विद्या ददाति विनयम्

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पाठ - 13 'ग्राम श्री' (विषय - हिन्दी काव्य-खण्ड कक्षा- 9) सारांश, भावार्थ एवं प्रश्नोत्तर || Path 5 'Graam Shri'

भाव (सारांश)

'ग्रामश्री' में प्राकृतिक सौंदर्य का मनोरम चित्रण हुआ है। खेतों में दूर-दूर तक फैली हरियाली, धूप और नीले आकाश का सौंदर्य मनोहारी है। जौ, गेहूँ की बालियाँ देखकर वसुंधरा रोमांचित हो उठी है। अरहर, सन आदि की स्वर्णिम फलियों की करधनियाँ बहुत आकर्षक लग रही हैं। पीले रंग के फूलों वाली सरसों की गंध चारों ओर फैली हुई है। मटर की भरी फलियों और रंगीन फूलों पर मंडराती तितलियों को देखकर मन मुग्ध हो गया है। बौराए आम, पत्ते गिराते ढाक-पीपल, महकते कटहल, जामुन, झरबेरी, फूलते आड़, नींबू, अनार, बैंगन आदि सहज ही मन को मोहित कर रहे हैं। अमरूद एवं बेर पक गए हैं, आँवले के फल डालों पर लगे हैं। पालक लहलहा रहा है, धनिया महक रहा है और लौकी, सेम की बेल चारों ओर फैली है। टमाटर सुर्ख लाल हो गए हैं, और मिर्च फूल गई हैं गंगातट की बालू पर तरबूजे की खेती मनोरम लग रही है, बगुले अपने बाल संवार रहे हैं। चकवा जल में तैर रहे हैं। जाड़े की अंधेरी रात में ग्रामश्री अलसायी-सी स्वप्नों में खोई है। समग्र प्राकृतिक शोभा दर्शक के मन को हर लेती है।

लेखक परिचय-
सुमित्रानन्दन पंत

सुमित्रानंदन पंत का जन्म उत्तरांचल के अल्मोड़ा जिले के कौसानी गाँव में सन् 1900 में हुआ। उनकी शिक्षा बनारस और इलाहाबाद में हुई। आज़ादी के आंदोलन के दौरान महात्मा गाँधी के आह्वान पर उन्होंने कालेज छोड़ दिया। छायावादी कविता के प्रमुख स्तंभ रहे सुमित्रानंदन पंत का काव्य-क्षितिज़ 1916 से 1977 तक फैला है। सन् 1977 में उनका देहावसान हो गया।

वे अपनी जीवन दृष्टि के विभिन्न चरणों में छायावाद, प्रगतिवाद एवं अरविन्द दर्शन से प्रभावित हुए। वीणा, ग्रंथि, गुंजन, ग्राम्या, पल्लव, युगांत, स्वर्ण किरण, स्वर्णधूलि, कला और बूढ़ा चाँद, लोकायतन, चिदंबरा आदि उनकी प्रमुख काव्य-कृतियाँ हैं। उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार एवं सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

पंत की कविता में प्रकृति और मनुष्य के अंतरंग संबंधों की पहचान है। उन्होंने आधुनिक हिन्दी कविता को एक नवीन अभिव्यंजना पद्धति एवं काव्यभाषा से समृद्ध किया। भावों की अभिव्यक्ति के लिए सटीक शब्दों के चयन के कारण उन्हें शब्द शिल्पी कवि कहा जाता है।

महत्वपूर्ण पद्यांशों की व्याख्या

पद्यांश (1)फैली खेतों में दूर तलक
मखमल की कोमल हरियाली,
लिपटी जिससे रवि की किरणें
चाँदी की सी उजली जाली !
तिनकों के हरे हरे तन पर
हिल हरित रुधिर है रहा झलक,
श्यामल भू तल पर झुका हुआ
नभ का चिर निर्मल नील फलक!

संदर्भ - प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के 'ग्रामश्री' पाठ से लिया गया है। इसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं।

प्रसंग - यहाँ हरी-भरी शस्यश्यामला धरती के भव्य सौंदर्य का अंकन हुआ है।

व्याख्या - खेतों में दूर-दूर तक मखमल के समान मुलायम हरियाली फैली हुई है। मखमल जैसी उस हरियाली में चाँदी की तरह सफेद जाली की तरह सूर्य की किरणें लिपटी हैं। भाव यह है कि जिस तरह मखमल के वस्त्रों में चाँदी की जाली जड़ी होती है उसी तरह खेतों में फैली हरियाली से सूरज की किरणें लिपटी हुई जान पड़ती हैं। फसलों के हरे तनों में हरा रक्त झलमला रहा है। धनधान्य से सम्पन्न पृथ्वी के घरातल पर आकाश का स्वच्छ नीला फलक झुका हुआ है। आशय यह कि फसलों से भरी धरती के कारण पृथ्वी और आकाश मिले हुए से प्रतीत हो रहे हैं।

विशेष - (1) धनधान्य से सम्पन्न वसुंधरा की शोभा का भव्य वर्णन हुआ है।
(2) कोमलकांत पदावली युक्त सुललित खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।
(3) उपमा, अनुप्रास तथा उत्प्रेक्षा ।

पद्यांश (2) रोमांचित सी लगती वसुधा
आई जौ गेहूँ में बाली,
अरहर सनई की सोने की
किंकिणियाँ हैं शोभाशाली ?
उड़ती भीनी तैलाक्त गंध
फूली सरसों पीली पीली,
लो, हरित धरा से झांक रही
नीलम की कलि, तीसी नीली।

संदर्भ - प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के 'ग्रामश्री' पाठ से लिया गया है। इसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं।

प्रसंग - इसमें पुष्पित और फलित वसुंधरा की शोभा वर्णित है।

व्याख्या - जौ और गेहूँ पर बालियाँ आ गई हैं इसलिए पृथ्वी रोमांचित सी प्रतीत हो रही है। अरहर और सनई की फलियों पर स्वर्णिम करधनियाँ शोभायमान हैं। वातावरण में सभी तरफ तैलमय गंध फैली है क्योकि सरसों के पीले-पीले फूल खिल रहे हैं। इधर हरी-भरी धरती से नीलम रत्न जैसी अलसी की कली ऊपर की ओर झाँक रही है। आशय यह है कि थोड़ी सी दिखने वाली अलसी की कली नीलम रत्न सी कौंध रही है।

विशेष - (1) फल, फूलों से सम्पन्न धरती की सुन्दरता का अंकन किया गया है।
(2) लालित्यमयी कोमलकांत पदावली युक्त खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।
(3) पुनरुक्ति- प्रकाश, उपमा एवं अनुप्रास अलंकार।

पद्यांश (3) अब रजत स्वर्ण मंजरियों से
लद गई आम्र तरु की डाली,
झर रहे ढाक, पीपल के दल,
हो उठी कोकिला मतवाली!
महके कटहल, मुकुलित जामुन,
जंगल में झरबेरी झूली,
फूले आडू, नींबू, दाड़िम,
आलू, गोभी, बैंगन, मूली !

संदर्भ - प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के 'ग्रामश्री' पाठ से लिया गया है। इसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं।

प्रसंग - पुष्पित और पल्लवित प्रकृति की शोभा का वर्णन किया गया है।

व्याख्या - कवि कहते हैं कि चाँदी और सोने की कांति वाले बौर से आम के पेड़ों की डालियाँ लद गई हैं। खक और पीपल के वृक्षों से पत्ते झड़ रहे हैं। इस अनोखे सौन्दर्य को देखकर कोयल मदमस्त हो उठी है। कटहल की गंध चारों ओर फैल गई है। जामुन पर भी अधखिले फूल सुशोभित हैं। जंगल में सभी तरफ झरबेरी पर बेर लटक रहे हैं आडू, नींबू, अनार, आलू, गोभी, बैंगन, मूली आदि फूल उठे हैं।

विशेष - (1) प्रकृति का मादक चित्रण हुआ है।
(2) भावानुरूप सुकुमार पदावली से युक्त खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।
(3) अनुप्रास अलंकार एवं पदमैत्री का सौन्दर्य दर्शनीय है।

पद्यांश (4) पीले मीठे अमरूदों में
अब लाल लाल चित्तियाँ पड़ीं,
पक गए सुनहले मधुर बेर,
अंबली से तरु की डाल जड़ी !
लहलह पालक, महमह धनिया,
लौकीऔ सेमफली, फैलीं
मखमली टमाटर हुए लाल,
मिरचों की बड़ी हरी थैली!

संदर्भ - प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के 'ग्रामश्री' पाठ से लिया गया है। इसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं।

प्रसंग - फल और सब्जियों की गंध आदि से परिपूर्ण पर्वतीय गाँव की शोभा का अंकन हुआ है।

व्याख्या - पीले रंग वाले मीठे अमरूदों में पूरी तरह पकने के कारण लाल चित्तियाँ पढ़ गई हैं। सुनहरे रंग के मीठे बेर पक गए हैं और छोटे-छोटे आंवलों से पेड़ की डालियाँ लद गई हैं। पालक लहलहा रहा है और धनिये की महक चारों ओर वातावरण को सुगन्धित कर रही है। लौकी तथा सेम की बेल इधर-उधर फैल गई हैं। मखमल जैसे टमाटर पूरी तरह पककर लाल हो गए हैं और मिरचों की हरी थैलियाँ पूरी तरह बड़ी हो गई हैं।

विशेष - (1) फलित तथा गंधायमान प्राकृतिक वातावरण का मनोरम चित्रण हुआ है।
(2) शुद्ध, सरल तथा सुबोध खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।
(3) पुनरुक्तिप्रकाश, अनुप्रास अलंकार।

पद्यांश (5) बालू के साँपों से अंकित
गंगा की सतरंगी रेती,
सुन्दर लगती सरपट छाई
कलंगी सवारते हैं कोई,
तट पर तरबूजों की खेती !
अँगुली की कंघी से बगुले
तिरते जल में सुरखाय पुलिन पर,
मगरौती रहती सोई!

संदर्भ - प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के 'ग्रामश्री' पाठ से लिया गया है। इसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं।

प्रसंग - इसमें गंगा के किनारे की सुन्दरता का अंकन किया गया है।

व्याख्या - कवि कहते हैं कि पानी की लहरों से बनने वाले बालू के साँपों से गंगा के किनारे चिह्नित है। उन किनारों पर खरपतवार से ढकी हुई तरबूजे की खेती अत्यन्त सुन्दर लग रही है। वहाँ बगुले अपनी हाथों की कंघी से अपनी कलंगी सँभाल रहे हैं और गंगाजल में चक्रवाक पक्षी तैरते हुए दिख रहे हैं और गंगा के किनारों पर नाव के आगे के भाग लेटे हैं।

विशेष - (1) गंगा तट की शोभा का मनोहारी चित्रण हुआ है।
(2) इसकी चित्रोपमता - दर्शनीय है।
(3) सहज, स्वाभाविक खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है।
(4) रूपक, अनुप्रास अलंकारों की छटा अवलोकनीय है।

पद्यांश (6) हँसमुख हरियाली हिम-आतप
सुख से अलसाए से सोए,
भीगी अँधियाली में निशि की
तारक स्वप्नों में से खोए
मरकत डिब्बे सा खुला ग्राम
जिस पर नीलम नभ आच्छादन
निरूपम हिमांत में स्निग्ध शान्त
निज शोभा से हरता जन मन!

संदर्भ - प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के 'ग्रामश्री' पाठ से लिया गया है। इसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं।

प्रसंग - इसमें जाड़े के अंतिम दिनों की रात में सोए हुए गाँव की शोभा का चित्रण हुआ है।

व्याख्या - कवि कहते हैं कि मुस्कराती सी हरियाली तथा जाड़े के अन्तिम दिनों को गर्माहट में गाँववासी सुखद नींद में डूबे हैं वे ओस से भीगी अंधेरी रात्रि में नक्षत्रलोक के स्वप्नों में खोए हुए हैं। अर्थात् सभी ग्रामवासी गहरी निद्रा का आनन्द ले रहे हैं। पन्ने के खुले हुए डिब्बे जैसे खुले खुले से इस गाँव का नीले आकाश रूपी नीलम रत्न का ढक्कन है। पाले के अन्तिम समय में ओस से तर और शान्त यह अद्भुत गाँव हर आदमी का मन हर रहा है। अर्थात् गाँव का सौंदर्य मनमोहक है।

विशेष - (1) अंधेरी रात्रि में निद्राग्रस्त गाँव के सौन्दर्य का मनोहारी अंकन हुआ है।
(2) शुद्ध साहित्यिक भाषा का प्रयोग किया गया है।
(3) उपमा, रूपक, अलंकारों का सौंदर्य अवलोकनीय है।

प्रश्न अभ्यास-

प्रश्न 1. कवि ने गाँव को 'हरता जन मन' क्यों कहा है?
उत्तर - गाँव की शोभा अद्भुत है। मुस्कराती सी हरियाली, रंग-बिरंगे फूल, नान प्रकार के फल, सब्जियाँ आदि इस गाँव में हैं। गाँव गंगा के निकट का है जहाँ पर गंगा का मीठा जल, तरबूज आदि मिलते हैं। समग्रतः इस गाँव की छटा मनमोहक है इसीलिए यह हर आदमी का मन मोह लेता है।

प्रश्न 2. गाँव को 'मरकत डिब्बे सा खुला' क्यों कहा गया है?
उत्तर - मरकत पन्ना रत्न को कहा जाता है। इस रत्न का रंग हरा होता है। मरकत के खुले डिब्बे की यह विशेषता होती है कि उसमें हर चीज साफ-साफ दिखाई देती है। इस गाँव की हरियाली मरकत के हरे रंग की तरह ही सुशोभित है। इस गाँव की सभी चीजें साफ-साफ दिखाई दे रही हैं इसीलिए इसे मरकत के खुले डिब्बे के समान कहा गया है।

प्रश्न 3. अरहर और सनई के खेत कवि को कैसे दिखाई देते हैं?
उत्तर - कवि को अरहर और सनई के खेत स्वर्णिम करधनियों जैसे दिखाई दे रहे हैं। अरहर और सनई क्यारी के बाहर की तरफ पंक्तियों में बोई जाती है इसीलिए वह करधनी जैसी कही गई है। इनकी फलियों का रंग सुनहरा होता है इसीलिए ये फलियाँ करधनी के घुँघरू जैसी सुशोभित हैं।

प्रश्न 4. भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) बालू के साँपों से अंकित
गंगा की सतरंगी रेती।
उत्तर -
भाव - गंगा के किनारे पर स्थित बालू में टेढ़ी-मेढ़ी चाल वाले साँपों जैसी लकीरें हो गई हैं। उन पर सूरज की किरणें पड़ती हैं तो वे रंग-बिरंगी, सतरंगी सी दिखाई देने लगती हैं। सूरज की किरणों से रेती में चमक आ जाती है।

(ख) हँसमुख हरियाली हिम-आतप
सुख से अलसाए से सोए।
उत्तर -
भाव - हरियाली की शोभा का वर्णन करते हुए कवि कहते हैं कि इस गाँव की हरियाली मुस्कराती हुई प्रतीत हो रही है। ओस की नयी तथा सूरज की गर्माहट के कारण सभी आनंदमय आलस्य में भरकर सोए हुए हैं, नींद का आनन्द ले रहे हैं।

प्रश्न 5. निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा अलंकार है?
तिनकों के हरे-हरे तन पर
हिल हरित रुधिर है रहा झलक।
उत्तर - इन पंक्तियों में अलंकार इस प्रकार हैं-
हरे हरे में - पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार,
हिल हरित में - अनुप्रास अलंकार,
हरित रुधिर है रहा झलक - मानवीकरण अलंकार है।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 6. भाव और भाषा की दृष्टि से आपको यह कविता कैसी लगी? उसका वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर - भाव और भाषा की दृष्टि से यह कविता मुझे बहुत अच्छी लगी। इसमें प्रकृति का स्वाभाविक वर्णन हुआ है। रंग-बिरंगे फूलों, फलियों, फलों तथा वनस्पतियों का रोमांचक चित्रण है जो पाठक को सहज ही आकर्षित करता है। इसकी भाषा कोमलकांत पदावली युक्त खड़ी बोली है जिसमें सम्प्रेषण की अद्भुत क्षमता मौजूद है। अलंकारों का सहज एवं सटीक प्रयोग हुआ है।

प्रश्न 7. आप जहाँ रहते हैं उस इलाके के किसी मौसम विशेष के सौंदर्य को कविता या गद्य में वर्णित कीजिए।
उत्तर - मैं जिस इलाके में रहता हूँ वहाँ वर्षा का मौसम मनमोहक होता है। हमारे यहाँ गर्मी बहुत तेज पड़ती है इसलिए गर्मी के बाद जो पहली वर्षा होती है वह हमारे क्षेत्र में आनन्द प्रदायिनी होती है। पानी पड़ते ही प्रकृति सचेत होने लगती है। गर्मी के थपेड़ों ने जिन पेड़ पौधों को झुलसा सा दिया था वे जल का स्पर्श पाकर जीवित हो उठते हैं। धरती में जो घास सूख गई थी उसमें अंकुर फूटने लगते हैं। वनस्पतियाँ हरियाने लगती हैं। दो-चार वर्षा होने के बाद किसान भी खेतों में फसल बोने लगते हैं। हमारे क्षेत्र में मक्का, ज्वार तथा बाजरे की फसलें अच्छी होती हैं। कपास भी पैदा होती है। जो तालाब सूख गए थे, वे जल से सराबोर हो उठते हैं। धरती में नमी आ जाती है। पशु, पक्षी, जानवर सबके लिए यह मौसम सुखद होता है।

कक्षा 9 क्षितिज (हिन्दी विशिष्ट) के पद्य खण्ड के पाठ, उनके सार, अभ्यास व प्रश्नोत्तर को पढ़ें।
1. पाठ 1 साखियाँ और सबद (पद) भावार्थ एवं प्रश्नोत्तर
2. पाठ 2 'वाख' भावार्थ एवं प्रश्नोत्तर
3. पाठ 3 'सवैये' भावार्थ एवं प्रश्नोत्तर
4. पाठ 4 'कैदी और कोकिला' भावार्थ एवं प्रश्नोत्तर

कक्षा 9 क्षितिज (हिन्दी) के गद्य खण्ड के पाठ, उनके सारांश एवं अभ्यास
1. पाठ 1 'दो बैलों की कथा' पाठ, का सारांश, अभ्यास एवं व्याकरण
2. सम्पूर्ण कहानी- 'दो बैलों की कथा' - प्रेंमचन्द
3. दो बैलों की कथा (कहानी) प्रेंमचन्द
4. 'ल्हासा की ओर' - यात्रावृत्त - राहुल सांकृत्यायन
5. पाठ- 2 'ल्हासा की ओर' (यात्रा-वृत्तान्त, लेखक- राहुल सांकृत्यायन), पाठ का सारांश, प्रश्नोत्तर, भाषा अध्ययन, रचना और अभिव्यक्ति (कक्षा 9 हिन्दी)

9th ब्रिज कोर्स हिन्दी, अंग्रेजी व गणित की जानकारी
1. हिन्दी भाषा ज्ञान - स्वर, व्यन्जन एवं उनके उच्चारण स्थल (ब्रिज कोर्स कक्षा -9)
2. Bridge Course 9th English. Unit 1 Alphabet knowledge CAPITAL and SMALL LETTERS
3. Bridge Course 9th English. Unit 2 Vocabulary building

I Hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
rfhindi.com

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