पाठ - 11 'सवैये' (कक्षा 9 विषय हिन्दी काव्य खण्ड) पदों के अर्थ एवं प्रश्नोत्तर || Path 3 'Savaiye' Pado ke arth
सवैयों की व्याख्या
सवैया (1) - मानुष हौं तो वही रसखानि
बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन।
जो पशु हौं तो कहा बस मेरो
चरौं नित नंद की धेनु मँझारन।
पाहन हौं तो वही गिरि को
जो कियो हरि छत्र पुरंदर धारन।
जो खग हौं तो बसेरो करौं
मिलि कालिंदी कूल कदंब की डारन॥
संदर्भ - यह पद्य हमारी पाठ्य पुस्तक के सवैये पाठ से लिया गया है। इसके कवि रसखान हैं।
प्रसंग - इसमें कवि का ब्रज के प्रति लगाव प्रकट हुआ है। वे चाहते हैं कि अगले जन्म में वे इसी भूमि पर जन्म लें।
व्याख्या - कवि रसखान कहते हैं कि अगले जन्म में मैं यदि मनुष्य के रूप में जन्म लूँ तो मेरी इच्छा है कि मैं गोकुल गाँव के ग्वाल बालों के बीच निवास करूँ। वे कहते हैं कि यद्यपि यह मेरे वश की बात नहीं है किन्तु मैं चाहता हूँ कि यदि मेरा जन्म पशु के रूप में हो तो मैं रोजाना नन्द की गायों के बीच ही रहूँ। यदि मैं पत्थर बनूँ तो उसी गोवर्धन पर्वत का बनूँ जिसे श्रीकृष्ण ने इन्द्र के प्रकोप से ब्रज की रक्षा करने के लिए अपनी अंगुली पर छत्र के रूप में धारण किया था। और यदि मैं पक्षी के रूप में आगामी जन्म लूँ तो मेरी इच्छा है कि यमुना के किनारे के कदंबों पर बैठने वाले पक्षियों के बीच मेरा निवास हो।
विशेष - (1) कवि कामना करते हैं कि मैं ब्रज में जन्म लूँ।
(2) इसमें कवि का ब्रज भूमि के प्रति अनन्य भाव प्रकट हुआ है।
(3) पदमैत्री एवं अनुप्रास अलंकार।
(4) प्रवाहमयी सुललित ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ है।
सवैया (2) - या लकुटी अरु कामरिया पर
राज तिहूँ पुर को तजि डारौं।
आठहु सिद्धि नवौ निधि के सुख
नंद की गाइ चराइ विसारौं।
रसखान कबौं इन आँखिन सौं
ब्रज के बन बाग तडाग निहारौं।
कोटिक ए कलधौत के घास
करील के कुंजन ऊपर वारों॥
संदर्भ - यह पद्य हमारी पाठ्य पुस्तक के सवैये पाठ से लिया गया है। इसके कवि रसखान हैं।
प्रसंग - इसमें दिखाया गया है कि कवि श्रीकृष्ण की लाठी, कंबल तथा ब्रज की गाय, बाग, तालाब, वन, करील आदि पर कुछ भी न्यौछावर करने को तत्पर हैं।
व्याख्या - कवि रसखान कहते हैं कि श्रीकृष्ण की इस लाठी तथा कंबल के ऊपर मैं तीनों लोकों का राज्य सिंहासन भी त्याग दूँगा। नंद बाबा की गायों को चराने में मिलने वाले सुख की तुलना में आठों सिद्धियों और नौ निधियों के सुख को भी भुला दूँगा। रसखान की इच्छा है कि उन्हें कभी ब्रज के वन, बाग-बगीचे, तालाब आदि को देखने का सुअवसर मिले। वे आनंद प्रदान करने वाले करील की कुंजों के ऊपर सोने-चाँदी के बने करोड़ों महलों को न्यौछावर करने को तैयार हैं।
विशेष – (1) रसखान का श्रीकृष्ण तथा उनकी लीला भूमि ब्रज के प्रति तीव्र आकर्षण व्यक्त है।
(2) अनुप्रास तथा पदमैत्री की शोभा दर्शनीय है।
(3) भाव के अनुरूप भाषा का प्रयोग किया गया है।
सवैया (3) - मोरपखा सिर ऊपर राखिहौं,
गुंज की माल गरें पहिरौंगी।
ओढ़ि पितम्बर ले लकुटी बन
गोधन ग्वालनि संग फिरौंगी।।
भावतो बोहि मेरो रसखानि सों
तेरे कहे सब स्वांग करौंगी।
या मुरली मुरलीधर की
अधरान घरी अधरा न धरौंगी।।
संदर्भ - यह पद्य हमारी पाठ्य पुस्तक के सवैये पाठ से लिया गया है। इसके कवि रसखान हैं।
प्रसंग - श्रीकृष्ण को प्रेंम करने वाली एक गोपी जब अपनी सखी से श्रीकृष्ण का वेश
धारण करने के लिए कहती है। तब उत्तर देते हुए इस छंद में कहती है।
व्याख्या - हे सखी तुम्हारे कहने के अनुसार मैं श्रीकृष्ण का वेश धारण कर लूँगी, मैं सिर पर मोर पंख का मुकुट धारण कर लूँगी, गले में गुंजाफल की माला भी पहन लूंगी। मैं पीताम्बर ओढ़ लूँगी और हाथ में लाठी लेकर वन में ग्वालाओं के साथ गाय, बछड़ा आदि के पीछे-पीछे घूमती फिरूंगी। रसखान कवि के शब्दों में गोपी कहती है कि प्रेंमरस के अवतार श्रीकृष्ण को जो भी प्रिय है, तुम्हारे कहने से मैं सब कुछ करूँगी। किन्तु जिस वंशी को श्रीकृष्ण ने अपने होठों पर रखा उसे मैं अपने होठों पर धारण नहीं करूँगी।
विशेष - (1) गोपिका श्रीकृष्ण को प्रेंम करती है इसीलिए सब कुछ करने को तत्पर है।
(2) उसके मन में वंशी के प्रति सौतिया भाव है इसीलिए उसे धारण करने को तैयार नहीं होती है।
(3) यमक, श्लेष एवं अनुप्रास अलंकारों की छटा दर्शनीय है।
(4) सुललित ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ है।
सवैया (4) - काननि दै अंगुरी रहिबो
जबहीं मुरली धुनि मंद बजैहै।
मोहनी ताननि सों रसखानि
अटा चढ़ि गोधन गैहै तो गैहैं।
टेर कहाँ सिगरे बृजलोगनि
काल्हि कोऊ कितनो समुझै है।
माइरी वा मुख की मुसकानि
सम्हारी न जैहैं, न जैहै, न जैहै॥
संदर्भ - यह पद्य हमारी पाठ्य पुस्तक के सवैये पाठ से लिया गया है। इसके कवि रसखान हैं।
प्रसंग - श्रीकृष्ण की हर अदा को प्रेंम करने वाली गोपी की मुस्कान पर मुग्ध होने की विवशता का आकर्षक अंकन हुआ है।
व्याख्या - कृष्ण की वंशी के स्वर से आनंदित होने वाली गोपी कहती है कि यदि श्रीकृष्ण धीमे स्वर में वंशी बजायेंगे तो मैं अपने कानों में अंगुली लगा लूँगी। मुझे मंद स्वर में वंशी नहीं सुननी है। कवि रसखान के शब्दों में गोपी कहती है कि वे अट्टालिका पर चढ़कर गोधन गीत गाएँ तो गाते रहें, मुझे वह गीत नहीं सुनना है किन्तु गोपी साफ-साफ शब्दों में ब्रज के लोगों को पुकार पुकार कर कहती है कि कल मुझे कोई समझाने का कितना ही प्रयास करता रहे, मैं समझने में असमर्थ रहूँगी। मैं उनके और सभी व्यवहारों को तो सहन कर लूँगी किन्तु हे माइ, उनकी मुस्कान के चमत्कारी प्रभाव को संभालने में मैं असमर्थ रहूँगी। मैं उनकी मुस्कान के सामने मजबूर होकर रह जाऊँगी।
विशेष - (1) गोपी की प्रेंमपूर्ण विवशता का मार्मिक अंकन हुआ है।
(2) गोपी को लोक निन्दा की भी चिंता नहीं है।
(3) पुनरुक्तिप्रकाश तथा अनुप्रास अलंकार।
(4) माधुर्य गुण युक्त ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ है।
अभ्यास - प्रश्न उत्तर
प्रश्न 1. ब्रजभूमि के प्रति कवि का प्रेंम किन-किन रूपों में अभिव्यक्त हुआ है?
उत्तर - कवि रसखान को ब्रजभूमि इतनी प्रिय है कि वे अगले जन्म में भी ग्वाला, गाय, पत्थर, पक्षी आदि रूपों में ब्रज भूमि में ही रहना चाहते हैं। इसके लिए वे तीनों लोकों का राज्य सिंहासन, आठों सिद्धियाँ, नौ निधियाँ आदि भी त्यागने को तैयार है। वे ब्रज के वन, बाग, तालाब, करील के कुंज आदि देखने के लिए लालायित हैं। वे सोने-चांदी के महल त्यागकर ब्रज की झाड़ियों में रहना चाहते हैं।
प्रश्न 2. कवि का ब्रज के वन, बाग और तालाब निहारने के पीछे क्या कारण है?
उत्तर - रसखान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त हैं। वे उन सभी चीजों को प्रेंम करते हैं जिनसे श्रीकृष्ण का सम्बन्ध रहा है। ब्रज के वन, बाग और तालाबों से श्रीकृष्ण का सम्बन्ध है इसीलिए कवि उनको निहारने के लिए लालायित हैं।
प्रश्न 3. सखी ने गोपी से कृष्ण का कैसा रूप धारण करने का आग्रह किया था? अपने शब्दों में वर्णन कीजिए।
उत्तर - सखी गोपी से श्रीकृष्ण के ग्वाला रूप को धारण करने का आग्रह करती है। वह चाहती है कि गोपी श्रीकृष्ण की तरह ही अपने सिर पर मोर-मुकुट धारण करे, गले में गुंजा-फल की माला पहने, पीताम्बर ओढ़ ले, हाथ में लाठी लेकर गायों के पीछे वन में घूमे और अपने ओठों पर मन मोहिनी वंशी धारण करके मधुर स्वर में बजाए।
प्रश्न 4. आपके विचार से कवि पशु, पक्षी और पहाड़ के रूप में भी कृष्ण का सानिध्य क्यों प्राप्त करना चाहता है?
उत्तर - कवि रसखान श्रीकृष्ण के एकनिष्ठ भक्त है। उन्हें श्रीकृष्ण के साथ-साथ उनके सम्पर्क में रही प्रत्येक वस्तु से भी गहरा लगाव है। इसीलिए वे पशु, पक्षी अथवा पहाड़ के रूप में भी श्रीकृष्ण का सानिध्य चाहते हैं। इसमें कवि का दोहरा लाभ है। एक तो वे अपनी प्रिय वस्तु के रूप में होंगे और दूसरे उस वस्तु के रूप में उन्हें श्रीकृष्ण की निकटता प्राप्त होगी।
प्रश्न 5. भाव स्पष्ट कीजिए -
(क) कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं।
उत्तर - भाव यह है कि कवि रसखान को सोने-चाँदी के करोड़ों महलों के सुख-साधनों से भी अधिक ब्रज के करीलों के कुंज प्रिय हैं। क्योंकि उन करीलों के बीच उनके आराध्य देव श्रीकृष्ण रहे हैं। वे करोड़ों महलों को कांटेदार करीलों पर न्यौछावर करने को तैयार हैं। यहाँ प्रश्न जुड़ाव, लगाव का है धन लाभ का नहीं।
(ख) माइ री वा मुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै, न जैहै, न जैहै।
उत्तर - भाव यह है कि श्रीकृष्ण की अनोखी मुस्कान का इतना तीव्र प्रभाव है कि गोपी उस मुस्कान के प्रभाव को संभाल नहीं पाती है, वह अपना संयम खो बैठती है तथा उस मुस्कान के प्रभाव के प्रवाह में प्रवाहित हो उठती है। उसी संभाल न पाने की असमर्थता को वह अपनी माइ से कह रही है।
प्रश्न 6. ' कालिंदी कूल कदंब की डारन' में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर - इस पंक्ति में 'क' वर्ण की आवृत्ति एक से अधिक बार हुई है इसलिए इसमें अनुप्रास अलंकार है।
प्रश्न 7. काव्य सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए-
या मुरली मुरलीधर की अधरान घरी अधरा न धरौंगी।
उत्तर - (1) भाषा - इसमें माधुर्य गुण युक्त सुललित ब्रज भाषा का प्रयोग हुआ है।
(2) अलंकार - इस पंक्ति में आए मुरली तथा अधरान शब्दों का दो बार अलग-अलग अर्थों में प्रयोग हुआ है इसलिए 'यमक' अलंकार, वर्ण आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार है।
(3) रस - श्रृंगार रस।
रचना और अभिव्यक्ति
प्रश्न 8. प्रस्तुत सवैयों में जिस प्रकार ब्रजभूमि के प्रति प्रेंम अभिव्यक्त हुआ है, उसी तरह आप अपनी मातृभूमि के प्रति अपने मनोभावों को अभिव्यक्त कीजिए।
उत्तर - मैंने उस भारत भूमि पर जन्म लिया है जिसके लिए देवता भी तरसते हैं। मेरी जन्मभूमि धनधान्य, खनिज पदार्थों तथा वन, जंगलों से सम्पन्न है। यहाँ स्वादिष्ट और मीठे जल वाली नदियाँ प्रवाहित है। यहाँ के पर्वत शिखर हर प्राणी का मान मोह लेते हैं। वादियों की हरियाली, झरने, तालाब, बाग-बगीचे परम आनन्द प्रदान करने वाले हैं। यहाँ के वृक्ष मीठे-मीठे तथा पौष्टिक फल देते हैं। यहाँ की भूमि अत्यन्त उपजाऊ है। गेहूँ, चावल, चना, मक्का, जौ, गन्ना, बाजरा, मूंग, मसूर आदि सभी फसलें ऋतुओं के क्रम में पैदा होती हैं। सर्दी, गर्मी, वर्षा आदि ऋतुएँ यहाँ के निवासियों को सुख की अनुभूति कराती हैं। प्रकृति के समान ही यहाँ के समाज तथा संस्कृति भी श्रेष्ठ एवं उत्कृष्ट हैं। मेरी कामना है कि मेरा जब भी पृथ्वी पर जन्म हो तब भारत में ही हो। यह धरा मुझे प्राणों से प्यारी है।
प्रश्न 9. रसखान के इन सवैयों का शिक्षक की सहायता से कक्षा में आदर्श वाचन कीजिए। साथ ही किन्हीं दो सवैयों को कंठस्थ कीजिए।
उत्तर - विद्यार्थी शिक्षक की सहायता से इन सवैयों का कक्षा में आदर्श वाचन करेंगे और अपनी पसंद के दो सवैये कंठस्थ कर लेंगे।
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(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण
होगी।)
Thank you.
R F Temre
rfhindi.com
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