शब्द तथा पद क्या है? इसकी परिभाषा एवं विशेषताएँ || 'शब्द' का महत्त्व || What is 'Shabd' and 'Pad'?
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, उसे समाज में रहते हुए अनेक कार्यों हेतु पारस्परिक विचार-विनिमय करना पड़ता है। व्यक्ति अपने भावों या विचारों को जिस माध्यम (साधन) से दूसरों तक पहुँचाते हैं, वह साधन भाषा है। भाषा के निर्माण में अक्षर, ध्वनियों, शब्दों एवं वाक्यों से निर्मित शब्दों से हुआ है, जिसका विशेष महत्त्व है। आइए शब्द के बारे में विस्तार से जानते हैं।
शब्द की परिभाषा
1. "भाषा की वह मौलिक अथवा लघुतम इकाई जो एक या एक से अधिक अक्षरों (वर्णों) के योग से निर्मित हो और उसके स्वतन्त्र रुप से या वाक्य में प्रयुक्त होने के पर एक निश्चित अर्थ प्रदान कर रहा हो शब्द कहलाता है।"
2. "व्यक्ति के विचारों के प्रतीक रूप में उच्चरित की जाने वाली ध्वनियों के समूह या संकेतों को 'शब्द' कहते हैं।"
3. "अक्षरों अथवा वर्णों के समुदाय विशेष को 'शब्द' कहते हैं।"
साधारण रूप से विचार किया जाये तो ये कहा जा सकता है कि - 'कानों से सुना जाने वाला प्रत्येक नाम 'शब्द' है। भाषा वैज्ञानिक 'शब्द' को स्वतन्त्र चरम वाक्य मानते हैं। 'शब्द' सार्थकता की दृष्टि से भाषा की मौलिक अथवा लघुतम इकाई है। अक्षरों या वर्णों के समूह रूप में होकर एक साथ उच्चारण करने पर जो सार्थक ध्वनि निकलती है उसे ही 'शब्द' कहा जाता है। जहाँ कहीं अकेली ध्वनि सार्थक (अर्थवान) होती है, उसे भी अर्थ की दृष्टि में शब्द ही कहा जाता है।
उदाहरण के लिए 'व', 'न'।
'व' = एवं, और, तथा
'न' = नहीं।
वर्णों की संख्या के आधार पर शब्द
(1) एक वर्ण से निर्मित शब्द - 'व' (और, एवं, तथा), 'न' (नहीं)।
(2) दो वर्णों से निर्मित शब्द - हल, मत, कल, कब, सब, नख, लट, तम, हर, पर, घर आदि।
(3) तीन वर्षों से निर्मित शब्द - नजर, सड़क, महक, कलम, झलक, नहर, जलज आदि।
(4) चार या उससे अधिक वर्णों से निर्मित शब्द - परोपकारी, मातृभूमि, स्वावलम्बन, पुस्तकालय, परमात्मा, लम्बोदर, गगनचुम्बी, ईश्वर, धनवान, आदि।
अर्थ प्रदान करने के आधार पर शब्द
अर्थ प्रदान करने के आधार पर शब्द दो प्रकार के होते हैं।
(क) सार्थक और
(ख) निरर्थक शब्द।
(क) सार्थक शब्द - उपरोक्त में एक वर्ण, दो वर्ण तीन वर्ण, चार या चार से अधिक वर्णों से बनने वाले सभी शब्द सार्थक शब्द किस श्रेणी में आते हैं।
(ख) निरर्थक शब्द - खद, शन, वाय, जमगा, तोथमो, गलक्षी जैसे अनेक शब्द जिनका कोई अर्थ ही नहीं निकल रहा है, तो ऐसे शब्द निरर्थक शब्द की श्रेणी में आते हैं।
भाषा की दृष्टि से निरर्थक शब्द तो मात्र ध्वनियाँ हैं और कहने मात्र के लिए शब्द हैं, इस तरह शब्द केवल वे ही हैं जो किसी निश्चित अर्थ का बोध कराते हों।
इस तरह व्याकरण की दृष्टि से 'स्वतन्त्र तथा सार्थक ध्वनि' ही 'शब्द' है।
टीप - भाषा और व्याकरण के सन्दर्भ में केवल सार्थक शब्दों पर ही विचार किया जाता है।
शब्द की विशेषताएँ
1. शब्द एक, दो या दो से अधिक वर्णों (अक्षरों) के मेल से बने होते हैं।
2. ये अर्थवान (अर्थ देने वाले) होते हैं।
3. शब्द अकेले या वाक्य में प्रयुक्त होकर व्यक्तियों के भावों, विचारों को दूसरों पर प्रकट करने का कार्य करते हैं।
4. वाक्य में प्रयुक्त होने पर इनका एक निश्चित कार्य होता है और उनके इसी कार्य के आधार पर शब्दों को शब्द भेद - संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया, क्रिया विशेषण, अव्यय योजक, समुच्चयबोधक अव्यय, विस्मयादिबोधक अव्यय में विभाजित करते हैं।
5. शब्दों में सार्थक ध्वनि के लिए अक्षरों (वर्णों) का एक निश्चित क्रम होता है तभी मुख से सार्थक ध्वनि निकलती है, जिसका व्यक्तियों के द्वारा अर्थ ग्रहण किया जाता है।
6. शब्दों का वाक्यों में भी एक निश्चित क्रम होता है तभी वाक्य का सही अर्थ प्राप्त किया जाता है।
शब्द तथा पद
जैसा कि हमने जाना प्रत्येक स्वतन्त्र सार्थक वर्ण समूह 'शब्द' कहलाता है, लेकिन जब किसी शब्द का प्रयोग वाक्य में होता है, तो वह स्वतन्त्र न रहकर व्याकरण के नियमों (वचन, कारक, लिंग) आदि में बँधकर एक अनुशासन में आबद्ध हो जाता है और उसका रूप भी बदल जाता है। तब वह 'शब्द' न रहकर 'पद' बन जाता है। या हम यूँ कहें शब्द के वाक्य में प्रयुक्त होने पर वह 'पद' कहलाने लगता है।
उदाहरण - राम ने रावण को मारा।
उक्त वाक्य व्याकरण के नियमों में बँधने से पहले 'राम', 'रावण', 'को', 'ने' 'मारा' ये सभी शब्द सार्थक एवं स्वतन्त्र शब्द हैं। किन्तु वाक्य में प्रयुक्त होने पर ये सभी शब्द 'पद' बन गए हैं।
संस्कृत भाषा में वैसे भी 'शब्द' के लिए 'पद' या 'पाद' का प्रयोग होता है।
'शब्द' का महत्त्व
भाषा की दृष्टि से 'शब्द' का बड़ा महत्त्व है। प्राचीन युग से लेकर अर्वाचीन (नवीन) युग तक व्यक्ति जो कुछ ज्ञान ग्रहण किया है, वह ज्ञान शब्दों के रूप में ही आज तक विश्व के सामने संचित तथा सुरक्षित है। भावों की अभिव्यक्ति का एकमात्र साधन 'शब्द' ही है। वक्ता या लेखक अपने शब्दकोश के बल पर ही अपनी कृतियों की रचना कर पुणे जनसमूह के समक्ष प्रस्तुत करने में समर्थ होता है। 'शब्द' भाषा के क्रमिक विकास की रूपरेखा है, लेखक की शक्ति है तथा व्याकरण और भाषा-विज्ञान का प्राण है। किसी भाषा का ज्ञान तब तक अधूरा है, जब तक उस भाषा में प्रयुक्त शब्दों का पूरा-पूरा ज्ञान न हो। किसी समाज अथवा राष्ट्र के इतिहास की जानकारी प्राप्त करनी हो तो उसकी भाषा का ज्ञान प्राप्त करना होगा।
किसी भाषा का शब्द भण्डार एवं उसका साहित्य उस भाषा की समृद्धि के परिचायक होते हैं।' जिस भाषा के पास जितना अधिक समृद्धशाली शब्दों का कोश होता है, वह भाषा और उस भाषा का साहित्य उतना ही अधिक समृद्ध एवं शालीन होता है। उचित शब्दों के अभाव में भाषा प्रभावहीन होती है।
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R F Temre
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