पाठ 8 बालगोबिन भगत कक्षा- 10 विषय- हिंदी (क्षितिज भाग 2 गद्य खंड) पाठ का सारांश, प्रमुख गद्यांश, प्रश्नोत्तर, रचना अभिव्यक्ति || Path 8 Balgivin Bhagat
पाठ - 8 'बालगोबिन भगत'
सम्पूर्ण पाठ
बालगोबिन भगत मंझोले कद के गोरे-चिट्टे आदमी थे। साठ से ऊपर के ही होंगे। बाल पक गए थे। लंबी दाढ़ी या जटाजूट तो नहीं रखते थे, किंतु हमेशा उनका चेहरा सफ़ेद बालों से ही जगमग किए रहता। कपड़े बिलकुल कम पहनते। कमर में एक लंगोटी-मात्र और सिर में कबीरपॉथयों की-सी कनफटी टोपी। जब जाड़ा आता, एक काली कमली ऊपर से ओढ़े रहते। मस्तक पर हमेशा चमकता हुआ रामानंदी चंदन, जो नाक के एक छोर से ही, औरतों के टीके की तरह, शुरू होता। गले में तुलसी की जड़ों की एक बेडौल माला बाँधे रहते।
ऊपर की तसवीर से यह नहीं माना जाए कि बालगोबिन भगत साधु थे। नहीं, बिलकुल गृहस्थ! उनकी गृहिणी की तो मुझे याद नहीं, उनके बेटे और पतोहू को तो मैंने देखा था। थोड़ी खेतीबारी भी थी, एक अच्छा साफ़-सुथरा मकान भी था।
किंतु, खेतीबारी करते, परिवार रखते भी, बालगोबिन भगत साधु थे-साधु की सब परिभाषाओं में खरे उत्तरनेवाले। कबीर को 'साहब' मानते थे, उन्हीं के गीतों को गाते, उन्हीं के आदेशों पर चलते। कभी झूठ नहीं बोलते, खरा व्यवहार रखते। किसी से भी दो-टूक बात करने में संकोच नहीं करते, न किसी से खामखाह झगड़ा मोल लेते। किसी की चीज नहीं छूते, न बिना पूछे व्यवहार में लाते। इस नियम को कभी-कभी इतनी बारीकी तक ले जाते कि लोगों को कुतूहल होता!-कभी वह दूसरे के खेत में शौच के लिए भी नहीं बैठते! वह गृहस्थ थे; लेकिन उनकी सब चीज 'साहब' की थी। जो कुछ खेत में पैदा होता, सिर पर लादकर पहले उसे साहब के दरबार में ले जाते जो उनके घर से चार कोस दूर पर था-एक कबीरपंथी मठ से मतलब ! वह दरबार में 'भेंट' रूप रख लिया जाकर 'प्रसाद' रूप में जो उन्हें मिलता, उसे घर लाते और उसी से गुज्जर चलाते!
इन सबके ऊपर, मैं तो मुग्ध था उनके मधुर गान पर जो सदा-सर्वदा ही सुनने को मिलते। कबीर के वे सीधे-सादे पद, जो उनके कंठ से निकलकर सजीव हो उठते।
आसाढ़ की रिमझिम है। समूचा गाँव खेतों में उतर पड़ा है। कहीं हल चल रहे हैं; कहीं रोपनी हो रही है। धान के पानी भरे खेतों में बच्चे उछल रहे हैं। औरतें कलेवा लेकर मेंड़ पर बैठी हैं। आसमान बादल से घिरा; धूप का नाम नहीं। ठंडी पुरवाई चल रही। ऐसे ही समय आपके कानों में एक स्वर-तरंग झंकार-सौ कर उठी। यह क्या है-यह कौन है। यह पूछना न पड़ेगा। बालगोबिन भगत समूचा शरीर कीचड़ में लिथड़े, अपने खेत में रोपनी कर रहे हैं। उनकी अंगुली एक-एक धान के पौधे को, पक्तिबद्ध, खेत में बिठा रही है। उनका कंठ एक-एक शब्द को संगीत के जीने पर चढ़ाकर कुछ को ऊपर, स्वर्ग की ओर भेज रहा है और कुछ को इस पृथ्वी की मिट्टी पर खड़े लोगों के कानों की ओर। बच्चे खेलते हुए झूम उठते हैं; मॅड़ पर खड़ी औरतों के होंठ काँप उठते हैं, वे गुनगुनाने लगती हैं; हलवाहों के पैर ताल से उठने लगते हैं; रोपनी करनेवालों की अंगुलियाँ एक अजीब क्रम से चलने लगती हैं। बालगोबिन भगत का यह संगीत है या जादू!
भादो की वह अँधेरी अधरतिया। अभी, थोड़ी ही देर पहले मुसलधार वर्षा खत्म हुई है। बादलों की गरज, बिजली की तड़प में आपने कुछ नहीं सुना हो, किंतु अब झिल्ली की झंकार या दादुरों की टर्र-टर्र बालगोबिन भगत के संगीत को अपने कोलाहल में डुबो नहीं सकतीं। उनकी खैजड़ी डिमक-डिमक बज रही है और वे गा रहे हैं "गोदी में पियवा, चमक उठे सखिया, चिहुँक उठे ना!" हाँ, पिया तो गोद में ही है, किंतु वह समझती है, वह अकेली है, चमक उठती है, चिहुँक उठती है। उसी भरे-बादलों वाले भादो की आधी रात में उनका यह गाना अँधेरे में अकस्मात कौंध उठने वाली बिजली की तरह किसे न चौंका देता? अरे, अब सारा संसार निस्तब्धता में सोया है, बालगोबिन भगत का संगीत जाग रहा है, जगा रहा है!—तेरी गठरी में लागा चोर, मुसाफ़िर जाय जरा!
कातिक आया नहीं कि बालगोबिन भगत की प्रभातियाँ शुरू हुई, जो फागुन तक चला करतीं। इन दिनों वह सबेरे ही उठते। न जाने किस वक्त जगकर वह नदी-स्नान को जाते-गाँव से दो मील दूर। वहाँ से नहा-धोकर लौटते और गाँव के बाहर ही, पोखरे के ऊँचे भिडे पर, अपनी खैजड़ी लेकर जा बैठते और अपने गाने टेरने लगते। मैं शुरू से ही देर तक सोनेवाला हूँ, किंतु, एक दिन, माघ की उस दाँत किटकिटानेवाली भोर में भी, उनका संगीत मुझे पोखरे पर ले गया था। अभी आसमान के तारों के दीपक बुझे नहीं थे। हाँ, पूरब में लोही लग गई थी जिसकी लालिमा को शुक्र तारा और बढ़ा रहा था। खेत, बगीचा, घर-सब पर कुहासा छा रहा था। सारा वातावरण अजीब रहस्य से आवृत मालूम पड़ता था। उस रहस्यमय वातावरण में एक कुश की चटाई पर पूरब मुँह, काली कमली ओढ़े, बालगोबिन भगत अपनी खैजड़ी लिए बैठे थे। उनके मुँह से शब्दों का ताँता लगा था, उनकी अँगुलियाँ खैजड़ी पर लगातार चल रही थीं। गाते-गाते इतने मस्त हो जाते, इतने सुरूर में आते, उत्तेजित हो उठते कि मालूम होता, अब खड़े हो जाएँगे। कमली तो बार-बार सिर से नीचे सरक जाती। मैं जाड़े से कँपकँपा रहा था, किंतु तारे की छाँव में भी उनके मस्तक के श्रमबिंदु, जब-तब, चमक ही पड़ते।
गर्मियों में उनकी 'संझा' कितनी उमसभरी शाम को न शीतल करती! अपने घर के आँगन में आसन जमा बैठते। गाँव के उनके कुछ प्रेमी भी जुट जाते। खैजड़ियों और करतालों की भरमार हो जाती। एक पद बालगोबिन भगत कह जाते, उनकी प्रेमी मंडली उसे दुहराती, तिहराती। धीरे-धीरे स्वर ऊँचा होने लगता-एक निश्चित ताल, एक निश्चित गति से। उस ताल-स्वर के चढ़ाव के साथ श्रोताओं के मन भी ऊपर उठने लगते। धीरे-धीरे मन तन पर हावी हो जाता। होते-होते, एक क्षण ऐसा आता कि बीच में खैजड़ी लिए बालगोबिन भगत नाच रहे हैं और उनके साथ ही सबके तन और मन नृत्यशील हो उठे हैं। सारा आँगन नृत्य और संगीत से ओतप्रोत है!
बालगोबिन भगत की संगीत-साधना का चरम उत्कर्ष उस दिन देखा गया जिस दिन उनका बेटा मरा। इकलौता बेटा था वह! कुछ सुस्त और बोदा-सा था, किंतु इसी कारण बालगोबिन भगत उसे और भी मानते। उनकी समझ में ऐसे आदमियों पर ही ज्यादा नजर रखनी चाहिए या प्यार करना चाहिए, क्योंकि ये निगरानी और मुहब्बत के ज्यादा हकदार होते हैं। बड़ी साध से उसकी शादी कराई थी, पतोहू बड़ी ही सुभग और सुशील मिली थी। घर की पूरी प्रबंधिका बनकर भगत को बहुत कुछ दुनियादारी से निवृत्त कर दिया था उसने। उनका बेटा बीमार है, इसकी खबर रखने की लोगों को कहाँ फुरसत! किंतु मौत तो अपनी ओर सबका ध्यान खींचकर ही रहती है। हमने सुना, बालगोबिन भगत का बेटा भर गया। कुतूहलवश उनके घर गया। देखकर दंग रह गया। बेटे को आँगन में एक चटाई पर लिटाकर एक सफ़ेद कपड़े से ढाँक रखा है। वह कुछ फूल तो हमेशा ही रोपते रहते, उन फूलों में है से कुछ तोड़कर उस पर बिखरा दिए हैं; फूल और तुलसीदल भी। सिरहाने एक चिराग जला रखा है। और, उसके सामने जमीन पर ही आसन जमाए गीत गाए चले जा रहे हैं। वही पुराना स्वर, वही पुरानी तल्लीनता। घर में पतोहू रो रही है जिसे गाँव की स्त्रियाँ चुप कराने की कोशिश कर रही हैं। किंतु, बालगोबिन भगत गाए जा रहे हैं। हाँ, गाते-गाते कभी-कभी पतोडू के नजदीक भी जाते और उसे रोने के बदले उत्सव मनाने को कहते। आत्मा परमात्मा के पास चली गई, विरहिनी अपने प्रेमी से जा मिली, भला इससे बढ़कर आनंद की कौन बात? मैं कभी-कभी सोचता, यह पागल तो नहीं हो गए। किंतु नहीं, वह जो कुछ कह रहे थे उसमें 'उनका विश्वास बोल रहा था वह चरम विश्वास जो हमेशा ही मृत्यु पर विजयी होता आया है।
बेटे के क्रिया-कर्म में तूल नहीं किया; पतोहू से ही आग दिलाई उसकी। किंतु ज्योंही श्राद्ध की अवधि पूरी हो गई, पतोहू के भाई को बुलाकर उसके साथ कर दिया, यह आदेश देते हुए कि इसकी दूसरी शादी कर देना। इधर पतोहू रो-रोकर कहती-मैं चली जाऊँगी तो बुढ़ापे में कौन आपके लिए भोजन बनाएगा, बीमार पड़े, तो कौन एक चुल्लू पानी भी देगा? मैं पैर पड़ती हूँ, मुझे अपने चरणों से अलग नहीं कीजिए! लेकिन भगत का निर्णय अटल था। तू जा, नहीं तो मैं ही इस घर को छोड़कर चल दूँगा-यह थी उनकी आखिरी दलील और इस दलील के आगे बेचारी की क्या चलती?
बालगोबिन भगत की मौत उन्हीं के अनुरूप हुई। वह हर वर्ष गंगा स्नान करने जाते। स्नान पर उतनी आस्था नहीं रखते, जितना संत समागम और लोक-दर्शन पर। पैदल ही जाते। करीब तीस कोस पर गंगा थी। साधु को संबल लेने का क्या हक? और, गृहस्थ किसी से भिक्षा क्यों माँगे? अतः, घर से खाकर चलते, तो फिर घर पर ही लौटकर खाते। रास्ते भर खैजड़ी बजाते, गाते जहाँ प्यास लगती, पानी पी लेते। चार-पाँच दिन आने-जाने में लगते; किंतु इस लंबे उपवास में भी वही मस्ती! अब बुढ़ापा आ गया था, किंतु टेक वही जवानीवाली। इस बार लौटे तो तबीयत कुछ सुस्त थी। खाने-पीने के बाद भी तबीयत नहीं सुधरी, थोड़ा बुखार आने लगा। किंतु नेम-व्रत तो छोड़नेवाले नहीं थे। वही दोनों जून गीत, स्नानध्यान, खेतीबारी देखना। दिन-दिन छीजने लगे। लोगों ने नहाने-धोने से मना किया, आराम करने को कहा। किंतु, हँसकर टाल देते रहे। उस दिन भी संध्या में गीत गाए, किंतु मालूम होता जैसे तागा टूट गया हो, माला का एक-एक दाना बिखरा हुआ। भोर में लोगों ने गीत नहीं सुना, जाकर देखा तो बालगोबिन भगत नहीं रहे सिर्फ़ उनका पंजर पड़ा है!
लेखक परिचय―
रामवृक्ष बेनीपुरी
रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के बेनीपुर गाँव में सन् 1899 में हुआ। माता-पिता का निधन बचपन में ही हो जाने के कारण जीवन के आरंभिक वर्ष अभावों-कठिनाइयों और संघर्षों में बीते। दसवीं तक की शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे सन् 1920 में राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन से सक्रिय रूप से जुड़ गए। कई बार जेल भी गए। उनका देहावसान सन् 1968 में हुआ।
15 वर्ष की अवस्था में बेनीपुरी जी की रचनाएँ पत्र-पत्रिकाओं में छपने लगीं। वे बेहद प्रतिभाशाली पत्रकार थे। उन्होंने अनेक दैनिक, साप्ताहिक एवं मासिक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया, जिनमें तरुण भारत, किसान मित्र, बालक, युवक, योगी, जनता, जनवाणी और नयी धारा उल्लेखनीय हैं। गद्य की विविध विधाओं में उनके लेखन को व्यापक प्रतिष्ठा मिली। उनका पूरा साहित्य बेनीपुरी रचनावली के आठ खंडों में प्रकाशित है। उनकी रचना-यात्रा के महत्त्वपूर्ण पड़ाव हैं- पतितों के देश में (उपन्यास); चिता के फूल (कहानी); अंबपाली (नाटक); माटी की मूरतें (रेखाचित्र); पैरों में पंख बाँधकर (यात्रा-वृत्तांत); जंजीरें और दीवारें (संस्मरण) आदि। उनकी रचनाओं में स्वाधीनता की चेतना, मनुष्यता की चिंता और इतिहास की युगानुरूप व्याख्या है। विशिष्ट शैलीकार होने के कारण उन्हें 'कलम का जादूगर' कहा जाता है। रामवृक्ष बेनीपुरी ने लोक संस्कृति एवं मानवता के श्रेष्ठ चरित्र बालगोबिन भगत को सशक्त रूप में प्रस्तुत किया है। बालगोबिन भगत कबीरपंथी गृहस्थ सन्त थे। साठ वर्ष से अधिक आयु के भगत एक लंगोटी और सिर पर कनफटी कबीरपंथी टोपी पहनते थे। सर्दी में कम्बल ओढ़ लेते थे। पहनावे से साधु नहीं थे। उनके एक बेटा व बहू थे। भगत के आदर्श कबीर थे। वह कबीर को साहब कहते थे। वे स्पष्ट तथा सच्ची बात करते थे किन्तु किसी से झगड़ा नहीं करते थे। दूसरे की चीज को वे छूते तक न थे। खेती करते थे किन्तु उसमें जो भी पैदा होता उसे पहले कबीरपंथी मठ में ले जाते वहाँ प्रसाद के बतौर जो मिलता उसी से गुजारा करते थे। कबीर के पदों को गाते थे। आषाढ़ मास में सभी अपने-अपने कामों में लगे होते थे। जब आसमान बादलों से घिरा होता था, ठंडी हवा चल रही होती तब भगत के मधुर गीतों के स्वर कान में पड़ते ही लगता था कि जैसे कुछ स्वर ऊपर स्वर्ग की ओर जा रहे हैं और कुछ धरती के लोगों की तरफ आ रहे हैं। भादों की काली रात में सारा संसार सोया होता था और भगत का संगीत जाग रहा होता था। कार्तिक में बालगोबिन भगत की प्रभातियों शुरू हो जातीं जो फागुन तक चलतीं। सर्दियों के दिनों वे प्रातः भोर में जगकर नदी में स्नान करके आते और गाँव के बाहर पोखरों पर ऊँचे भिड़े पर बैठकर गाते। गर्मियों में अपने घर के आँगन में ही मण्डली के साथ आसन जमाते और गाते, नाचते। बालगोबिन भगत के संगीत का चरम उत्कर्ष उस दिन दिखाई पड़ा जिस दिन उनके इकलौते बेटे को मृत्यु हुई। बेटे के शव को चटाई पर लिटाकर सफेद कपड़े से ढक दिया, कुछ फूल डाल दिए। पास में आसन जमाकर बैठ गए और गीत गाए जा रहे थे। कभी-कभी पतोहू के पास जाते, उसे समझाते कि यह रोने का नहीं उत्सव का समय है, आत्मा-परमात्मा से जा मिली। उन्होंने बेटे की चिता को पतोहू से आग लगवाई। जैसे ही श्राद्ध का समय समाप्त हुआ पतोहू को उसके भाई के साथ भेज दिया और कहा कि इसकी दूसरी जगह शादी कर दो। बहू के बहुत आग्रह करने पर भी वे न माने। उनको मृत्यु भी उन्हीं के अनुरूप हुई। वे हर बार गंगा स्नान करने जाते थे वहाँ सन्तों के साथ और जनता के दर्शन का लाभ उठाते। गंगा तीस कोस थी। पैदल ही घर आते-जाते और लौटकर घर पर ही खाना खाते थे, बस प्यास लगने पर पानी पी लेते। उस बार लौटे तो तबियत सुस्त थी। खाने-पीने पर भी लाभ न हुआ। नियम, व्रत छोड़े नहीं, दिन-दिन छोजते गए। उस दिन संध्या में गीत गाए किन्तु भोर में उनका स्वर सुनाई न दिया। जाकर देखा तो भगत का पंजर मात्र पड़ा था। मझोले कद - मध्यम कद। गद्यांश (1)― खेतीबारी करते, परिवार रखते भी, बालगोबिन भगत साधु थे- साधु की सब परिभाषाओं में खरे उतरने वाले। कबीर को 'साहब' मानते थे, उन्हीं के गीतों को गाते, उन्हीं के आदेशों पर चलते। कभी झूठ नहीं बोलते, खरा व्यवहार रखते। किसी से भी दो टूक बात करने में संकोच नहीं करते, न किसी से खामखाह झगड़ा मोल लेते। किसी की चीज नहीं छूते, न बिना पूछे व्यवहार में लाते। संदर्भ- यह गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के 'बालगोबिन भगत' पाठ से लिया गया है। इसके लेखक रामवृक्ष बेनीपुरी है। प्रसंग- यहाँ बालगोबिन भगत के आचार-विचार, व्यवहार के बारे में बताया गया है। व्याख्या- लेखक बताते हैं कि बालगोबिन भगत यद्यपि खेतीबाड़ी करते थे। उनका घर परिवार भी था। इसके बावजूद वे संन्यासी थे। उन पर साधु की सभी परिभाषाएँ खरी उतरती थीं। वे कबीर को 'साहब' मानते थे। उनके विचारों का पालन करते थे। उनके ही गोतों को गाते रहते थे। कबीर के सिद्धान्तों को उन्होंने अपना रखा था। कभी झूठ नहीं बोलते थे। सबके साथ उनका खरा व्यवहार रहता था। वे प्रत्येक व्यक्ति से साफ बात करते थे। छल-कपट का प्रश्न ही नहीं था। वे अनावश्यक रूप से किसी से झगड़ा भी नहीं करते थे। दूसरे को चीज को वे हाथ भी नहीं लगाते थे। बिना पूछे किसी दूसरे की चीज का उपयोग भी नहीं करते थे। विशेष- (1) बालगोबिन भगत के सीधे-सच्चे व्यक्तित्व का सटीक अंकन हुआ है। गद्यांश (2)― बालगोबिन भगत की संगीत साधना का चरम अकर्ष उस दिन देखा गया जिस दिन उनका बेटा मरा। इकलौता बेटा था वह। कुछ सुस्त और बोदा-सा था, किन्तु इसी कारण बालगोबिन भगत उसे और भी मानते। उनकी समझ से ऐसे आदमियों पर ही ज्यादा नजर रखनी चाहिए या प्यार करना चाहिए; क्योंकि ये निगरानी और मुहब्बत के ज्यादा हकदार होते हैं। संदर्भ- यह गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के 'बालगोबिन भगत' पाठ से लिया गया है। इसके लेखक रामवृक्ष बेनीपुरी है। प्रसंग- इसमें बालगोबिन भगत के मानवीय रूप का अंकन किया है। व्याख्या- संगीत के प्रति समर्पित बालगोबिन भगत की संगीत साधना का सबसे उत्कृष्ट रूप उस दिन देखने को मिला जिस दिन उनके पुत्र की मृत्यु हुई। वह उनका अकेला पुत्र था। वह दिमाग से कमजोर तथा निर्बल था। बालगोबिन भगत की मान्यता थी कि इस तरह के लोगों का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए। ऐसे लोग अधिक देखभाल तथा सहायता के पात्र होते हैं। ये अपनी देखभाल नहीं कर पाते हैं इसलिए दूसरों को इनकी हिफाजत का ध्यान रखना चाहिए। विशेष- (1) बालगोबिन भगत के उदार तथा मानवीय चरित्र का अंकन हुआ है। गद्यांश (3)― बालगोबिन भगत गाए जा रहे हैं। हाँ, गाते-गाते कभी-कभी पतोहू के नजदीक भी जाते और उसे रोने के बदले उत्सव मनाने को कहते। आत्मा-परमात्मा के पास चली गई, विरहिणी अपने प्रेमी से जा मिली, भला इससे बढ़कर आनंद की कौन बात ? मैं, कभी-कभी सोचता यह पागल तो नहीं हो गए। किन्तु नहीं, वह जो कुछ कह रहे थे उसमें उनका विश्वास बोल रहा था- वह चरम विश्वास जो हमेशा ही मृत्यु पर विजयी होता आया है। संदर्भ- यह गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के 'बालगोबिन भगत' पाठ से लिया गया है। इसके लेखक रामवृक्ष बेनीपुरी है। प्रसंग- कबीर जीवात्मा और परमात्मा को प्रेमिका और प्रेमी मानते हैं। वहीं सिद्धान्त बालगोबिन भगत भी अपनाये हैं। उसी का बखान यहाँ कर रहे हैं। व्याख्या- बेटे के शव के पास आसन जमाए बैठे बालगोबिन भगत कबीर के पद गाए जा रहे हैं। वे गाते हुए जब-तब पुत्रवधू के पास पहुँच जाते हैं और उसे समझाते हैं कि यह समय रोने का नहीं उत्सव मनाने का है। जीवात्मा अपने प्रेमी परमात्मा से जाकर मिल गई है। वियोगिनी जीवात्मा का कष्ट समाप्त हो गया है। इसलिए अब रोना ठीक नहीं। यह तो आनन्द मनाने का शुभ समय है। उनको इन बातों को सुनकर लेखक को कभी-कभी लगता कि कहीं वे पागल तो नहीं हो गए हैं जो इस तरह की बात कर रहे हैं। किन्तु उनकी बातों में उनके हृदय का पक्का विश्वास बोल रहा है। वे जो भी कह रहे हैं उसे वे हृदय से मानते हैं। इसमें उनकी दृढ़ आस्था है। उनके हृदय में जो विश्वास है उसने सदैव मृत्यु को विजयी किया है। इस विश्वास के सामने मौत हमेशा पराजित हुई है। विशेष- (1) इस गद्यांश में बालगोबिन भगत को कबीर की मान्यताओं में पक्की आस्था व्यक्त हुई है। गद्यांश (4)― वह हर वर्ष गंगा-स्नान करने जाते। स्नान पर उतनी आस्था नहीं रखते, जितना संत समागम और लोक-दर्शन पर। पैदल ही जाते। करीब तीस कोस पर गंगा थी। साधु को संबल लेने का क्या हक ? और गृहस्थ किसी से भिक्षा क्यों माँगे ? अतः घर से खाकर चलते, तो फिर घर पर ही लौटकर खाते। रास्ते भर खंजड़ी बजाते, गाते, जहाँ प्यास लगती, पानी पी लेते। चार-पाँच दिन आने-जाने में लगते; किन्तु इस लंबे उपवास में भी वही मस्ती! संदर्भ- यह गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के 'बालगोबिन भगत' पाठ से लिया गया है। इसके लेखक रामवृक्ष बेनीपुरी है। प्रसंग- यहाँ पर बालगोबिन भगत के सहज, सहनशील तथा वीतरागी स्वभाव पर प्रकाश डाला गया है। व्याख्या- बालगोबिन भगत प्रत्येक वर्ष गंगा स्नान करने के लिए जाते थे। कबीरपंथी होने के कारण गंगा-स्नान में तो उनका उतना विश्वास नहीं था जितना उन्हें साधु-सन्तों की संगति पाने के साथ ही जन-मानस से मिलना-जुलना प्रिय था। वे गंगा तक पैदल चलकर ही जाते। गंगा लगभग तीस कोस की दूरी पर थी। वे साधु स्वभाव के थे इसलिए किसी की सहायता नहीं लेते थे और गृहस्थ की तरह रहते थे। इस कारण भीख नहीं माँग सकते थे। फलस्वरूप वे घर से ही भोजन करके जाते तथा लौटकर घर पर आकर ही भोजन करते थे। मार्ग में खंजड़ी बजाते जाते और गाते जाते थे। यदि कहीं पर प्यास लगी तो पानी पी लेते थे। उन्हें गंगा तक जाने तथा लौटकर आने में चार-पाँच दिन लगते थे। इतने लम्बे समय तक उपवास करते हुए भी उनमें पूरी मस्ती का भाव रहता। मायूसी या दुर्बलता उन्हें छू नहीं पाती। विशेष- विशेष - (1) इसमें बालगोबिन भगत की सहन करने की शक्ति, अन्दर का उल्लास तथा साधु-सन्तों से मिलने की भावना का अंकन हुआ है। प्रश्न 1. खेतीबारी से जुड़े गृहस्थ बालगोबिन भगत अपनी किन चारित्रिक विशेषताओं के कारण साधु कहलाते थे? प्रश्न 2. भगत की पुत्रवधू उन्हें अकेले क्यों नहीं छोड़ना चाहती थी ? प्रश्न 3. भगत ने अपने बेटे की मृत्यु पर अपनी भावनाएँ किस तरह व्यक्त कीं? प्रश्न 4. भगत के व्यक्तित्व और उनकी वेशभूषा का अपने शब्दों में चित्र प्रस्तुत कीजिए। प्रश्न 5. पाठ के आधार पर बालगोबिन भगत के मधुर गायन की विशेषताएँ लिखिए। प्रश्न 6. धान की रोपाई के समय समूचे माहौल को भगत की स्वर लहरियाँ किस तरह चमत्कृत कर देती थीं ? उस माहौल का शब्द-चित्र प्रस्तुत कीजिए। प्रश्न 1. पाठ के आधार पर बताएँ कि बालगोबिन भगत की कबीर पर श्रद्धा किन-किन रूपों में प्रकट हुई है? प्रश्न 2. गाँव का सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश आषाढ़ चढ़ते ही उल्लास से क्यों भर जाता है? प्रश्न 3. "ऊपर की तसवीर से यह नहीं माना जाए कि बालगोबिन भगत साधु थे।" क्या साधु की पहचान पहनावे के आधार पर की जानी बाहिए? आप किन आधारों पर यह सुनिश्चित करेंगे कि अमुक व्यक्ति साधु है? प्रश्न 4. मोह और प्रेम में अन्तर होता है। भगत के जीवन की किस घटना के आधार पर इस कथन का सच सिद्ध करेंगे? प्रश्न 1. इस पाठ में आए कोई दस क्रिया विशेषण छाँटकर लिखिए और उनके भेद भी बताइए। कक्षा 10 क्षितिज (हिन्दी) के पद्य एवं गद्य खण्ड के पाठ, उनके सारांश एवं अभ्यास रसायन विज्ञान के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़ें। (Also read these 👇 episodes of Chemistry.) रसायन विज्ञान के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़ें। (Also read these 👇 episodes of Chemistry.) रसायन विज्ञान के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़ें। (Also read these 👇 episodes of Chemistry.) रसायन विज्ञान के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़ें। (Also read these 👇 episodes of Chemistry.) रसायन विज्ञान के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़ें। (Also read these 👇 episodes of Chemistry.) रसायन विज्ञान के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़ें। (Also read these 👇 episodes of Chemistry.) रसायन विज्ञान के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़ें। (Also read these 👇 episodes of Chemistry.) रसायन विज्ञान के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़ें। (Also read these 👇 episodes of Chemistry.) रसायन विज्ञान के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़ें। (Also read these 👇 episodes of Chemistry.) भौतिक विज्ञान के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़ें। (Also read these 👇 episodes of Physics.) भौतिक विज्ञान के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़ें। (Also read these 👇 episodes of Physics.) भौतिक विज्ञान के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़ें। (Also read these 👇 episodes of Physics.) भौतिक विज्ञान के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़ें। (Also read these 👇 episodes of Physics.) भौतिक विज्ञान के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़ें। (Also read these 👇 episodes of Physics.) भौतिक विज्ञान के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़ें। (Also read these 👇 episodes of Physics.) भौतिक विज्ञान के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़ें। (Also read these 👇 episodes of Physics.) भौतिक विज्ञान के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़ें। (Also read these 👇 episodes of Physics.) भौतिक विज्ञान के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़ें। (Also read these 👇 episodes of Physics.) भूगोल के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़ें। (Also read these 👇 episodes of Geography.) भूगोल के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़ें। (Also read these 👇 episodes of Geography.) भौतिक विज्ञान के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़ें। (Also read these 👇 episodes of Physics.) भौतिक विज्ञान के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़ें। (Also read these 👇 episodes of Physics.) भौतिक विज्ञान के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़ें। (Also read these 👇 episodes of Physics.) भूगोल के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़ें। (Also read these 👇 episodes of Geography.) भूगोल के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़ें। (Also read these 👇 episodes of Geography.) भूगोल के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़ें। (Also read these 👇 episodes of Geography.) भूगोल के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़ें। (Also read these 👇 episodes of Geography.) भूगोल के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़ें। (Also read these 👇 episodes of Geography.) भूगोल के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़ें। (Also read these 👇 episodes of Geography.) भूगोल के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़ें। (Also read these 👇 episodes of Geography.)
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important. पाठ का सारांश
महत्त्वपूर्ण शब्दार्थ
पक गए - सफेद हो गए।
जगमग - चमत्कृत।
कमली - कम्बल।
मस्तक - माथा।
बेडौल - बेतरतीब।
पतोहू - पुत्र वधू।
खामखाह - व्यर्थ में।
मुग्ध - मोहित।
सजीव - जीवन्त।
मधुर - मीठे।
शेयनी - धान की पौध लगाने का कार्य।
कलेवा - प्रातःकाल का भोजन।
कुतूहल - आश्चर्य।
स्वर तरंग - स्वर की लहर।
पंक्तिबद्ध - सीधी पांत में।
कंठ - गला।
जीने - सीढ़ियाँ।
हलवाहों - हल जोतने वालों।
अधरतिया - आधी रात।
मूसलाधार - तेज वर्षा।
झिल्ली दादुर - मेंढक।
कोलाहल - शोर-शराबा।
लोही - प्रात: के समय की लाली।
कुहासा - कोहरा।
उत्तेजित - आवेश में।
चिहुँक - चौंकना।
अकस्मात - अचानक।
कौंधना - चमकना।
निस्तब्धता - शान्ति, सन्नाटा।
प्रभातियाँ - प्रातःकाल गाये जाने वाले गीत।
खंजड़ी - ढपली।
भोर - अल सुबह।
आसमान के दीपक - तारे।
आवृत - ढ़का हुआ।
छाँव - छाया।
श्रम बिन्दु - पसीने की बूँदें।
संझा - शाम के समय की पूजा-भजन।
श्रोताओं - सुनने वालों।
ओतप्रोत - परिपूर्ण, पूरी तरह भरा।
चरम उत्कर्ष - सबसे ऊँचा स्तर।
सुभग - सुन्दर।
संबल - सहारा।
सुशील - अच्छे चरित्र की।
निवृत - मुक्त।
दंग - चकित।
चिराग - दीपक।
तुलसीदल - तुलसी के पत्ते।
विरहनी - वियोगिनी।
आस्था - विश्वास।
संत समागम - संतों की संगति।
टेक - प्रण, प्रतिज्ञा।
दो जून - दो समय।
छीजते - कमजोर होते।
पंजर - ढाँचा।महत्त्वपूर्ण गद्यांशों की व्याख्याएँ
(2) वर्णन प्रधान शैली तथा सरल, सुबोध भाषा का प्रयोग हुआ है।
(2) विचारात्मक शैली तथा सरल, सुबोध भाषा का प्रयोग हुआ है।
(2) जीवात्मा मृत्यु के बाद परमात्मा प्रेमी से मिल जाती है इसलिए मृत्यु आनन्द का अवसर है।
(3) विचारात्मक शैली तथा सरल, सुबोध भाषा का प्रयोग हुआ है।
(2) भावात्मक शैली तथा सरल, सुबोध भाषा का प्रयोग हुआ है।प्रश्न-अभ्यास
उत्तर— बालगोबिन भगत खेतीबाड़ी करते थे। वे गृहस्थ थे। उनके एक बेटा था तथा पुत्र-वधू थी जो उन्हीं के साथ रहते थे। उनका अपना घर था। यह सब होते हुए भी उनका आचरण साधु-सन्तों जैसा था। वं सदैव सत्य बोलते थे। सभी से दो टूक बात करते थे। उनके व्यवहार में छल-कपट नहीं था। ये दूसरे की वस्त को छूते तक न थे। बिना पूछे दूसरे की वस्तु का उपयोग भी नहीं करते थे। बिना बात किसी से झगड़ने का उनका स्वभाव न था। उनकी वेशभूषा साधारण थी। लंगोटी लगाते थे तथा सिर पर कनफटी कबीर पंथियों की सी टोपी पहनते थे। सर्दी में कम्बल ओढ़ लेते थे। वे खेती की पैदावार को कबीर मठ में ले जाते थे तथा वहाँ से उन्हें जो मिलता था उसी से अपनी गुजर-बसर करते थे। इस तरह वे गृहस्थ होते हुए भी साधु स्वभाव के थे।
उत्तर— भगत की पुत्रवधू उन्हें अकेले छोड़कर इसलिए नहीं जाना चाहती थी क्योंकि भगत के एकमात्र पुत्र की मृत्यु हो गई थी। उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं था। उनके खाने-पीने का प्रबन्ध करने वाला भी कोई नहीं था। नियम धर्म के अनुसार, जीवन जीने वाले भगत को स्वयं की चिन्ता नहीं रहती थी। वधू उनके खाने आदि की व्यवस्था करके उनके साथ उनकी देखभाल के लिए रहना चाहती थो।
उत्तर― बालगोबिन भगत ने अपने बेटे को मृत्यु पर रो-धोकर दुख प्रकट नहीं किया। उन्होंने बेटे के शव को सफेद कपड़े से ढक दिया उस पर फूल तथा तुलसी दल बिखेर दिए। स्वयं उसके पास आसन जमाकर गाने बैठ गए। वे तल्लीनता से कबीर के पदों को गाने लगे। उनके अनुसार मृत्यु के बाद जीवात्मा अपने प्रेमी परमात्मा से जा मिलती है। इसलिए मृत्यु उत्सव, आनन्द का समय है, रोने का नहीं। वे अपनी पुत्रवधू को भी उत्सव मनाने के लिए कह रहे थे।
उत्तर― बालगोबिन भगत साठ वर्ष से अधिक आयु के थे किन्तु गोरे-चिट्टे आदमी थे। उनके बाल सफेद
हो गए थे। उनका चेहरा सफेद बालों से चमत्कृत रहता था। वे शरीर पर एक लंगोटी तथा सिर पर कबीरपंथी कनफटी टोपी पहनते थे। उनके गले में तुलसी की बेडौल माला पड़ी रहती थी। उनके माथे पर रामानंदी चन्दन का टीका लगा होता था। जब सर्दी होती थी तो वे कम्बल ओढ़ लेते थे।
उत्तर― बालगोबिन भगत का स्वर बड़ा मधुर था। कबीर के पद उनके सरस स्वर में मिलकर सजीव हो उठते थे। वे बड़ी तन्मयता से गाते थे। उनके गायन का प्रभाव बहुत व्यापक होता था। उनका कंठ एक-एक शब्द को संगीत के जीने पर चढ़ाकर कुछ को ऊपर स्वर्ग की ओर भेज रहा होता था, कुछ को धरती पर खड़े लोगों के कानों में रस भरने हेतु भेजता था। गीत सुनकर बच्चे झूम उठते, स्त्रियों के होंठ काँप उठते, वे गुनगुनाने लगतीं, भादों की आधी रात में झींगुरों की झंकार तथा मेंढकों की टर्र-टरं के बीच भी भगत का संगीत मधुर स्वर में गूँज रहा होता है। भयंकर सर्दियों में भी बालगोबिन भगत का गायन मस्ती उत्पन्न कर रहा होता तो गर्मियों में घर के आँगन में साथियों के साथ गाते हुए डूबकर नृत्य कर रहे होते। बालगोबिन भगत हर ऋतु, हर वक्त, गायन में तल्लीन रहते थे।
उत्तर― आषाढ़ की रिमझिम वर्षा के बीच समूचा गाँव खेतों में उमड़ पड़ा है। धान रोपाई के समय बच्चे खेतों में उछल रहे हैं। स्त्रियाँ कलेवा लेकर मेड़ों पर बैठी हैं। आकाश में बादल घिरे हैं, ठंडी पुरवाई चल रही है। इस तरह के माहौल में बालगोबिन भगत की स्वर-तरंग झंकार-सी कर उठती है। उनका कंठ एक-एक शब्द को संगीत के जीने से चढ़ाकर कुछ को स्वर्ग की ओर भेज रहा है और कुछ को धरती के लोगों की ओर। स्वर सुनकर खेलते बच्चे झूम उठते हैं, स्त्रियों के होंठ काँप उठते, वे गुनगुनाने लगती हैं। हलवाहों के पैर ताल पर उठने लगते हैं और रोपनी कर रही अंगुलियाँ एक अजीब क्रम में चलने लगती हैं। यह बालगोबिन भगत का संगीत है या जादू।रचना और अभिव्यक्ति
उत्तर― बालगोबिन भगत कबीरपंथी थे और उन्हीं के आदर्शों पर चलते थे। उनकी कबीर पर श्रद्धा थी जो कई रूपों में प्रकट हुई है-
(i) उनका पहनावा कबीर जैसा ही था, सिर पर कबीरपंथियों जैसी कनफटी टोपी पहनते थे।
(ii) कबीर को 'साहब' मानते थे। उनके आदशों में गहरी आस्था थी।
(iii) कबीर के ही पदों को गाया करते थे।
(iv) जैसे कबीर गृहस्थ सन्त थे उसी तरह बालगोबिन भगत भी गृहस्थ सन्त थे।
(v) खेतीबाड़ी की पैदावार कबीर मठ पर ले जाते थे, वहाँ से जो लौटता था उसी में काम चलाते थे।
(vi) कबीर की तरह जीवात्मा को विरहिणी और परमात्मा को प्रेमी मानते थे।
(vii) कबीर की तरह रूढ़ियों का विरोध करते थे।
(viii) सत्संगति में विश्वास रखते थे, लोभ लालच मुक्त थे।
उत्तर― भारत कृषि प्रधान देश है। आषाढ़ के महीने में वर्षा होते ही खेतीबाड़ी के काम जोर-शोर से प्रारम्भ होते हैं। वर्षा होते ही खेतों की जुताई, बुआई आदि के कामों में स्त्री, पुरुष लग जाते हैं। उनके मन में नई फसल, अच्छी पैदावार को आशा जागती है इसलिए उल्लास के साथ खेती के कामों में संलग्न हो जाते हैं। एक प्रकार से आषाढ़ से खेती के वर्ष का प्रारम्भ होता है। भीषण गर्मी के कारण सभी परेशान थे आषाढ़ आया, बादल छाए और शीतल जल-वर्षा हुई। इसलिए सबमें उल्लास का जागना स्वाभाविक है। अब तक गर्मी के कारण गाँव के लोग निष्क्रिय थे अब वे उत्साह के साथ सक्रिय हो उठते हैं। सभी की सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियाँ चल पड़ी है।
उत्तर― साधु का सम्बन्ध मात्र पहनावे से नहीं है, आन्तरिक गुण ही साधु की पहचान कराते हैं। साधु वेश में महाधूर्त, ठग तथा अपराधी भी रहते हैं। अतः व्यक्ति के आचरण, व्यवहार, प्रवृत्ति आदि से पता चलता है कि वह साधु है या नहीं। साधु माया मोह से मुक्त, स्वार्थ से परे, अहंकाररहित होते हैं। वे समाज के कल्याण की भावना रखते हैं, अपने हित की नहीं। साधु की ईश्वर में गहरी आस्था होती है। मेरी दृष्टि में, ईश्वर में विश्वास रखने वाला, निस्वार्थ, वीतरागी तथा जनकल्याण के भाव से भरा व्यक्ति ही साधु कहा जा सकता है।
उत्तर― मोह में व्यक्ति विवेकहीन किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाता है जबकि प्रेम सात्विक भाव है। प्रेम में स्वार्थ नहीं सरसता होती है। भगत के जीवन की निम्नांकित घटना से इसका अन्तर समझा जा सकता है-
भगत का एक बेटा था जो सुस्त तथा कमजोर था। वे उसे प्रेम करते थे। उसका विशेष ध्यान रखते थे। उनका मानना था कि ऐसे व्यक्ति विशेष देखभाल के हकदार होते हैं। वे उसकी देखभाल करते भी थे। किन्तु जब उसकी मृत्यु हो जाती है तो मुक्त भाव से उसके शव के पास बैठकर तल्लीन होकर गीत गाते हैं। वे कहते हैं यह अवसर रोने का नहीं उत्सव का है क्योंकि विरहिणी जीवात्मा अपने प्रेमी परमात्मा से जा मिली है। इससे स्पष्ट है कि इनमें पुत्र के प्रति मोह का भाव नहीं था। वे अपनी पतोहू को भी अपने पास नहीं रखते हैं। वह बहुत कहती है किन्तु वे स्पष्ट मना कर देते हैं तथा उसके भाई से उसकी दूसरी शादी करने को कहते हैं। इस तरह भगत मोह से मुक्त हैं, उनमें प्रेम का भाव है।भाषा अध्ययन
उत्तर― इस पाठ में आए दस क्रिया विशेषण इस प्रकार हैं-
(1) धीरे-धीरे स्वर ऊँचा होने लगा। — (रीतिवाचक क्रिया विशेषण)
(2) कपड़े बिलकुल कम पहनते थे। — (भेद-संख्यावाचक क्रिया विशेषण)
(3) उनकी अंगुलियाँ खैजड़ी पर लगातार चल रही थीं। — (भेद-रीतिवाचक क्रिया विशेषण)
(4) अभी आसमान के तारों के दीपक नहीं बुझे थे। — (भेद-संख्यावाचक क्रिया विशेषण)
(5) कमली तो बार-बार सिर से नीचे सरक जाती। — (भेद-रीतिवाचक क्रिया विशेषण)
(6) उनकी खैजड़ी डिमक-डिमक बज रही है। — (भेद-रीतिवाचक क्रिया विशेषण)
(7) जो कुछ खेत में पैदा होता। — (भेद-परिमाणवाचक क्रिया विशेषण)
(8) हर वर्ष गंगा स्नान करने के लिए जाते। — (भेद-कालवाचक क्रिया विशेषण)
(9) जमीन पर ही आसन जमाए गीत गाए चले जा रहे हैं। — (भेद-स्थानवाचक क्रिया विशेषण)
1. 10th हिन्दी (क्षितिज- 2 काव्य-खण्ड) पाठ 1 'पद' (सूरदास, पदों का अर्थ)
2. पाठ 1 'माता का अँचल' (हिन्दी सहायक वाचन - कृतिका) सारांश, शिवपूजन सहाय - अभ्यास (प्रश्नोत्तर)
3. पाठ - 7 'नेताजी का चश्मा' पाठ व सारांश कक्षा - 10 अभ्यास प्रश्नोत्तर रचना अभिव्यक्ति एवं व्याकरण
1. रासायनिक समीकरण कैसे लिखा जाता है? | How Is A Chemical Equation Written?
2. द्रव्यमान संरक्षण का नियम | Law Of Conservation Of Mass
3. रासायनिक समीकरण कैसे संतुलित किये जाते हैं? | How Are Chemical Equations Balanced?
4. संयोजन अभिक्रिया (चूने की रासायनिक अभिक्रियाएँ) | Combination Reaction (Chemical Reaction Of Lime)
5. ऊष्माक्षेपी रासायनिक अभिक्रिया | Exothermic Chemical Reaction
1. वियोजन (अपघटन) अभिक्रिया और ऊष्माशोषी अभिक्रिया | Decomposition Reaction And Endothermic Reaction
2. विस्थापन अभिक्रिया और उसके उदाहरण | Displacement Reaction And Its Examples
3. अवक्षेपण एवं द्विविस्थापन अभिक्रियाएँ | Precipitation And Double Displacement Reactions
4. रेडॉक्स (उपचयन-अपचयन) अभिक्रियाएँ | Redox (Oxidation-Reduction) Reactions
5. संक्षारण एवं विकृतगंधिता | Corrosion And Rancidity
1. अम्ल एवं क्षारक के रासायनिक गुणधर्म | Chemical Properties Of Acids And Bases
2. अम्ल, क्षारक, सूचक एवं लिटमस पत्र | Acid, Base, Indicator And Litmus Paper
3. जलीय विलयन में अम्ल या क्षारक– उदासीनीकरण अभिक्रिया एवं तनुकरण | Acid Or Base In Aqueous Solution- Neutralization Reaction And Dilution
4. विलयन की अम्लता या क्षारीयता– pH पैमाना | Acidity Or Alkalinity Of A Solution– pH Scale
5. व्यवहारिक जीवन में pH पैमाना | pH Scale In Practical Life
1. लवण (एवं उनके pH) तथा साधारण नमक | Salts (And Their pH) And Common Salt
2. सोडियम हाइड्रॉक्साइड और क्लोर-क्षार प्रक्रिया | Sodium Hydroxide And The Chlor-Alkali Process
3. विरंजक चूर्ण– रासायनिक अभिक्रियाएँ एवं उपयोग | Bleaching Powder– Chemical Reactions And Uses
4. बेकिंग सोडा– रासायनिक अभिक्रियाएँ एवं उपयोग | Baking Soda– Chemical Reactions And Uses
5. धोने का सोडा– निर्माण एवं उपयोग | Washing Soda– Manufacture And Uses
1. क्रिस्टलन का जल– जिप्सम और प्लास्टर ऑफ पेरिस | Water Of Crystallisation– Gypsum And Plaster Of Paris
2. धातुएँ– भौतिक गुणधर्म | Metals– Physical Properties
3. धातुओं और अधातुओं से संबंधित तथ्य | Facts About Metals And Non-Metals
4. धातुओं की अम्ल, क्षारक और ऑक्सीजन के साथ अभिक्रिया | Reaction Of Metals With Acids, Bases And Oxygen
5. धातुओं की जल के साथ रासायनिक अभिक्रियाएँ | Chemical Reactions Of Metals With Water
1. धातुओं की लवणों के विलयन और अम्लों के साथ अभिक्रियाएँ | Reactions Of Metals With Solutions Of Salts And Acids
2. धातुओं की सक्रियता श्रेणी | Activity Series Of Metals
3. आयनिक यौगिक कैसे बनते हैं? | How Are Ionic Compounds Formed?
4. आयनिक यौगिकों के गुणधर्म | Properties Of Ionic Compounds
5. धातुओं की प्राप्ति (खनिज एवं अयस्क) | Recovery Of Metals (Minerals And Ores)
1. अयस्कों से धातुओं का निष्कर्षण एवं धातुओं का परिष्करण | Extraction Of Metals From Ores And Refining Of Metals
2. यशदलेपन, मिश्रातु, अमलगम, संक्षारण से सुरक्षा | Resilience, Alloy, Amalgam, Protection Against Corrosion
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5. कार्बनिक यौगिकों की नामपद्धति | Nomenclature Of Organic Compounds
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5. आँखों की संरचना का सचित्र वर्णन | Pictorial Description Of Eye Structure
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4. संयुक्त सूक्ष्मदर्शी की संरचना, रेखाचित्र और कार्यविधि | Structure, Diagram And Procedure Of Compound Microscope
5. खगोलीय दूरदर्शी का चित्र सहित वर्णन | Astronomical Telescope With Diagram
1. प्रकाश का वर्णक्रम क्या है? | प्रकाश का वर्ण विक्षेपण || What Is The Spectrum Of Light? | Dispersion Of Light
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1. संसाधन किसे कहते हैं? | संसाधनों के प्रकार || Who Are The Resources?
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3. नवीकरणीय और अनवीकरणीय संसाधन | Renewable And Non-Renewable Resources
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5. संसाधनों का वर्गीकरण– स्वामित्व और पुनः पुर्ति के आधार पर | Classification Of Resources– On Ownership And Replenishment Basis
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1. मानव जीवन में ऊर्जा स्त्रोतों का महत्व | Importance Of Energy Sources In Human Life
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3. जीवाश्म ईंधन क्या है? | What Is Fossil Fuel?
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5. पेट्रोलियम क्या है? | What Is Petroleum?
1. पेट्रोलियम परिष्करण का प्रभाजी आसवन | Fractional Distillation Of Petroleum Refining
2. सम्पीडित प्राकृतिक गैस | Compressed Natural Gas (CNG)
3. द्रव पेट्रोलियम गैस | Liquefied Petroleum Gas (LPG)
4. दहन और ज्वलन ताप | Combustion And Ignition Temperature
5. ईंधन का ऊष्मीय मान या कैलोरी मान | Calorific Value Of Fuel
1. अच्छे ईंधन का चयन कैसे करें? | How To Choose Good Fuel?
2. नाभिकीय ऊर्जा क्या है? | What Is Nuclear Energy?
3. नाभिकीय संलयन क्या है? | हाइड्रोजन बम || What Is Nuclear Fusion? | Hydrogen Bomb
4. नाभिकीय विखण्डन क्या है? | What Is Nuclear Fission?
5. नियंत्रित और अनियंत्रित श्रृंखला अभिक्रिया | Controlled And Uncontrolled Chain Reaction
1. भारत एवं विश्व के देशों के आकार व स्थिति | Size And Position Of India And Countries Of The World
2. विश्व तथा भारत (एवं उसके पड़ोसी देश) | World And India (And Its Neighboring Countries)
3. भारत की स्थलाकृतियाँ– शैलें और प्लेटें | Topography Of India– Rocks And Plates
4. भारतीय स्थलाकृतियों का निर्माण– गोंडवाना भूमि | Formation Of Indian Topographies– Gondwana Land
5. हिमालय– हिमाद्रि (ऊँचे शिखर), हिमाचल, शिवालिक | Himalaya– Himadri (High Peak), Himachal, Shivalik
1. भारत का उत्तरी मैदान– भाबर, तराई, भांगर, खादर | Northern Plains Of India– Bhabar, Terai, Bhangar, Khadar
2. प्रायद्वीपीय पठार– मध्य उच्चभूमि, दक्कन ट्रैप | Peninsular Plateau– Central Highlands, Deccan Trap
3. भारतीय मरूस्थल और तटीय मैदान | Indian Desert And Coastal Plain
4. लक्षद्वीप (प्रवाल), अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह | Lakshadweep (Coral), Andaman And Nicobar Islands
5. अपवाह तंत्र एवं अपवाह प्रतिरूप | Drainage System And Drainage Pattern
1. भारत में अपवाह तंत्र– हिमालय की नदियाँ एवं प्रायद्वीपीय नदियाँ | Drainage System In India– Himalayan Rivers And Peninsular Rivers
2. सिन्धु नदी तंत्र एवं सहायक नदियाँ | Indus River System And Tributaries
3. गंगा नदी तंत्र एवं सहायक नदियाँ | Ganges River System And Tributaries
4. भारत में ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र | Brahmaputra River System In India
5. महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, नर्मदा, तापी | Mahanadi, Godavari, Krishna, Kaveri, Narmada, Tapi
1. भारत में झीलें | Lakes In India
2. नदी प्रदूषण एवं नदी संरक्षण | River Pollution And River Conservation
3. जलवायु (भारत की जलवायु), मौसम, ऋतु | Climate (Climate Of India), Weather, Seasons
4. जलवायवी नियंत्रण– अक्षांश, ऊँचाई, वायु दाब, समुद्र से दूरी, महासागरीय धाराएँ, उच्चावच लक्षण | Climate Control
5. कोरिआलिस बल, जेट धाराएँ, चक्रवातीय विक्षोभ | Corialis Force, Jet Streams, Cyclonic Disturbances
1. भारत पर मानसूनी पवनों का प्रभाव | Effect Of Monsoon Winds On India
2. भारतीय मानसून का आगमन एवं वापसी | Indian Monsoon Arrival And Withdrawal
3. भारत में शीत ऋतु और ग्रीष्म ऋतु | Winter Season And Summer Season In India
4. भारत में वर्षा ऋतु (मानसून का आगमन) | Rainy Season In India (Arrival Of Monsoon)
5. भारत की प्राकृतिक वनस्पति | Natural Vegetation Of India
1. भारतीय वनस्पति के प्रकार एवं विशेषताएँ | Types And Characteristics Of Indian Plants
2. भारत में उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन (वर्षा वन) | Tropical Evergreen Forest (Rain Forest) In India
3. भारत में उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन (मानसूनी वन) | Tropical Deciduous Forest (Monsoon Forest) In India
4. नागफनी की पत्तियाँ छोटी और काटेदार क्यों होती हैं? | भारत में कटीले वन एवं झाड़ियाँ | Information About Thorny Forests
5. पर्वतीय क्षेत्रों के वृक्ष शंकुधारी क्यों होते हैं? | पर्वतीय वन || Mountain Forests
1. भारत में मैंग्रोव वन | Mangrove Forest In India
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण
होगी।)
Thank you.
R F Temre
rfhindi.com
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