैं। इन दोनों ही आडम्बरों से कुछ भी प्राप्त नहीं होगा। इसलिए जीव जब संयम के द्वारा सम-भाव वाला हो जाएगा तब माया के बन्धनों से मन छूटेगा तथा मोक्ष प्राप्त कर पाएगा।

प्रश्न 4. बन्द द्वार की सांकल खोलने के लिए ललद्यद ने क्या उपाय सुझाया है?
उत्तर - कवयित्री मानती हैं कि हर जीव में ईश्वर विद्यमान है। अहंकार, स्वार्थ आदि मायावी अंधकार के कारण जीव उनके दर्शन कर पाता है। जब भी मायावी अंधकार पर विजय प्राप्त कर लेगा ज्ञानी होकर अज्ञान को दूर भगा देगा, तब उसमें सभी प्राणियों के प्रति समभाव हो जाएगा। उसके बाद उसके अंतःकरण के बन्द दरवाजे की सांकल खुल जाएगी। उसका मन ईश्वर भक्ति में रम जाएगा। इस तरह कवयित्री ने समभावी होने का उपाय सुझाया है जिससे बंद दरवाजे की सांकल खुलेगी।

प्रश्न 5. 'ज्ञानी' से कवयित्री का क्या अभिप्राय है?
उत्तर - ज्ञानी वह होता है जो आत्मा में झाँककर ईश्वर का साक्षात्कार कर सके। संसार के प्रत्येक जीव में परमात्मा व्याप्त हैं। अज्ञान के अंधकार के कारण जीव उनका साक्षात्कार नहीं कर पाता है। जब जीव का अज्ञान मिट जाता है तो ज्ञानवान हो जाता है और आत्मावलोकन कर ईश्वर से साक्षात्कार कर लेता है। इस प्रकार कवयित्री ने अज्ञान से मुक्त जीव को ज्ञानी माना है जिसे आत्मा में परमात्मा के दर्शन हो जाते हैं।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 6. हमारे संतों, भक्तों और महापुरुषों ने बार-बार चेताया है कि मनुष्यों में परस्पर किसी भी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं होता, लेकिन आज भी हमारे समाज में भेदभाव दिखाई देता है -
(क) आपकी दृष्टि में इस कारण देश और समाज की क्या हानि हो रही है?
उत्तर - हमारे राष्ट्र नायकों ने समाज के उत्थान के लिए भेदभाव को घातक बताया है। भेदभाव के कारण जातीयता, साम्प्रदायिकता, धार्मिक कट्टरता आदि को बढ़ावा मिलता है। इससे सामाजिक समरसता समाप्त होती है। इससे पारस्परिक कटुता, द्वेष एवं कलह आदि बढ़ते हैं इनके कारण उपद्रव भी हो जाते हैं जिनसे धन, जन आदि की हानि होती है। इस तरह आपसी भेदभाव से समाज की बहुत हानि होती है।

(ख) आपसी भेदभाव को मिटाने के लिए अपने सुझाव दीजिए।
उत्तर - मेरे विचार से हमें धर्म, जाति, वर्ग आदि के आधार पर भेदभाव फैलाने वाले तत्वों को चिह्नित करके उन पर नियंत्रण करना चाहिए। इसमें शासन का भी सहयोग लिया जा सकता है। जन-सामान्य का स्वभाव उपद्रव या झगड़े का नहीं होता है। कुछ स्वार्थी तत्व अपना उल्लू सीधा करने के लिए उपद्रव, कटुता फैलाकर लोगों में आपसी भेदभाव पैदा करते हैं। इन तत्वों पर निगरानी रखनी चाहिए तथा इनकी हरकतों की जानकारी शासन को देनी चाहिए। साथ ही आपसी सद्भाव और सौहार्द्र बढ़ाने के प्रयास करने चाहिए। पर्वों, त्यौहारों पर आपस में मिलना चाहिए, कार्यक्रम करने चाहिए तथा भाईचारा बढ़ाना चाहिए। धर्म, जाति आदि के भेदभाव को बंद करने के प्रयत्न करने चाहिए।

कक्षा 9 क्षितिज (हिन्दी) के गद्य खण्ड के पाठ, उनके सारांश एवं अभ्यास
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2. सम्पूर्ण कहानी- 'दो बैलों की कथा' - प्रेंमचन्द
3. दो बैलों की कथा (कहानी) प्रेंमचन्द
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7. साँवले सपनों की याद– जाबिर हुसैन, प्रमुख गद्यांश एवं प्रश्नोत्तर।
8. नाना साहब की पुत्री देवी मैना को भस्म कर दिया गया — चपला देवी, Class 9th Hindi क्षितिज पाठ-5 अभ्यास व प्रश्नोत्तर
9. पाठ 6 'प्रेंमचंद के फटे जूते' (विषय- हिन्दी गद्य-खण्ड कक्षा- 9) पाठ का सारांश एवं प्रश्नोत्तर
10. पाठ- 7 'मेरे बचपन के दिन' (विषय- हिन्दी कक्षा- 9 गद्य-खण्ड) सारांश एवं प्रश्नोत्तर

कक्षा 9 क्षितिज (हिन्दी विशिष्ट) के पद्य खण्ड के पाठ, उनके सार, अभ्यास व प्रश्नोत्तर को पढ़ें।
1. पाठ 9 साखियाँ और सबद (पद) भावार्थ एवं प्रश्नोत्तर
2. पाठ 10 'वाख' भावार्थ एवं प्रश्नोत्तर
3. पाठ 11 'सवैये' भावार्थ एवं प्रश्नोत्तर
4. पाठ 12 'कैदी और कोकिला' भावार्थ एवं प्रश्नोत्तर
5. पाठ 13 'ग्रामश्री' भावार्थ एवं प्रश्नोत्तर
6. पाठ 14 चंद्र गहना से लौटती बेर केदारनाथ अग्रवाल भावार्थ एवं अभ्यास
7. पाठ - 15 'मेघ आए' (विषय - हिन्दी काव्य-खण्ड कक्षा- 9) सारांश, भावार्थ एवं प्रश्नोत्तर
8. पाठ - 16 'यमराज की दिशा' (विषय - हिन्दी काव्य-खण्ड कक्षा- 9) सारांश, भावार्थ एवं प्रश्नोत्तर
9. बच्चे काम पर जा रहे हैं' (पाठ - 17 विषय - हिन्दी काव्य-खण्ड कक्षा- 9) सारांश, भावार्थ एवं प्रश्नोत्तर

कक्षा 9 संस्कृत के पाठों व प्रश्नोत्तर पढ़ें।
1. पाठः प्रथमः 'भारतीवसन्तगीतिः' (विषय - संस्कृत कक्षा- 9) सारांश, भावार्थ एवं प्रश्नोत्तर
2. पाठः द्वितीयः 'स्वर्णकाकः' (विषय - संस्कृत कक्षा- 9) सारांश, भावार्थ एवं प्रश्नोत्तर
3. पाठः तृतीयः 'गोदोहनम्' विषय - संस्कृत (कक्षा- 9) सारांश, भावार्थ एवं प्रश्नोत्तर

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I Hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
rfhindi.com

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