विद्या ददाति विनयम्

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पाठ - 16 'यमराज की दिशा' (विषय - हिन्दी काव्य-खण्ड कक्षा- 9) सारांश, भावार्थ एवं प्रश्नोत्तर || Path 8 'Yamraj Ki Disha'

पाठ का भाव (सारांश)

'यमराज की दिशा' कविता में कवि कहते हैं उन्हें नहीं पता कि माँ ने ईश्वर को देखा या नहीं, किन्तु वे ऐसा प्रकट करती थीं कि उनसे उनकी वार्ता होती रहती है। वे उन्हीं के परामर्शो के अनुसार दुख सहने के मार्ग तलाश लेती थीं। माँ ने कहा था कि दक्षिण यमराज की दिशा है। इसलिए इस दिशा में पैर करके कभी मत सोना। कवि ने बाल स्वभाव से जब यमराज का पता पूछा उन्होंने बताया कि तुम जहाँ भी हो उसके दक्षिण में उनका घर है। इससे मेरा दक्षिण दिशा का ज्ञान स्पष्ट हो गया। दूर-दूर तक दक्षिण में यात्रा की किन्तु मुझे यमराज का घर नहीं मिला। लेकिन आज जिधर भी देखो दक्षिण दिशा है, यमराज का घर है, विध्वंश, विनाश और संहार है। आज सभी दिशाएँ यमराज की हो गई हैं।

लेखक परिचय-
चन्द्रकांत देवताले

चंद्रकांत देवताले का जन्म सन् 1936 में गाँव जौलखेड़ा, जिला बैतूल, मध्य प्रदेश में हुआ। उच्च शिक्षा इंदौर से हुई तथा पीएच.डी. सागर विश्वविद्यालय, सागर से। साठोत्तरी हिंदी कविता के प्रमुख हस्ताक्षर देवताले जी उच्च शिक्षा में अध्यापन कार्य से संबद्ध रहे हैं।

देवताले जी की प्रमुख कृतियाँ हैं- हड्डियों में छिपा ज्वर, दीवारों पर खून से, लकड़बग्घा हँस रहा है, भूखंड तप रहा है, पत्थर की बैंच, इतनी पत्थर रोशनी, उजाड़ में संग्रहालय आदि। देवताले जी अनेक पुरस्कारों से सम्मानित हुए-माखन लाल चतुर्वेदी पुरस्कार, मध्य प्रदेश शासन का शिखर सम्मान। उनकी कविताओं के अनुवाद प्रायः सभी भारतीय भाषाओं में और कई विदेशी भाषाओं में हुए हैं।

देवताले की कविता की जड़ें गाँव-कस्बों और निम्न मध्यवर्ग के जीवन में हैं। उसमें मानव जीवन अपनी विविधता और विडंबनाओं के साथ उपस्थित हुआ है। कवि में जहाँ व्यवस्था की कुरूपता के खिलाफ़ गुस्सा है, वहीं मानवीय प्रेम-भाव भी है। वह अपनी बात सीधे और मारक ढंग से कहता है। कविता की भाषा में अत्यंत पारदर्शिता और एक विरल संगीतात्मकता दिखाई देती है।

महत्वपूर्ण पद्यांशों की व्याख्या

पद्यांश (1) माँ की ईश्वर से मुलाकात हुई या नहीं
कहना मुश्किल है
पर वह जताती थीं जैसे
ईश्वर से उसकी बातचीत होती रहती है
और उससे प्राप्त सलाहों के अनुसार
जिंदगी जीने और दुख बरदाश्त करने के
रास्ते खोज लेती है।

संदर्भ - यह पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के 'यमराज की दिशा' पाठ से लिया गया है। इसके रचनाकार चंद्रकान्त देवताले हैं।

प्रसंग - यहाँ कवि अपनी माँ के जीवन जीने के ढंग के विषय में बता रहे हैं।

व्याख्या - कवि कहते हैं कि यह कहना कठिन है कि मेरी माँ ईश्वर से कभी मिली थीं या नहीं। लेकिन वे दिखाती थीं कि ईश्वर से उनका वार्तालाप होता रहता है। वे उन्हीं की सलाह के अनुसार जीवन बिताने और कष्ट को झेलने के मार्ग तलाश लेती थीं। इससे लगता है कि ईश्वर पर उनका गहरा विश्वास था।

विशेष - (1) कवि की माँ ईश्वर पर विश्वास करती थीं और उन्हीं के निर्देशों पर चलती थीं।
(2) सरल, सुबोध व्यावहारिक भाषा का प्रयोग किया गया है।
(3) अनुप्रास अलंकार।

पद्यांश (2) माँ ने एक बार मुझसे कहा था
दक्षिण की तरफ पैर करके मत सोना
यह मृत्यु की दिशा है
और यमराज को क्रुद्ध करना
बुद्धिमानी की बात नहीं
तब मैं छोटा था
और मैंने यमराज के घर का पता पूछा था
उसने बताया था
तुम जहाँ भी हो वहाँ से हमेशा दक्षिण में

संदर्भ - यह पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के 'यमराज की दिशा' पाठ से लिया गया है। इसके रचनाकार चंद्रकान्त देवताले हैं।

प्रसंग - यहाँ कवि ने दक्षिण में पैर करके न सोने की सलाह के बारे में बताया है।

व्याख्या - कवि कहते हैं कि एक बार माँ ने मुझसे कहा था कि तुम दक्षिण दिशा की ओर पैर करके कभी मत सोना, क्योंकि यह मृत्यु की दिशा है साथ ही बताया था कि दक्षिण दिशा की ओर पैर करके सोकर मृत्यु के देव यमराज को क्रोधित करना समझदारी की बात नहीं है।
जिस समय माँ ने मुझसे यह बात कही थी, उस समय मैं छोटा था। मैंने बाल स्वभाव से यमराज के घर का पता पूछ लिया था। उस समय माँ ने मुझे बताया था कि जहाँ भी हो ठीक उसके दक्षिण में यमराज रहते हैं।

विशेष - (1) इसमें माँ के इस विश्वास के बारे में बताया है कि दक्षिण की ओर पैर - करके सोना ठीक नहीं है क्योंकि यह मृत्यु के देव यमराज की दिशा है।
(2) सीधी, सरल भाषा तथा सपाटबयानी की सहजता दर्शनीय है।

पद्यांश (3) मैं दक्षिण में दूर-दूर तक गया
और मुझे हमेशा माँ याद आई
दक्षिण को लाँघ लेना सम्भव नहीं था
होता छोर तक पहुँच पाना
तो यमराज का घर देख लेता

संदर्भ - यह पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के 'यमराज की दिशा' पाठ से लिया गया है। इसके रचनाकार चंद्रकान्त देवताले हैं।

प्रसंग - यहाँ बताया है कि दक्षिण में दूर-दूर तक जाने के बाद भी वे दक्षिण दिशा को पार न कर सके, इसलिए यमराज का घर भी नहीं देख पाए।

व्याख्या - कवि कहते हैं कि दक्षिण दिशा में दूर-दूर तक जाने के अवसर मुझे मिले और जब भी दक्षिण में गया तब मुझे माँ की याद आती रही। दक्षिण दिशा को पार करना असम्भव था। यदि दक्षिण के अन्तिम किनारे तक पहुँच पाना सम्भव होता तो मैं यमराज का निवास देख लेता। परन्तु यह असम्भव ही रहा, मैं यमराज का घर नहीं देख पाया।

विशेष - (1) कवि दक्षिण दिशा को लाँघ न पाने के कारण यमराज को नहीं देख पाए।
(2) सरल, सुबोध भाषा तथा स्पष्ट शैली का प्रभावी प्रयोग हुआ है।

पद्यांश (4) पर आज जिधर भी पैर करके सोओ
वही दक्षिण दिशा हो जाती है।
सभी दिशाओं में यमराज के आलीशान महल हैं
और वे सभी में एक साथ
अपनी दहकती आँखों सहित विराजते हैं
माँ अब नहीं है
और यमराज की दिशा भी बह नहीं रही
जो माँ जानती थी।

संदर्भ - यह पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के 'यमराज की दिशा' पाठ से लिया गया है। इसके रचनाकार चंद्रकान्त देवताले हैं।

प्रसंग - यहाँ बताया गया है कि वर्तमान में सभी दिशाओं में यमराज का निवास है।

व्याख्या - कवि कहते हैं कि आज मात्र दक्षिण दिशा ही नहीं, सभी दिशाओं में यमराज का निवास है। जिस भी दिशा में पैर करके सो जाओ वही दक्षिण दिशा हो जाती है। सभी दिशाओं में यमराज के विशाल महल मौजूद हैं और उन सभी महलों में यमराज अपनी ज्वाला की तरह धधकती आँखों को फैलाए मौजूद हैं। वे विध्वंश, विनाश के लिए आतुर हैं।
कवि कहते हैं कि दक्षिण में यमराज का घर बताने वाली माँ आज नहीं रहीं और यमराज की दिशा भी अब मात्र दक्षिण नहीं है जिसे माँ जानती थी। आज तो सभी दिशाओं में यमराज के महल मौजूद हैं।

विशेष - (1) वर्तमान की विध्वंशक स्थिति का प्रभावी अंकन किया है।
(2) सीधी-सपाट भाषा-शैली में कथन प्रभावी बन पड़ा है।

प्रश्न अभ्यास-

प्रश्न 1. कवि के अनुसार आज हर दिशा दक्षिण दिशा क्यों हो गई है?
उत्तर - असुरक्षा, आतंक तथा अपराधों के बढ़ने के कारण आज हर दिशा दक्षिण दिशा हो गई है। कवि की माँ ने दक्षिण दिशा को यमराज का निवास बताकर, उस ओर पैर करके सोने को मना किया था लेकिन आज तो कोई दिशा सुरक्षित नहीं है। प्रत्येक दिशा में यमराज के विशाल महल खड़े हैं और वे उन सभी में अपनी दहकती आँखों में विराजमान इसीलिए कवि के अनुसार हर दिशा आज दक्षिण दिशा हो गई है। सभी दिशाओं में मृत्यु के देव यमराज क्रोधित होकर बैठे हैं, विनाश, विध्वंश करने के लिए।

प्रश्न 2. भाव स्पष्ट कीजिए-
सभी दिशाओं में यमराज के आलीशान महल हैं
और वे सभी में एक साथ
अपनी दहकती आँखों सहित विराजते हैं।
उत्तर - भाव यह है कि आज कोई भी दिशा सुरक्षित नहीं है। पहले मात्र दक्षिण दिशा मृत्यु के देव यमराज की दिशा थी किन्तु वह बात नहीं है। आज तो प्रत्येक दिशा में अपनी धधकती हुई आँखों के साथ विनाश करने के लिए यमराज बैठे हैं। प्राणों के ग्राहक ये यमराज नाना प्रकार के रूप धारण करके विनाश, विध्वंश करने को तत्पर हैं। आज हर तरफ मौत मंडरा रही है।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 3. कवि की माँ ईश्वर से प्रेरणा पाकर उसे कुछ मार्ग-निर्देश देती हैं। आपकी माँ भी समय-समय पर आपको सीख देती होंगी-
(क) वह आपको क्या सीख देती हैं?
उत्तर - मेरी माँ मुझे समझाती हैं कि अपना पूरा ध्यान पढ़ने में लगाओ। पढ़-लिखकर राष्ट्रसेवा के कार्य करोगे तो जीवन सम्मान के साथ जी सकोगे। वे मुझे भले तथा ईमानदार बच्चों को मित्र बनाने की सीख भी देती हैं। वे समय-समय पर बताती रहती हैं कि बुरे बच्चों का साथ बहुत हानिकारक होता है। वे दुर्गुण पनपा कर पतन के मार्ग की ओर ले जाने वाले होते हैं। मेरी माँ एक शिक्षिका हैं इसलिए वे बच्चों के भविष्य के प्रति बहुत सजग रहती हैं। वे सत्य बोलने, ईमानदार होने तथा सभी को प्रेम करने की सीख देती रहती हैं।

(ख) क्या उसकी हर सीख आपको उचित जान पड़ती है? यदि हाँ तो क्यों और यदि नहीं तो क्यों नहीं ?
उत्तर - संसार में माँ से अधिक बच्चे का शुभचिंतक कोई नहीं होता है। वह जो भी सीख देती हे बच्चे के सुखद भविष्य के लिए देती है। इसलिए उसकी सीख अनुचित कैसे हो सकती है। मेरी माँ की हर सीख मुझे उचित जान पड़ती है। मुझे उन पर पूरा भरोसा है कि वे जो भी सिखायेंगी वह मेरे लिए हितकारी होगा। मैं उन्हीं की सलाह के अनुसार ही सब कार्य करता हूँ। यदि उनकी सीख में मुझे कुछ शंका होती है तो मैं उस शंका को उनके सामने रख देता हूँ, वे उसका समाधान बता देती हैं। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि मेरी शंका उन्हें उचित जान पड़ती है तो वे उस सीख को वापस ले लेती हैं। उस तरह हमारा आपसी विश्वास निरंतर गहरा होता जा रहा है।

प्रश्न 4. कभी-कभी उचित-अनुचित के निर्णय के पीछे ईश्वर का भय दिखाना आवश्यक हो जाता है, इसके क्या कारण हो सकते हैं?
उत्तर - कभी-कभी माँ द्वारा दी गई सीख को बच्चा अनुचित मानकर ग्रहण नहीं करता है किन्तु वह सीख बच्चे के लिए आवश्यक लगती है तो वह ईश्वर का भय दिखाकर बच्चे को उस सीख को अपनाने को विवश करती है। इसके कई कारण हो सकते हैं-एक तो माँ को बच्चा सबसे अधिक प्रिय होता है, वह उसका भविष्य घूमिल नहीं होने देना चाहती है। दूसरा कारण यह है कि यदि कोई गलत काम करता है और माँ के समझाने पर भी नहीं मानता है तो माँ उसे ईश्वर का भय दिखाती है और गलत कार्य करने से रोकती है।

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I Hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
rfhindi.com

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