विद्या ददाति विनयम्

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पाठ - 15 'मेघ आए' (विषय - हिन्दी काव्य-खण्ड कक्षा- 9) सारांश, भावार्थ एवं प्रश्नोत्तर || Path 7 'Megh aaye' summary and exercise

भाव (सारांश)

बादलों के उमड़-घुमड़कर आते ही तेज हवा चलने लगी है। हवा के झोंकों से पेड़ झुकने लगे हैं, खिड़की व दरवाजे खुल गये हैं। धूल उड़ रही है, बिजली चमक रही है। बादल बरसने लगे हैं। बादल प्रिय मेहमान हैं। जैसे दामाद बहुत दिन बाद आए हैं वैसे ही बादल वर्षभर बाद आए हैं। गाँव में उनकी प्रतीक्षा हो रही थी। बादल और मेहमान के आने पर सभी ग्रामीण, बड़े-बूढे उनका स्वागत करने को आतुर हैं। बादलों के तथा मेहमान के आने पर एक ही तरह की हलचल गाँव भर में हो रही है।

लेखक परिचय-
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का जन्म उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में सन् 1927 में हुआ। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उच्चशिक्षा ग्रहण की। आरंभ में उन्हें आजीविका हेतु काफी संघर्ष करना पड़ा, बाद में दिनमान के उपसंपादक एवं चर्चित बाल पत्रिका पराग के संपादक बने। सन् 1983 में उनका आकस्मिक निधन हो गया।

काठ की घंटियाँ, बांस का पुल, एक सूनी नाव, गर्म हवाएँ, कुआनो नदी, जंगल का दर्द, खूँटियों पर टंगे लोग उनके प्रमुख कविता संग्रह हैं। नई कविता के प्रमुख कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने उपन्यास, नाटक, कहानी, निबंध एवं प्रचुर मात्रा में बाल साहित्य भी लिखा है। दिनमान में प्रकाशित चरचे और चरखे स्तंभ के लिए सर्वेश्वर बहुत चर्चित रहे हैं। उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

सर्वेश्वर के काव्य में ग्रामीण संवेदना के साथ शहरी मध्यवर्गीय जीवनबोध भी व्यक्त हुआ है। यह बोध उनके कथ्य में ही नहीं भाषा में भी दिखाई देता है। सर्वेश्वर की भाषा सहज एवं लोक की महक लिए हुए है।

महत्वपूर्ण पद्यांशों की व्याख्या

पद्यांश (1) मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
आगे-आगे नाचती गाती बयार चली,
दरवाजे-खिड़कियाँ खुलने लगीं गली-गली,
पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।

संदर्भ - प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक के 'मेघ आए' पाठ से लिया गया है। इसके कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना है।

प्रसंग - इसमें मेहमान रूपी बादलों के आने पर होने वाली गतिविधियों का चित्रण हुआ है।

व्याख्या - कवि कहते हैं कि आकाश में रंग-बिरंगे बादल सज-धज और सँभल कर आने वाले मेहमान की तरह आ गए हैं। गाँव में दामाद के आने पर जैसी हलचल मच जाती है वैसे ही बादलों के आने पर खुशी की लहर गाँव भर में दौड़ गई है। बादलों के स्वागत में आगे-आगे नाचती गाती हवा चल रही है। हवा से गाँव की गली-गली के खिड़की-दरवाजे खुल गए हैं। आशय यह है बादलों के आने पर तथा दामाद के आने पर लोग अपने-अपने दरवाजे, खिड़की खोलकर आने वाले को देख रहे हैं कि बादल भली प्रकार से सज-धज कर और संभल कर आ गये हैं।

विशेष - (1) बादलों और दामाद के आगमन पर होने वाली हलचल का अंकन हुआ है।
(2) पूरे गाँव में खुशी की लहर व्याप्त हो गई।
(3) व्यावहारिक भाषा का प्रयोग किया गया है।
(4) पुनरुक्तिप्रकाश तथा अनुप्रास अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग हुआ है।

पद्यांश (2) पेड़ झुक झांकने लगे गरदन उचकाए,
आँधी चली, धूल भगी घाघरा उठाए,
बाँकी चितवन उठा, नदी ठिठकी, घूँघट सरके।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सेंवर के।

संदर्भ - प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक के 'मेघ आए' पाठ से लिया गया है। इसके कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना है।

प्रसंग - इसमें मेघ और दामाद के आने पर होने वाली उत्सुकता का चित्रण किया गया है।

व्याख्या - बादलों के आने से पहले चलने वाली हवा से झुकने वाले वृक्ष ऐसे लग रहे हैं मानो वे अपनी गरदन उचका कर बादलों को देख रहे हों। दामाद के आने की सूचना पर गाँव के आदमी उन्हें झांककर देख रहे हैं। हवा के तेज होने से धूल उड़ने लगी इससे ऐसा लग रहा है। मानो कोई ग्रामीण युवती दामाद के आने की खबर सुनकर लंहगा ऊपर समेटकर भागी जा रही है। बादलों का आना नदी के लिए अच्छा समाचार है, वह पानी से भर जाएगी। इसलिए वह ठिठक कर बादलों को देखने लगी। ठीक उसी तरह गाँव की स्त्रियाँ दामाद के आने पर परदा उठाकर तिरछी नजर से उन्हें देखने का प्रयत्न कर रही हैं। उन्हें बादल और दामाद सज-धज और संभलकर आते दिखाई पड़ते हैं।

विशेष - (1) मेघ और दामाद के आने पर गाँव के बच्चों, स्त्रियों तथा आदमियों की उत्सुकता का सजीव चित्रण हुआ है।।
(2) सरल, सुबोध खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।
(3) रूपक तथा अनुप्रास अलंकारों का सहज प्रयोग हुआ है।

पद्यांश (3) बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की,
बरस बाद सुध लीन्हीं
बोली अकुलाई लता ओट हो किबार की,
हरषाया ताल लाया पानी परात भर के।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।

संदर्भ - प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक के 'मेघ आए' पाठ से लिया गया है। इसके कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना है।

प्रसंग - यहाँ मेघ और दामाद के स्वागत सत्कार का स्वाभाविक अंकन किया गया है।

व्याख्या - जब बादल बरसने के लिए आ गए तो वृद्ध पीपल ने हवा से झुककर उनको आदर सहित प्रणाम किया और उन्हें उलाहना दिया कि पूरे एक वर्ष बाद आपको हमारी याद आई है। दामाद के ससुराल पहुँचने पर घर के बुजुर्ग ने उन्हें आदर सहित नमन किया और शिकायत की कि आप एक बार क्यों आए हो, जल्दी-जल्दी आया करो। पीपल की आयु बहुत होती है तथा वह वातावरण को प्रदूषण मुक्त करता है इसीलिए घर के हित का ध्यान रखने वाले के रूप में उसको बुजुर्ग कहा गया है। बादलों के आने पर उत्सुकता से भरी लता ने वृक्ष को आड़ में खड़ी होकर मेघों से शिकायत की कि तुमने मेरी पूरे एक साल बाद खबर ली है। गाँव की लड़कियाँ गाँव में पति के सामने नहीं आती हैं। वे आड़ से बात करती हैं इसलिए दामाद के आने पर उनकी पत्नी ने उलाहना दिया कि तुम तो मुझे भूल ही गए, पूरे एक साथ बाद मेरे पास आए हो। बादलों को देखकर तालाब भी उनके स्वागत के लिए परात भर कर पानी लेकर आ गया, अर्थात् वह उनके स्वागत में आ गया। दामाद के आने पर उसका साला खुश होकर उनके पैर धोने के लिए तालाब से परात में पानी भरकर ले आया है। सभी प्रसन्न हैं क्योंकि मेव और दामाद बहुत सज-धज कर तथा संभल कर आ गए हैं।

विशेष - (1) मेघ तथा दामाद के स्वागत के लिए बूढ़े, युवा तथा युवतियाँ सभी उत्सुक हैं।
(2) व्यावहारिक भाषा में विषय को प्रस्तुत किया गया है।
(3) स्मरण तथा अनुप्रास अलंकार का स्वाभाविक सौंदर्य दर्शनीय है।

पद्यांश (4) क्षितिज अटारी गहराई दामिनि दमकी,
क्षमा करो गाँठ खुल गई अब भरम की,
बाँध टूटा झर-झर मिलन के अश्रु ढरके।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के ।

संदर्भ - प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक के 'मेघ आए' पाठ से लिया गया है। इसके कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना है।

प्रसंग - यहाँ मायके में पति से मिलने पर पत्नी के भ्रम का समाधान होने पर उसकी भावुक स्थिति का अंकन हुआ है।

व्याख्या - आकाश पर बिजली के चमकने और वर्षा प्रारम्भ होने पर ग्रामवासियों को जो वर्षा न होने की शंका थी, उसका भेद खुल गया, वर्षा प्रारम्भ हो गई इसलिए वे प्रसन्न होकर अपनी आँखों में खुशी के आँसू भर लाए और अपनी शंका के लिए बादलों से माफी माँगने लगे। दामाद से पत्नी का अट्टालिका पर मिलन हो गया तो उसमें प्रसन्नता की बिजली कौंध गई। उसका जो भ्रम था कि पति आयेंगे या नहीं, दूर हो गया। वह अपनी भूल के लिए पति से क्षमा माँगने लगी तथा पति से मिलकर उसके खुशी के आँसू झर-झर झरने लगे। वह प्रसन्न हो उठी क्योंकि उसके पति सज-धज कर तथा संभलकर आ गए हैं।

विशेष - (1) इसमें पानी गिरने तथा दामाद के आ जाने पर जो शंकाएँ थीं उनके निवारण और प्रसन्नता की लहर का वर्णन हुआ है।
(2) सरल, सुबोध खड़ी बोली को अपनाया गया है।
(3) रूपक, पुनरुक्तिप्रकाश तथा अनुप्रास अलंकारों की छटा दर्शनीय है।

प्रश्न अभ्यास-

प्रश्न 1. बादलों के आने पर प्रकृति में जिन गतिशील क्रियाओं को कवि ने चित्रित किया है, उन्हें लिखिए।
उत्तर - बादलों के आने पर हवा चलने लगती है, आँधी आती है तो धूल उड़ने लगती है, नदी ठिठक जाती है, पीपल हवा के झोंकों से झुकने लगते हैं। लता अकुलाने लगती है, तालाब पानी लेकर आता है, क्षितिज पर बिजली चमकने लगती है, बाँध टूटने से पानी बहने लगता है। आदि प्राकृतिक गतिशील क्रियाएँ होने लगती हैं जिनका कवि ने अंकन किया है।

प्रश्न 2. निम्नलिखित किसके प्रतीक हैं-
1. धूल, 2. पेड़, 3. नदी, 4. लता, 5. ताल
उत्तर -
शब्द - प्रतीक
धूल - नवयुवती का
पेड़ - व्यक्तियों के
नदी - स्त्रियों की
लता - नायिका, पत्नी की
ताल - साले या नवयुवक का

प्रश्न 3. लता ने बादल रूपी मेहमान को किस तरह देखा और क्यों?
उत्तर - लता ने बादल रूपी मेहमान को किबाड़ की ओट से देखा। मेहमान पूरे एक साल बाद आए हैं इसलिए वह उन्हें देखने के लिए बहुत उत्सुक है। वह अपनी माँ के यहाँ है इसलिए खुले में नहीं मिल सकती है, वह ओट से देखती है।

प्रश्न 4. भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) क्षमा करो गाँठ खुल गई अब भरम की।
उत्तर - नायिका को यह भ्रम था कि नायक, पति आएँगे या नहीं आएँगे, उसे भुला बैठे हैं क्या? वह सशंकित थी। किन्तु जब वे आ गए तो उसका भ्रम दूर हो गया। अब नायिका अपनी शंका के लिए क्षमा माँग रही है। दूसरी ओर ग्रामीणों को भी शंका थी कि बादल आएँगे या नहीं। जब बादल आ गए तो वे अपनी शंका के लिए बादलों से क्षमा माँगते हैं।

(ख) बांकी चितबन उठा, नदी ठिठकी, घूंघट सरके।
उत्तर - मेघ आए तो नदी प्रसन्न हुई क्योंकि उसमें जल भर जाएगा। अतः वह ठिठक गई और नजर उठाकर बादलों को देखने लगी। उधर दामाद को आए साल बीत गया था इसलिए गाँव की स्त्रियों को पता लगा कि दामाद आ गए हैं तो उनके घूँघट खिसक गए और उन्होंने तिरछी नजर से उन्हें देखा।

प्रश्न 5. मेव रूपी मेहमान के आने से वातावरण में क्या परिवर्तन हुए?
उत्तर - मेघ रूपी मेहमान के आते ही ग्रामीणों की हलचल की तेज हवा चलने लगे। उन्हें देखने के लिए खिड़की एवं दरवाजे खुलने लगे। आँधी आने से पेड़ झुकने तथा ऊपर को होने लगे और धूल उड़ने लगी, नदी ठिठक कर देखने लगी, पीपल झुकने लगा, तालाब पानी भर लाया। क्षितिज में बिजली चमकने लगी तथा पानी बरसने लगा। इस तरह समस्त वातावरण गतिशील हो उठा।

प्रश्न 6. कविता में आए मानवीकरण तथा रूपक अलंकार के उदाहरण खोजकर लिखिए।
उत्तर - कविता मानवीकरण के उदाहरण है-
(1) आगे-आगे नाचती बयार चली'- बयार का स्त्री रूप में मानवीकरण है।
(2) 'मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के'- मेघ को दामाद रूप में चित्रित किया है।
(3) 'पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाए'-पेड़ों का ग्रामीणों के रूप में मानवीकरण हुआ है।
(4) 'बोली अकुलाई लता'-लता का स्त्री रूप में मानवीकरण हुआ है।
(5) धूल भागी घाघरा उठाए धूल का नवयुवतियों के रूप में मानवीकरण हुआ है।
(6) 'बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की' - पीपल का बुजुर्ग के रूप मैं मानवीकरण हुआ है।
कविता में रूपक अलंकार के उदाहरण-
(1) क्षितिज अटारी,
(2) दामिनी दमकी,
(3) बाँध टूटा झर-झर मिलन के अश्रु ढरके।

प्रश्न 7. इस कविता में जिन रीति-रिवाजों का मार्मिक चित्रण हुआ है, उनका वर्णन कीजिए।
उत्तर - इस कविता में जिन रीति-रिवाजों का चित्रण हुआ है वे उस प्रकार हैं- (1) गाँव में दामाद के आने पर सभी लोग उनका स्वागत करते हैं। (2) घर आने पर घर के बुजुर्ग उनको झुककर प्रणाम करते हैं। (3) स्त्रियाँ पर्दा करती हैं। (4) मायके में पत्नी पति से खुले में नहीं मिल सकती है। (5) मेहमान का पैर धोकर स्वागत किया जाता है।

प्रश्न 8. कविता में कवि ने आकाश में बादल और गाँव में मेहमान (दामाद) के आने का जो रोचक वर्णन किया है, उसे लिखिए।
उत्तर - कविता में आकाश में मेघों के और गाँव में दामाद के आने का समान रूप से वर्णन किया गया है। जब आकाश में मेघ आते हैं तो ग्रामीण उल्लास से भर उठते हैं। उनको बादलों को देखकर बहुत प्रसन्नता होती है। हवा चलने से पेड़ झुकने लगते हैं। नदियों और तालाबों में पानी भरने लगता है। गर्मी से व्याकुल वनस्पतियाँ वर्षा की प्रतीक्षा करने लगती है। बिजली की चमक के साथ वर्षा होने लगती है।

इसी तरह गाँव में दामाद के आते ही हर्ष की लहर दौड़ जाती है। सभी मनुष्य उनका स्वागत करते हैं। स्त्रियाँ किबाड़ की आड़ से पर्दा उठाकर तिरछी नजर से उनको देखती हैं। नवयुवतियाँ सरमा कर अपने कपड़े समेट कर घर को भाग जाती हैं। घरों की खिड़की, दरवाजे उन्हें देखने को खुल जाते हैं। घर आने पर बुजुर्ग उन्हें झुककर प्रणाम करते हैं। साले पैर धोते हैं। पत्नी उन्हें देखने को उत्सुक होती है किन्तु शर्म के कारण खुलकर सामने नहीं आती है, छिपकर उन्हें देखती है। अट्टालिका पर जब दोनों मिलते हैं तो भ्रम दूर हो जाता और मिलन की खुशी की अनुधार फूट पड़ती है।

प्रश्न 9. काव्य सौन्दर्य लिखिए-
पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सेंवर के।
उत्तर - (1) शहर के पाहुन के आने पर गाँव में जो हर्ष व्याप्त हो गया है, उसकी स्वाभाविक अभिव्यक्ति हुई है। (2) मेघ का मानवीकरण हुआ है। (3) 'ब' वर्ण की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार, (4) मेघ रूपी पाहुन में रूपक अलंकार है। (5) सरल, सुबोध भाषा का प्रयोग हुआ है। (6) चित्रात्मक शैली का सौंदर्य अवलोकनीय है।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 10. वर्षा के आने पर अपने आस-पास के वातावरण में हुए परिवर्तनों को ध्यान में रखकर एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर - आज पहली वर्षा क्या आई, वातावरण को जीवंत कर दिया। भीषण गर्मी की तपन, लू के थपेड़ों से सभी वनस्पतियाँ, पेड़-पौधे मुरझा गए थे, उनमें चेतना का संचार हो गया। इस बार की गर्मी बहुत भयंकर थी उन्नचास-पचास तक पारा पहुँच गया था। किन्तु इस वर्षा के कारण सब में खुशी की लहर दौड़ गई। पानी पड़ते ही धरती से सौंधी गंध निकलने लगी। पेड़ों पर जो धूल जमी थी वह साफ हो गई, पत्तियाँ स्वच्छ दिखाई देने लगीं। किसान भी अपने खेतों की जुताई- बुवाई की तैयारी में लग गए।

प्रश्न 11. कवि ने पीपल को ही बड़ा बुजुर्ग क्यों कहा है? पता लगाइए।
उत्तर - पीपल की लम्बी आयु होती है। भारतीय हिन्दू समाज में तो इसकी पूजा होती है। बहुत से लोग इसे जल चढ़ाकर अर्घ्य देते हैं। पीपल वातावरण को शुद्ध करता है। यह प्रदूषण से बचाता है, प्राण वायु प्रदान करता है। इन्हीं कारणों से उसे बड़ा बुजुर्ग कहा गया है।

प्रश्न 12. कविता में मेघ को पाहुन के रूप में चित्रित किया गया है। हमारे यहाँ अतिथि (दामाद) को विशेष महत्व प्राप्त है, लेकिन आज इस मान्यता में परिवर्तन आ है। आपको इसके क्या कारण नजर आते हैं, लिखिए।
उत्तर - हमारे यहाँ अतिथि को देवता के समान माना गया है। घर परिवार के लोगों द्वारा के लोग सिर आँखों पर बिठाते हैं। किन्तु वर्तमान समय में इस मान्यता में परिवर्तन आया है।। पाहून का विशेष आदर सत्कार होता है। दामाद का दर्जा तो और विशेष होता है उन्हें तो घर अब उस प्रकार का आदर, सत्कार या सम्मान का भाव नहीं रहा है। मेरी राय में इसका प्रमुख कारण तो यह है कि हम पर पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव पड़ा है जहाँ अतिथि के प्रति उस तरह का आदर का भाव नहीं होता है। दूसरे आज का व्यक्ति स्वकेन्द्रित हो रहा है इसलिए उसमें पुरानी सहजता नहीं रह गई हैं। स्वार्थपरक स्वभाव ने भी अतिथियों के प्रति व्यवहार में परिवर्तन किया है।

भाषा अध्ययन

प्रश्न 13. कविता में आए मुहावरों को छाँटकर अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
उत्तर -प्रमुख मुहावरे एवं उनका प्रयोग इस प्रकार है-
(1) बन-ठन के (सज-धज कर ) - कल मेरे मित्र की शादी है, मैं उसमें बन-ठन के जाऊँगा।
(2) सुधि लेना (याद आना) - हमें अपने मित्रों की सुधि लेते रहना चाहिए।
(3 ) गाँठ खुलना (गुत्थी सुलझना) - आज मैं अपने दोनों मित्रों के बीच पड़ी गाँठ को खोलना चाहता हूँ।
(4) मिलन के अश्रु (मिलने की प्रसन्नता) - मैं साल भर बाद माँ से मिला तो उनके मिलन के अश्रु छलक पड़े।
(5) बाँकी चितवन (तिरछी नजर) - पर्दा करने वाली स्त्रियाँ आने वालों को बाँकी नजर से देख रही थीं।

प्रश्न 14. कविता में प्रयुक्त आंचलिक शब्दों की सूची बताइए।
उत्तर - कविता में प्रयुक्त आंचलिक शब्द इस प्रकार हैं- (1) बयार, (2) पाहुन, (3) उचकाए, (4) जुहार, (5) सुधि, (6) लीन्हीं, (7) किबार, (8) अटारी (9) भरम

प्रश्न 15. 'मेघ आए' कविता की भाषा सरल और सहज है— उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर - 'मेघ आए' कविता में सरल एवं सहज भाषा का प्रयोग हुआ है। एक उदाहरण देखिए-
"पेड़ झुक झांकने लगे गरदन उचकाए,
आँधी चली, धूल भागी घाघरा उठाए"।

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I Hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
rfhindi.com

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