विद्या ददाति विनयम्

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पाठ 1 'पद' 10th हिन्दी (क्षितिज- 2 काव्य-खण्ड, सूरदास- पदों का अर्थ) || पाठ का सारांश एवं सम्पूर्ण अभ्यास (प्रश्नोत्तर) || paath 1 'Pad' Surdas

पाठ सारांश-

सूरदास जी के पदों में श्रीकृष्ण के प्रति गहरा अनुराग प्रकट हुआ है। सूरदास के काव्य 'सूरसागर''भ्रमरगीत' में गोपियों की विरह-पीड़ा का चित्रण हुआ है। प्रेंम संदेश के पहले श्रीकृष्ण के योग-संदेश लाने वाले उद्धव पर गोपियों ने व्यंग्य बाण छोड़े। व्यंग्य-बाणों में गोपियों का हृदयस्पर्शी उलाहना है, साथ ही श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम प्रकट हो रहा है। इस प्रकार इन पदों में कृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम और विरह-पीड़ा का चित्रण है।

पहले पद में गोपियाँ ऊधौ से कहती हैं― यदि तुम प्रेम के धागे में बँधे होते तो विरह-वेदना को अवश्य समझ पाते, लेकिन आप तो इतने भाग्यशाली हैं कि कृष्ण के इतना समीप रहते हुए भी प्रेम बंधन में न बैंच सके। ये तो हमीं मूर्ख है जो उनके प्रेम में ऐसे लिफ्ट गई जैसे गुड़ से चींटी चिपक जाती है।

दूसरे पद में गोपियों का कृष्ण के प्रति गहरा प्रेम अभिव्यक्त हुआ है। गोपियाँ ऊधौ से कहती हैं― हमारी अभिलाषाएँ मन में ही रह गई। उनका योग-संदेश हमारी विरह-वेदना और बढ़ा रहा है, भला हम कैसे धैर्य धारण कर सकते हैं।

तीसरे पद में गोपियों ने श्रीकृष्ण के योग-संदेश को कड़वी ककड़ी के समान बताया है। गोपियाँ हारिल की लकड़ी की तरह श्रीकृष्ण को छोड़ने में अपने आप को असमर्थ बताती हैं। गोपियों के अनुसार योग की बातें उन्हीं को शोभा देती हैं, जिनका मन चकरी के समान चंचल होता है।

चौथे पद में गोपियाँ व्यंग्य करते हुए कहती हैं कि कृष्ण ने तो अब राजनीति सीख ली है। इस विषय में गुरु से पढ़कर आए उद्धव और चतुर हो गए हैं। श्रीकृष्ण हमें योग-मार्ग अपनाने की बात कहकर हम पर अन्याय ही कर रहे हैं। कृष्ण का यह व्यवहार राजधर्म के विपरीत है।

कवि परिचय
सूरदास

जीवन परिचय - हिन्दी काव्य साहित्य के 'सूर्य', श्रीकृष्ण के बाल्यजीवन का संजीव वर्णन करने वाले, 'वात्सल्य सम्राट' सूरदास जी का जन्म सन् 1478 ई. में 'रुनकता' (रेणुका क्षेत्र, मथुरा के समीप हुआ था। कुछ विद्वान इनका जन्म-स्थल दिल्ली के पास 'सीही' नामक गाँव को मानते हैं। सूरदास जी को छः वर्ष की अल्पायु में ही विरक्ति प्राप्त हो गई थी। उन्होंने मथुरा और वृंदावन के बीच 'गऊघाट' नामक स्थान को अपना निवास बना लिया था। वे विलक्षण गायक थे। फलतः उनकी गायकी से प्रभावित होकर बल्लभाचार्य ने इन्हें अपना शिष्य बना लिया था तथा श्रीनाथ मंदिर में भजन-कीर्तन के लिए नियुक्त किया। आपने भागवत को आधार मानकर पद-रचना प्रारंभ की। सूरदास के अंधे होने के बारे में मतभेद है। कृष्ण-पदों का गायन करने वाले सूरदास ने 105 वर्ष का लम्बा जीवन जीते हुए सन् 1583 में पारसोली इस असार संसार से विदाई ली।

रचनाएँ - सूरदास ने श्रीकृष्ण संबंधित सवा लाख पदों की रचना की। इनकी रचना भागवत कथा पर आधारित है। इन पदों में से लगभग 7000 पद ही उपलब्ध हैं, जो तीन प्रामाणिक ग्रंथों में संग्रहीत हैं-
1. सूरसागर
2. साहित्य लहरी
3. सूरसारावली

सूरदास जी का 'सूरसागर' उनकी कीर्ति का आधार है। तभी तो किसी कवि ने कहा है-
"सूर सूर तुलसी ससि उड्गन केशवदास ।"

काव्यगत विशेषताएँ - सूरदास के काव्य में भक्ति और वात्सल्य की पराकाष्ठा देखने को मिलती है। सूरदास जी कृष्ण के प्रति साख्यभाव रखते थे। इन्होंने शृंगार रस के संयोग व वियोग दोनों का मनोरम वर्णन किया है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार-
"शृंगार और वात्सल्य के क्षेत्र में जहाँ तक सूर की दृष्टि पहुँची, वहाँ तक किसी और कवि की नहीं।" उन्होंने अपनी रचनाओं में कृष्ण के शिशु, बाल, किशोर और तरुण रूप की अनेक झाँकियाँ प्रस्तुत की हैं।

भाषा-शैली - सूर का सारा साहित्य गेय है। वास्तव में उनके पद गाने के लिए हैं। सूर के काव्य की भाषा ब्रज भाषा है। इसमें सहजता व सरलता समाहित है। सूरदास की रचनाओं में संगीत और साहित्य का अद्भुत मेल हुआ है। सूरदास की रचनाओं में उपमा, उत्प्रेक्षा, दृष्टांत, रूपक और वक्रोक्ति अलंकारों का अत्यंत मनोरम प्रयोग हुआ है। अनुप्रास तो उनकी रचनाओं की हर पंक्ति में बिखरा पड़ा है।

पदों के प्रसंग संदर्भ सहित व्याख्या

पद 1. ऊधौ, तुम हो अति बड़भागी।
अपरस रहत सनेह तगा तैं, नाहिन मन अनुरागी।
पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी।
ज्यौं जल माहँ तेल की गागरि, बूँद न ताकौं लागी।
प्रीति-नदी मैं पाउँ न बोयौ, दृष्टि न रूप परागी।
'सूरदास' अबला हम भोरी, गुर चाँटी ज्यौं पागी।।

संदर्भ― प्रस्तुत पद हमारी पाठ्य पुस्तक के ' पद ' पाठ से अवतरित है। इसके कवि सूरदास है।
प्रसंग - यहाँ गोपियाँ उद्धव से कहती हैं कि तुम कृष्ण के पास रहकर भी उनके प्रेम बंधन में नहीं बँधे हो।

भावार्थ - गोपियाँ उद्धव से व्यंग्य करते हुए कहती हैं― हे उद्धव ! तुम तो बड़े भाग्यवान हो जो कृष्ण के प्रेम बंधन में नहीं बँधे। गोपियाँ पुनः कहती हैं, उद्धव कैसी भाग्य की बिडम्बना है कि तुम कृष्ण के समीप रहते हुए भी उनके प्रेम जाल में नहीं फँसे। आपकी तो वैसी ही स्थिति है जैसे पानी में रहते हुए कमल-पत्र पानी के ऊपर ही रहता है। पानी की एक बूँद भी उसके ऊपर नहीं ठहरती। तुमने प्रेम-नदी में पैर डुबोया ही नहीं जो प्रेम के महत्त्व को जानो। तुम किसी के सौंदर्य पर मुग्ध हुए ही नहीं। तुम्हारी दृष्टि कृष्ण पर पड़ी ही नहीं। एक हम ही ऐसे हैं जो कृष्ण के प्रेम में वैसे ही लिपट गए हैं, जैसे गुड़ से चींटी।

विशेष (सौंदर्य बोध) ― (1) उद्धव के श्रीकृष्ण प्रेम से अछूते रहने पर गोपियों ने व्यंग्य किया है।
(2) अनुप्रास, दृष्टांत, रूपक आदि अलंकार। ब्रजभाषा का सौन्दर्य अवलोकनीय है।

पद 2. मन की मन ही माँझ रही।
कहिए जाइ कौन पै ऊधौ, नाहीं परत कही।
अवधि अधार आस आवन की, तन मन बिथा सही।
अब इन जोग सँदैसनि सुनि-सुनि, बिरहिनि बिरह दही।
चाहति हुतीं गुहारि जितहिं तैं, उत तैं धार बही।
'सूरदास' अब धीर धरहिं क्यौं, मरजादा न लही।।

संदर्भ ― पूर्व पद 1 के अनुसार।
प्रसंग ― यहाँ गोपियों के एकनिष्ठ प्रेम की अभिव्यक्त करते हुए उद्धव से अपने मां के भावों को अव्यक्त दर्शाती भी उलाहना देती हैं।

भावार्थ - गोपियाँ अपने प्रेम को श्रीकृष्ण के समक्ष प्रकट न करने के कारण व्यथित (दुखी) होती हुई कहती हैं कि अभिलाषाएँ मन-की-मन में ही दबकर रह गई। अपने मन की व्यथा किससे जाकर कहें और प्रेम-पीड़ा को दूसरों के सामने प्रकट भी तो नहीं कर सकतीं। श्रीकृष्ण के लौटने की मन में आशा संजोए हुए उनके आने की अवधि को अपने जीने का आधार बनाकर तन और मन की व्यथा को सहन कर रहीं थीं, किंतु अब तुम्हारे द्वारा योग-संदेश सुनकर विरह-पीड़ा अचानक बढ़ गई है। विरह-पीड़ा में जलती हुई हमें अपनी रक्षा का जिनसे सहारा था, रक्षा की आशा थी, जिसे हम पुकार सकते थे, उसी ओर से योग की धारा बहने लगी। अतः हमें पूर्ण आशा थी कि एक दिन अवश्य ही श्रीकृष्ण आकर हमारी पीड़ा को शांत करेंगे। आशा के विपरीत उन्होंने योग का संदेश भेज दिया। अंत में गोपियाँ व्यथित मन से उद्धव को उलाहना देती हैं। कि जिनके कारण हमने अपनी मर्यादाओं को छोड़ दिया था, उन्होंने अपनी मर्यादा का पालन नहीं किया। अब हम कैसे धैर्य धारण करें।

विशेष (सौंदर्य बोध) ― (1) गोपियों की श्रीकृष्ण के प्रति गहरी प्रेमभावना व्यक्त है।
(2) अनुप्रास, पुनरुक्तिप्रकाश, दृष्टांत अलंकार की छटा दर्शनीय है।
(3) साहित्यिक ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ है।

पद 3. हमारैं हरि हारिल की लकरी ।
मन क्रम बचन नंद-नंदन उर, यह दृढ़ कर पकरी।
जागत-सोवत स्वप्न दिवस-निसि, कान्ह-कान्ह जकरी।
सुनत जोग लागत है ऐसौ, ज्यौं करुई ककरी।
सु तौ ब्याधि हमकौं लै आए, देखी सुनी न करी।

संदर्भ ― पूर्व पद 1 के अनुसार।
प्रसंग ― यहाँ गोपियों के एकनिष्ठ प्रेम की अभिव्यक्ति है। वे योग को कड़वी ककड़ी की भाँति फेंकने योग्य मानती हैं।

भावार्थ - गोपियाँ ऊधौ को कहती हैं- हे ऊधौ ! हमारे लिए हरि हारिल के पंजों में थामी हुई लकड़ी के समान हैं। जिस प्रकार हारिल पक्षी लकड़ी को किसी हाल में नहीं छोड़ता, उसी भाँति हम भी कृष्ण को दृढ़ता से थामे हुए हैं। हमने मन से, कर्म से, वचन से कृष्ण को हृदय में दृढ़ता से बसाया हुआ है। हम जागते-सोते, रात-दिन, यहाँ तक कि सपने में भी कन्हैया-कन्हैया नाम की रट लगाए रहती हैं। हम जब तुम्हारे मुँह से योग-साधना की बात सुनती हैं तो हमें तुम्हारा यह संदेश कड़वी ककड़ी के समान कड़वा और अरुचिकर लगता है। तुम तो हमारे लिए ऐसी बीमारी ले आए हो, जो हमने न तो कभी देखी, न सुनी और न कभी इसका व्यवहार करके देखा। गोपियाँ कहने लगीं- ऊधौ ! तुम यह योग-साधना का संदेश उन लोगों को दो जिनके हृदय भटकन में हैं, जिनकी कहीं कोई आस्था नहीं है। हम तो पूर्ण रूप से कृष्ण की दीवानी हैं। हम यह योग-संदेश क्या करेंगी?

विशेष (सौंदर्य बोध) ― (1) गोपियों की श्रीकृष्ण के प्रति गहरी प्रेमभावना व्यक्त है।
(2) योग के प्रति अस्वीकृति है तथा उसे त्याज्य माना है।
(3) अनुप्रास, पुनरुक्तिप्रकाश, दृष्टांत अलंकार तथा पदमैत्री की छटा दर्शनीय है।
(4) साहित्यिक ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ है।

पद 4. हरि हैं राजनीति पढ़ि आए।
समुझी बात कहत मधुकर के, समाचार सब पाए।
इक अति चतुर हुते पहिलै ही, अब गुरु ग्रंथ पढ़ाए।
बढ़ी बुद्धि जानी जो उनकी, जोग-संदेस पठाए।
ऊधौ भले लोग आगे के, पर हित डोलत धाए।
अब अपने मन फेर पाइहैं, चलत जु हुते चुराए।
तेक्यौं अनीति करें आपुन, जे और अनीति छुड़ाए।
राज धरम तौ यह 'सूर', जो प्रजा न जाहिं सताए।।

संदर्भ ― पूर्व पद 1 के अनुसार।
प्रसंग ― उद्धव के योग के संदेश को सुनने के बाद गोपियाँ व्यंग्यपूर्वक कहती हैं कि कृष्ण तो चतुर राजनीतिज्ञ हो गये हैं। यहाँ प्रेम करते थे और संदेश योग का भेजा है।

भावार्थ - गोपियाँ निःसंकोच उद्धव से कहती हैं कि हे भ्रमर रूप उद्धव ! अब तो श्रीकृष्ण ने राजनीति पढ़ ली है। आपके योग-संदेश को सुनकर हम पहले ही समझ गई थीं, किंतु अब समाचार जानकर पूर्ण विश्वास हो गया कि श्रीकृष्ण राजनीति पढ़कर और चतुर हो गए हैं। हे उद्भव ! आप पहले ही चतुर थे, उस पर भी आप अपने गुरु श्रीकृष्ण से राजनीति का ग्रंथ पढ़ आए हैं। राजनीति का ही यह प्रभाव है कि बुद्धि-चातुर्य में श्रीकृष्ण इतने कुशल हो गए हैं। कि योग का ही संदेश भेज दिया।
हे उद्धव ! पहले के लोग कितने भले थे जो दूसरों की भलाई के लिए भागे चले आते थे। इतना सब जान लेने पर तो हम इतनी तो आशा करती हैं कि हमारे मन को श्रीकृष्ण ने जाते समय चुरा लिया था, उसे हम पुनः प्राप्त कर लेंगी। आश्चर्य यह है कि जो (श्रीकृष्ण)दूसरों को अन्याय करने से रोकते रहे, वे स्वयं अनीति के रास्ते पर क्यों चल पड़े। वे प्रेम के स्थान पर योग-संदेश भेजकर हमारे ऊपर क्यों अन्याय कर रहे हैं? उनको राजधर्म भी नहीं भूलना चाहिए। राजधर्मानुसार प्रजा को न सताकर उसकी भलाई का ध्यान रखना चाहिए।

विशेष (सौंदर्य बोध) ― (1) श्रीकृष्ण की दोहरी नीति की ओर इशारा करते हुए गोपियों ने करारे प्रहार किए हैं।
(2) राजा का मूल कार्य प्रजा हित है, प्रजा को दुखी करना नहीं।
(3) अनुप्रास, रूपक अलंकार तथा साहित्यिक ब्रजभाषा का सौन्दर्य दर्शनीय है।

शब्दार्थ

बड़भागी = भाग्यवान।
अपरस = अलिप्त, नीरस, अछूता।
तगा = बंधन, धागा।
पुरइनि पात = कमल का पत्ता।
दागी = दाग, धब्बा।
माहँ = में।
प्रीति-नदी = प्रेम की नदी।
पाउँ = पैर।
बोरयौ = डुबोया।
परागी = मुग्ध होना।
गुर चाँटी ज्यौं पाणी = जिस प्रकार चींटी गुड़ में लिपटती है, उसी प्रकार हम भी कृष्ण के प्रेम में अनुरक्त हैं।
अधार = आधार।
आवन = आगमन।
बिधा = व्यथा।
बिरहिनि = वियोग में जीने वाली।
बिरह दही = विरह की आग में जल रही हैं।
हुतीं = थीं।
बिथा = व्यथा।
गुहारि = रक्षा के लिए पुकारना।
जितहिं = जहाँ से।
उत = उधर, वहाँ।
धार = योग की प्रबल धारा।
धीर = धैर्य।
मरजादा = मर्यादा, प्रतिष्ठा।
न लही = नहीं रही, नहीं रखी।
हारिल = हारिल एक पक्षी है जो अपने पैरों में सदैव एक लकड़ी लिए रहता है, उसे छोड़ता नहीं है।
नंद-नंद उर....पकरी = नंद के नंदन कृष्ण को हमने भी अपने हृदय में बसाकर कसकर पकड़ा हुआ है।
जक री = रटती रहती हैं।
सु = वह।
ब्याधि = रोग, पीड़ा पहुँचाने वाली वस्तु।
करी = भोगा।
तिनहिं = उनको।
मन चकरी = जिनका मन स्थिर नहीं रहता।
मधुकर = भौंरा, उद्धव के लिए गोपियों द्वारा प्रयुक्त संबोधन।
हुते = थे।
पठाए = भेजा।
आगे के = पहले के।
पर हित = दूसरों के कल्याण के लिए।
डोलत धाए = घूमते-फिरते थे।
फेर = फिर से।
पाइहैं = पा लेंगी।
अनीति = अन्याय।

प्रश्न अभ्यास

(1) गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में क्या व्यंग्य निहित है?
उत्तर - गोपियों द्वारा उद्धव को 'भाग्यवान' कहने में वक्रोक्ति है। वे देखने में तो प्रशंसा कर रही हैं लेकिन ऐसा नहीं है वे तो उन पर व्यंग्य प्रहार कर रही हैं। वे कहती हैं कि कृष्ण के अति समीप रहने पर भी तुम्हें प्रेम-रोग सता न सका, न ही तुम किसी के प्रेम-भाजन बने। तुमने प्रेम की परिभाषा ही नहीं जानी, यह तुम्हारा बहुत बड़ा दुर्भाग्य है।

(2) उद्धव के व्यवहार की तुलना किस-किस से की गई है?
उत्तर - उद्धव के व्यवहार की तुलना निम्नलिखित से की गई है-
क. कमल के पत्तों से, जो जल में रहकर भी उससे प्रभावित नहीं होते।
ख. जल में पड़ी तेल की बूँद से, जो जल में घुलती मिलती नहीं । उद्धव भी इनके समान हैं। वे कृष्ण के संग रहकर भी उसके प्रेम से प्रभावित नहीं हो सके।

(3) गोपियों ने किन-किन उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहने दिए हैं?
उत्तर - गोपियों ने निम्नलिखित उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहने दिए हैं-
क. उन्होंने कहा कि उनकी प्रेम-भावना उनके मन में ही रह गई है। वे न तो कृष्ण से अपनी बात कह पाती हैं, न अन्य किसी से ।
ख. वे कृष्ण के आने की इंतजार में ही जी रही थीं, किंतु कृष्ण ने स्वयं न आकर योग-संदेश भिजवा दिया। इससे उनकी विरह-व्यथा और अधिक बढ़ गई है।
ग. वे कृष्ण से रक्षा की गुहार लगाना चाह रही थीं, वहाँ से प्रेम का संदेश चाह रही थीं। परंतु वहीं से योग-संदेश की धारा को आया देखकर उनका दिल टूट गया।
घ. वे कृष्ण से अपेक्षा करती थीं कि वे उनके प्रेम की मर्यादा को रखेंगे। वे उनके प्रेम का बदला प्रेम से देंगे। किंतु उन्होंने योग-संदेश भेजकर प्रेम की मर्यादा ही तोड़ डाली।

(4) उद्धव द्वारा दिए गए योग के संदेश ने गोपियों की विरहाग्नि में घी का काम कैसे किया?
उत्तर - जब श्रीकृष्ण गोपियों को छोड़कर मथुरा चले गए और गोपियाँ कृष्ण से अपनी प्रेम-भावना व्यक्त न कर सकीं तो वे विरहाग्नि में जलने लगीं। जब उद्धव श्रीकृष्ण का योग-संदेश लेकर गोपियों के पास आएं तो उनका यह योग-संदेश अग्नि में घी का काम करने लगा। उनकी विरहाग्नि और तेज प्रज्ज्वलित हो उठी।

(5) 'मरजादा न लही' के माध्यम से कौन-सी मर्यादा न रहने की बात की जा रही है?
उत्तर - प्रेम की यही मर्यादा है कि प्रेमी और प्रेमिका दोनों प्रेम को निभाएँ। वे प्रेम की सच्ची भावना को समझें और उसकी मर्यादा की रक्षा करें। परंतु कृष्ण ने गोपियों से प्रेम निभाने की बजाय उनके लिए नीरस योग-संदेश भेज दिया, जो कि एक छलावा था, भटकाव था। इसी छल को गोपियों ने मर्यादा का उल्लंघन कहा है।

(6) कृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को गोपियों ने किस प्रकार अभिव्यक्त किया है?
उत्तर - गोपियों ने कृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को निम्नलिखित युक्तियों से व्यक्त किया है- (क) वे स्वयं को कृष्ण रूपी गुड़ पर लिपटी हुई चींटी कहती हैं ।
(ख) वे स्वयं को हारिल पक्षी के समान कहती हैं जिसने कृष्ण-प्रेम रूपी लकड़ी को दृढ़ता से थामा हुआ है।
(ग) वे मन, वचन और कर्म से कृष्ण को मन में धारण किए हुए हैं।
(घ) वे जागते-सोते, दिन-रात और यहाँ तक कि सपने में भी कृष्ण का नाम रटती रहती हैं।
(ङ) वे कृष्ण से दूर ले जाने वाले योग-संदेश को सुनते ही व्यथित हो उठती हैं।

(7) गोपियों ने उद्धव से योग की शिक्षा कैसे लोगों को देने की बात कही है?
उत्तर - गोपियों ने उद्धव से योग-शिक्षा के बारे में परामर्श देते हुए कहा कि योग-शिक्षा उनके लिए है. जिनका मन चकरी की तरह हो। जिनके चित्त में चंचलता हो, जिनका मन भ्रमित हो।

(8) प्रस्तुत पदों के आधार पर गोपियों का योग साधना के प्रति दृष्टिकोण स्पष्ट करें।
उत्तर - प्रस्तुत पदों के आधार पर गोपियों का दृष्टिकोण स्पष्ट है कि प्रेमासक्त और स्नेह-बंधन में बँधे हृदय पर अन्य किसी उपदेश का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। चाहे वे उपदेश अपने ही प्रिय के द्वारा क्यों न दिए गए हों। यही कारण था कि अपने ही प्रिय श्रीकृष्ण के द्वारा भेजा गया योग-संदेश उनको प्रभावित नहीं कर सका।

(9) गोपियों के अनुसार राजा का धर्म क्या होना चाहिए?
उत्तर - गोपियों के अनुसार- राजा का धर्म प्रजा की रक्षा करना है, उनके कष्टों का निवारण करना है, कष्ट देना नहीं। राजा का धर्म है कि वह प्रजा को अन्याय से बचाएं।

(10) गोपियों को कृष्ण में ऐसे कौन-से परिवर्तन दिखाई दिए, जिनके कारण वे अपना मन वापस पा लेने की बात कहती हैं?
उत्तर - गोपियों को लगा कि कृष्ण मथुरा में जाकर बदल गए हैं। वे अब गोपियों से प्रेम नहीं करते। इसलिए वे स्वयं उनसे मिलने नहीं आए। दूसरे, उन्हें लगा कि अब कृष्ण राजा बनकर राजनीतिक चालें चलने लगे हैं। छल-कपट उनके स्वभाव का अंग हो गया है। इसलिए वे वहाँ से अपना प्रेम संदेश भेजने की बजाय योग-संदेश भेज रहे हैं। इन परिवर्तनों को देखते हुए गोपियों को लगा कि अब उनका कृष्ण-प्रेम में डूबा हुआ मन वापस उन्हें मिल पाएगा।

(11) गोपियों ने अपने वाक्चातुर्य के आधार पर ज्ञानी उद्धव को परास्त कर दिया, उनके वाक्चातुर्य की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर - गोपियाँ अपनी वाक् चतुरता से किसी भी ज्ञानी को पछाड़ देने में माहिर हैं। यहाँ तक कि ज्ञानी उद्धव उनके सामने गूँगे खड़े रह जाते हैं। उनके वाक्चातुर्य की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-
(i) व्यंग्यात्मकता - गोपियाँ व्यंग्य करने में अति कुशल हैं। योग का संदेश लाने वाले उद्धव पर व्यंग्य करती हुई गोपियाँ उनसे कहती हैं कि आप से बढ़कर भाग्यशाली कौन है जो कृष्ण के पास रहकर भी उनके प्रेम जाल में न फँस सका।
(ii) सहृदयता - गोपियों की सहृदयता की स्पष्ट झलक उनके वाक्चातुर्य में देखने को मिलती है। वे कितनी भावुक हैं, इसका ज्ञान तब होता है जब वे गद्गद कंठ से कहती हैं कि हम अपनी प्रेम भावना को व्यक्त नहीं कर पाए। इस प्रकार उनका वाक्चातुर्य अनुपम था ।
(iii) स्पष्टता - गोपियाँ अपनी बात को प्रस्तुत करने में माहिर हैं। उद्धव द्वारा बताए गये योग-संदेश को बिना किसी हिचकिचाहट के 'करुई ककरी' कह देती हैं।

(12) संकलित पदों को ध्यान में रखते हुए सूर के भ्रमरगीत की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर - सूरदास जी का भ्रमरगीत जिन विशेषताओं के आधार पर अप्रतिम बन पड़ा है। वे इस प्रकार हैं-
(i) सूरदास जी के भ्रमरगीत में निर्गुण ब्रह्म का विरोध और सगुण ब्रह्म की सराहना है।
(ii) गोपियों की स्पष्टता, वाक्पटुता, सहृदयता, व्यंग्यात्मकता सर्वथा सराहनीय है।
(iii) एकनिष्ठ प्रेम का दर्शन है।
(iv) वियोग श्रृंगार का मार्मिक चित्रण है ।
(v) आदर्श प्रेम की पराकाष्ठा और योग का पलायन है।
(vi) स्नेहसिक्त उपालंभ अनूठा है।
(vii) गोपियों का वाक्चातुर्य उद्धव को मौन कर देता है।

रचना और अभिव्यक्ति

(13) गोपियों ने उद्धव के सामने तरह-तरह के तर्क दिए हैं, आप अपनी कल्पना से और तर्क दीजिए।
उत्तर - गोपियाँ - ऊधौ! यदि यह योग-संदेश इतना ही प्रभावशाली है तो कृष्ण इसे कुब्जा को क्यों नहीं देते? तुम यों करो, यह योग कुब्जा को जाकर दो और बताओ! जिसकी जुबान पर मीठी खाँड का स्वाद चढ़ गया हो, वह योग रूपी निबौरी क्यों खाएगा? फिर यह भी तो सोचो कि योग-मार्ग कठिन है। इसमें कठिन साधना करनी पड़ती है। हम गोपियाँ कोमल शरीर वाली और मधुर मन वाली हैं। हमसे यह कठोर साधना कैसे हो पाएगी! हमारे लिए यह मार्ग असंभव है।

(14) उद्धव ज्ञानी थे, नीति की बातें जानते थे; गोपियों के पास ऐसी कौन-सी शक्ति थी जो उनके वाक्चातुर्य में मुखरित हो उठी?
उत्तर - गोपियाँ वाक्चातुर हैं। वे बात बनाने में किसी को भी पछाड़ देती हैं। यहाँ तक की ज्ञानी उद्धव उनके सामने गूँगे होकर खड़े रह जाते हैं। कारण यह है कि गोपियों के हृदय में कृष्ण-प्रेम का सच्चा ज्वार है। यही उमड़ाव, यही जबरदस्त आवेग उद्धव की बोलती बंद कर देता है। सच्चे प्रेम में इतनी शक्ति है कि बड़े से बड़ा ज्ञानी भी उसके सामने घुटने टेक देता है।

(15) गोपियों ने यह क्यों कहा कि हरि अब राजनीति पढ़ आए हैं? क्या आपको गोपियों के इस कथन का विस्तार समकालीन राजनीति में नजर आता है, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर - विरहाग्नि में जलती गोपियों ने जब देखा कि कृष्ण उनसे मिलने नहीं आए बल्कि उद्धव के हाथ योग-संदेश भिजवा दिया, तो उसमें गोपियों को कृष्ण की चाल नजर आई। उसे वे अपने साथ छल समझने लगी। इसीलिए उन्होंने आरोप लगाया कि - "हरि हैं। राजनीति पढ़ि आए।"
आज की राजनीति सिर से पैर तक छल-कपट से सराबोर है। आज राजनीति धर्म, कर्त्तव्य, विश्वास, अपनत्व, सुविचार आदि से कोसों दूर है। आज की राजनीति में ऐसा ही चारों ओर दिखता है। हर हाल में अपनी स्वार्थ पूर्ति, अन्याय, अवसरवादिता, कमजोरों को सताना अधिकाधिक धन कमाना आज की राजनीति का एक अंग बन गया है।

पाठेतर सक्रियता

○ प्रस्तुत पदों की सबसे बड़ी विशेषता है गोपियों की 'वाग्विदग्धता'। आपने ऐसे और चरित्रों के बारे में पढ़ा या सुना होगा जिन्होंने अपने वाक्चातुर्य के आधार पर अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाई, जैसे― बीरबल, तेनालीराम, गोपाल भाँड, मुल्ला नसीरुद्दीन आदि। अपने किसी मनपसंद चरित्र के कुछ किस्से संकलित कर एक अलबम तैयार करें।
○ सूर रचित अपने प्रिय पदों को लय व ताल के साथ गाएँ।
नोट ― विद्यार्थी गण उक्त कार्यों को अपनी समझ के अनुसार करें।

पद्यांशों से महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

(क) गोपियों के अनुसार सच्चा राजधर्म क्या है।
उत्तर - गोपियों के अनुसार-प्रजा के हित में कार्य करना 'सच्चा राजधर्म' है। अपनी प्रजा के कष्टों का हरण करना एक राजा का कर्त्तव्य है।

(ख) गोपियों किस पर क्या व्यंग्य कर रही है?
उत्तर - गोपियाँ कृष्ण के छल पर व्यंग्य कर रही हैं। उन्हें कृष्ण की बजाय योग मार्ग को अपनाना अपने साथ सरासर धोखा जान पड़ता है।

(ग) गोपियाँ अब क्या फिर अपना मन वापस पा लेंगी?
उत्तर - गोपियों को विश्वास है कि जब कृष्ण से उनका मोह छूट जाएगा अपना स्वाभाविक मन फिर से पा लेगी।

(घ) पुराने जमाने में सज्जन क्या किया करते थे?
उत्तर - पुराने जमाने में सज्जन लोगों के कल्याण के लिए भागे-भागे फिरते थे।

(ङ) गोपियाँ क्या पाना चाहती थीं?
उत्तर - गोपियाँ कृष्ण के दर्शन पाना चाहती थीं।

(च) कृष्ण ब्रज से मथुरा जाते समय अपने साथ क्या ले गए थे?
उत्तर - कृष्ण ब्रज से मथुरा जाते समय गोपियों का हृदय अपने साथ ले गए थे।

(छ) कृष्ण के वियोग में गोपियों की दशा क्या हो गई है?
उत्तर- कृष्ण के वियोग में गोपियों पागल हो गई हैं। वे दिन-रात कृष्ण की ही रट लगाती रहती हैं।

(ज) गोपियों उद्भव को बड़भागी क्यों कहती हैं?
उत्तर- गोपियाँ उद्धव से व्यंग्य करती हुई कहती हैं कि तुम ने कभी किसी से प्रेम किया ही नहीं, तुम प्रेम क्या जानो। वास्तव में तुम सौभाग्यशाली हो।

(झ) गोपियों ने अपनी तुलना किससे की है और क्यों?
उत्तर- गोपियों ने अपनी तुलना गुड़ और चींटियों से की है। जैसे चींटी गुड़ में पूरी तरह लिपट जाती है वैसे ही वे कृष्ण के प्रेम में लिपट गई हैं।

(ञ) 'अपरस रहत सनेह तगा तँ' पंक्ति का क्या आशय है?
उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति का आशय है कि ऊधौ प्रेम रूपी धागे से दूर ही रहें। उन्होंने कभी प्रेम को नहीं जाना।

(ट) प्रीति नदी क्या है? इसमें किसने पैर नहीं डुबाए ?
उत्तर- प्रेम में नदी जैसा बहाव होता है। यहाँ कृष्ण प्रेम को प्रीति नदी कहा गया है। ऊधौ ने इस नदी में अपने पैर कभी नहीं डुबोए।

(ठ) किसके मन की बात मन में ही रह गई और क्यों?
उत्तर - गोपियों की प्रेम-भावना जो कृष्ण के प्रति थी वह मन में ही दब गई क्योंकि कृष्ण उनसे दूर मथुरा चले गए हैं।

(ड) योग-संदेश का गोपियों पर क्या प्रभाव पड़ा ? स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर - विरह-व्यथा में जलती गोपियों को आशा थी कि उनके कृष्ण उनके पास जरूर आएँगे। श्रीकृष्ण से प्रेम के प्रतिदान की आशा लगाए बैठी गोपियों को उद्धव द्वारा कृष्ण का योग-संदेश पाकर उनकी विरहाग्नि और धधक उठी।

(ढ) गोपियों के अनुसार कृष्ण ने किस मर्यादा का पालन नहीं किया?
उत्तर - गोपियों को प्रेम के बदले प्रेम की आशा थी, परन्तु श्रीकृष्ण ने प्रेम के बदले योग-संदेश भिजवाकर प्रेम की मर्यादा का पालन नहीं किया।

(ण) गोपियाँ धीरज धारण क्यों नहीं कर पा रही हैं?
उत्तर - श्रीकृष्ण ने प्रेम के बजाय प्रेम न निभाकर गोपियों को योग-संदेश भिजवाकर गोपियों से धोखा किया, अतः वे धीरज धारण नहीं कर पा रही हैं।

(त) 'योग' को गोपियों ने 'कड़वी ककड़ी' क्यों कहा है?
उत्तर - गोपियाँ योग-मार्ग को कड़वी ककड़ी के समान 'कटु' तथा ब्याधि के समान 'बला मानती हैं। उनके लिए योग-मार्ग उन्हें कृष्ण से दूर ले जाने वाला है, इसलिए व्यर्थ है।

(थ) उद्धव गोपियों के लिए किस प्रकार की व्याधि लेकर आए हैं?
उत्तर - उद्धव गोपियों के लिए 'योग' रूपी ब्याधि लेकर आए हैं। योग का रूखा संदेश गोपियों को कृष्ण से दूर करता है। इसलिए वे इसे ब्याधि मानती हैं।

(द) 'योग संदेश' किसे दिए जाने की बात गोपियों ने की है?
उत्तर - गोपियों ने उद्धव से योग की शिक्षा ऐसे लोगों को देने की बात कही है जिनके मन में चकरी है। जिनका मन स्थिर नहीं है। जो कृष्ण के दीवाने नहीं हैं।

(ध) अनुप्रास अलंकार के दो उदाहरण लिखिए।
उत्तर - 1.हमारें हरि हारिल, 2.करुई ककरी।
(ङ) इसमें किस भाषा का प्रयोग 'हुआ है?
उत्तर - ब्रज भाषा।

परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
(क) लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. "ऊधौ तुम हो अति बड़भागी" में किन लोगों पर व्यंग्य है? सूरदास जी इसके माध्यम से क्या कहना चाहते हैं?
उत्तर― प्रस्तुत पंक्ति में कृष्ण के प्रेम से वंचित लोगों पर व्यंग्य किया गया है। जिन लोगों ने भगवान से प्रेम नहीं किया उनका जीवन व्यर्थ है। वे जीवन के सबसे मूल्यवान वस्तु से वंचित रह गए। वे अभागे हैं। प्रभु-प्रेम में चाहे जितनी भी तड़प और साधना हो, किंतु जीवन को सार्थकता उसी से मिलती है।

प्रश्न 2. उद्धव गोपियों की मनोदशा क्यों नहीं समझ सके?
उत्तर― उद्धव पर योग-ज्ञान का जुनून सवार था। योग ज्ञान के दर्प में उन्होंने गोपियों के आदर्श प्रेम को समझने का भी प्रयास नहीं किया साथ ही ज्ञान मार्ग पर चलने वाले उद्धव प्रेम के उदात्त स्वरूप से वंचित नहीं थे। इस अनभिज्ञता और दर्प के कारण वे गोपियों की मनोदशा समझ नहीं सके।

प्रश्न 3. हमारैं हरि हारिल की लकरी।
मन क्रम बचन नंद-नंदन उर, यह दृढ़ करि पकरी।
जागत-सोबत स्वप्न दिवस-निसि, कान्ह-कान्ह जक री।
उक्त पंक्तियों का भाव स्पष्ट करो।
उत्तर― गोपियों ने उद्धव और कृष्ण दोनों को राजनीति का खिलाड़ी कहकर उनके चातुर्य का उपहास किया है। गोपियाँ उद्धव से कह रही हैं कि हम तुम्हारी चतुराई को बखूबी जानती हैं। हमें यह भी ज्ञात है कि तुम अपने गुरु कृष्ण से राजनीति सीख कर आए हो। राजनीति की बातें अविश्वसनीय हो गई हैं, यह तुम भी अच्छी तरह जानते हो।

प्रश्न 4. गोपियों ने कृष्ण के प्रति अपने एकनिष्ठ प्रेम को क्या कहकर पुकारा है?
उत्तर― सूरदास जी ने श्रीकृष्ण और गोपियों के अगाध प्रेम के अनेक उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। गोपियाँ कहती हैं हमारे कृष्ण तो गुड़ की मिठास हैं जो सबको प्रिय हैं। फिर गुड़ जैसे स्वाद को त्याग कर योग जैसे कड़वे स्वाद को भला कौन चखेगा अर्थात् कोई नहीं। सीधी-साधी गोपियाँ बस सहजता से ही 'चींटियों की तरह' गुड़ से चिपटी रहना चाहती हैं। उनका तो श्रीकृष्ण के प्रति मन, वचन और कर्म तीनों से एकनिष्ठ प्रेम है।

प्रश्न 5. 'सूरदास अबला हम भोरी, गुर चाँटी ज्यौं पागी' में गोपियों की किस मनोदशा को प्रकट किया गया है?
उत्तर ― प्रस्तुत काव्य पंक्ति में गोपियों का कृष्ण के प्रति एकनिष्ठ, अगाध प्रेम प्रकट हुआ है। गोपियाँ छल-छद्म से दूर, भोली-भाली हैं। वे प्रेम में हानि-लाभ, खोए-पाए, सुख-दुःख की जरा-सी भी परवाह नहीं करती हैं। वे तो सच्चे मन से कृष्ण के प्रेम में लिप्त हो गई हैं, जैसे चींटी गुड़ से मन-ही-मन गोपियाँ अपनी इस लीनता पर गर्व भी करती हैं।

(ख) दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. सूरदास के 'भ्रमरगीत' के पीछे उनका क्या उद्देश्य रहा है?
उत्तर― सूरदास जी ने गोपियों के माध्यम से साकार ईश्वर-प्रेम में आस्था प्रकट की है और उसे ही महिमा मंडित किया है। उद्धव जैसे ज्ञानी को चुप कराकर योग-ज्ञान को गौण सिद्ध किया है। साकार ईश्वर-प्रेम ही चित्त को स्थिर कर सकता है। योग-ज्ञान निर्गुण ईश्वर के प्रति आस्था को स्थिर बनाए रखने में चित्त की चंचलता अवरोध खड़ा करती है।

प्रश्न 2. दूसरों को नीति का उपदेश देने वाले कृष्ण स्वयं अनीति पर चलने लगे, ऐसा गोपियों ने क्यों कहा?
उत्तर― गोपियाँ 'कृष्ण के प्रेम में पागल हैं। उनके सिवा जीवन में उनका अपना कोई नहीं है। वे व्यथित होकर कहती हैं-अब तक तो कृष्ण आदर्श प्रेम के महत्त्व को बताकर प्रेम को अपनाने की बात करते थे। वे कहते थे कि प्रेम के अभाव में जीवन निरर्थक है। जीवन की सार्थकता तो प्रेम में लिप्त होने में है। हाँ, स्वयं भी प्रेम में मग्न रहते थे। अब तो वही कृष्ण प्रेम को छोड़ ज्ञान योग के संरक्षक हो गए हैं। ज्ञान योग की चर्चा करने वाले हो गए हैं। इन सब बातों से पता चलता है कि दूसरों को नीति का उपदेश देने वाले कृष्ण स्वयं अनीति पर चलने लगे हैं।

प्रश्न 3. प्रेम और योग ज्ञान के संघर्ष में, गोपियों और उद्धव के संघर्ष में कौन प्रभावी रहता है? अपना 'मत' प्रकट कीजिए।
उत्तर― जहाँ एक ओर गोपियाँ प्रेम की पराकाष्ठा हैं तो वहीं दूसरी ओर उद्धव ज्ञान योग के महारथी हैं। उद्धव के तरकस में ज्ञान योग के कुछ ही तीर हैं लेकिन वे बड़े तीखे हैं। हाँ उद्धव उन्हें चलाने में सिद्धहस्त नहीं हैं। उन्हें बहुत देर तक साधते हैं, फिर उन्हें छोड़ते हैं। दूसरी ओर गोपियों के तरकस में प्रेम के अनगिनत तीर हैं। उनके तीरों में प्रवाह है, गति है। गोपियाँ उद्धव के योग-बाणों से आहत हैं, परन्तु विचलित नहीं होतीं। धैर्य बनाए रखती हैं, तीर पर तीर छोड़ती हैं। इससे अवाक हुए उद्धव गोपियों के संघर्ष कौशल को देखते ही रह जाते हैं। यहाँ उद्धव अपने ज्ञान योग को न चला सकने से विवश हो जाते हैं, शांत हो जाते हैं। इस तरह इस संघर्ष में गोपियाँ ही हावी दिखाई पड़ती हैं, प्रभावी दिखती हैं।

स्वाध्याय हेतु अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न

1. श्रीकृष्ण को 'हारिल की लकड़ी' कहने से गोपियों का क्या आशय था?
2. उद्धव के व्यवहार की तुलना किस-किस से की गई है और क्यों?
3. गोपियों ने कृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को किस तरह व्यक्त किया है?
4. गोपियों ने किन-किन उदाहरणों से उद्धव को उलाहने दिए हैं?
5. 'ते क्यों अनीति करें आपुन जे और अनीति छुड़ाए' में किससे अनीति की बात कही गई है और क्यों?
6. अब इन जोग सँदेसनि सुनि-सुनि, बिरहिनि बिरह दही।
चाहति हुतीं गुहारि जितहिं तैं, उत तैं धार बही।।
प्रस्तुत पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए।
7. गोपियों द्वारा 'राज-धर्म' क्यों याद दिलाना पड़ा?
8. गोपियों ने श्रीकृष्ण की बढ़ी बुद्धि पर किस तरह प्रहार किया है?

भूगोल के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़ें। (Also read these 👇 episodes of Geography.)
1. संसाधन किसे कहते हैं? | संसाधनों के प्रकार || Who Are The Resources?
2. जैव और अजैव संसाधन | Biotic And Abiotic Resources
3. नवीकरणीय और अनवीकरणीय संसाधन | Renewable And Non-Renewable Resources
4. मानव जीवन में संसाधनों का महत्व | Importance Of Resources In Human Life
5. संसाधनों का वर्गीकरण– स्वामित्व और पुनः पुर्ति के आधार पर | Classification Of Resources– On Ownership And Replenishment Basis

भूगोल के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़ें। (Also read these 👇 episodes of Geography.)
1. संसाधनों का वर्गीकरण – वितरण के आधार पर | Classification Of Resources – On Distribution Basis
2. संसाधनों का वर्गीकरण – प्रयोग के आधार पर | Classification Of Resources – Based On Use

भौतिक विज्ञान के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़ें। (Also read these 👇 episodes of Physics.)
1. मानव जीवन में ऊर्जा स्त्रोतों का महत्व | Importance Of Energy Sources In Human Life
2. अनवीकरणीय और नवीकरणीय ऊर्जा स्त्रोत | Non-Renewable And Renewable Energy Sources
3. जीवाश्म ईंधन क्या है? | What Is Fossil Fuel?
4. कोयला क्या है? | कोयले के प्रकार || What Is Coal? | Types Of Coal
5. पेट्रोलियम क्या है? | What Is Petroleum?

भौतिक विज्ञान के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़ें। (Also read these 👇 episodes of Physics.)
1. पेट्रोलियम परिष्करण का प्रभाजी आसवन | Fractional Distillation Of Petroleum Refining
2. सम्पीडित प्राकृतिक गैस | Compressed Natural Gas (CNG)
3. द्रव पेट्रोलियम गैस | Liquefied Petroleum Gas (LPG)
4. दहन और ज्वलन ताप | Combustion And Ignition Temperature
5. ईंधन का ऊष्मीय मान या कैलोरी मान | Calorific Value Of Fuel

भौतिक विज्ञान के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़ें। (Also read these 👇 episodes of Physics.)
1. अच्छे ईंधन का चयन कैसे करें? | How To Choose Good Fuel?
2. नाभिकीय ऊर्जा क्या है? | What Is Nuclear Energy?
3. नाभिकीय संलयन क्या है? | हाइड्रोजन बम || What Is Nuclear Fusion? | Hydrogen Bomb
4. नाभिकीय विखण्डन क्या है? | What Is Nuclear Fission?
5. नियंत्रित और अनियंत्रित श्रृंखला अभिक्रिया | Controlled And Uncontrolled Chain Reaction

कक्षा 9 क्षितिज (हिन्दी) के गद्य खण्ड के पाठ, उनके सारांश एवं अभ्यास
1. पाठ 1 'दो बैलों की कथा' पाठ, का सारांश, अभ्यास एवं व्याकरण
2. सम्पूर्ण कहानी- 'दो बैलों की कथा' - प्रेंमचन्द
3. दो बैलों की कथा (कहानी) प्रेंमचन्द
4. पाठ- 2 'ल्हासा की ओर' - यात्रावृत्त - राहुल सांकृत्यायन
5. पाठ- 2 'ल्हासा की ओर' (यात्रा-वृत्तान्त, लेखक- राहुल सांकृत्यायन), पाठ का सारांश, प्रश्नोत्तर, भाषा अध्ययन, रचना और अभिव्यक्ति (कक्षा 9 हिन्दी)
6. पाठ - 3 'उपभोक्तावाद की संस्कृति' (विषय हिन्दी गद्य-खण्ड कक्षा - 9) प्रश्नोत्तर अभ्यास
7. साँवले सपनों की याद– जाबिर हुसैन, प्रमुख गद्यांश एवं प्रश्नोत्तर।
8. नाना साहब की पुत्री देवी मैना को भस्म कर दिया गया — चपला देवी, Class 9th Hindi क्षितिज पाठ-5 अभ्यास व प्रश्नोत्तर
9. पाठ 6 'प्रेंमचंद के फटे जूते' (विषय- हिन्दी गद्य-खण्ड कक्षा- 9) पाठ का सारांश एवं प्रश्नोत्तर
10. पाठ- 7 'मेरे बचपन के दिन' (विषय- हिन्दी कक्षा- 9 गद्य-खण्ड) सारांश एवं प्रश्नोत्तर

कक्षा 9 क्षितिज (हिन्दी विशिष्ट) के पद्य खण्ड के पाठ, उनके सार, अभ्यास व प्रश्नोत्तर को पढ़ें।
1. पाठ 9 साखियाँ और सबद (पद) भावार्थ एवं प्रश्नोत्तर
2. पाठ 10 'वाख' भावार्थ एवं प्रश्नोत्तर
3. पाठ 11 'सवैये' भावार्थ एवं प्रश्नोत्तर
4. पाठ 12 'कैदी और कोकिला' भावार्थ एवं प्रश्नोत्तर
5. पाठ 13 'ग्रामश्री' भावार्थ एवं प्रश्नोत्तर
6. पाठ 14 चंद्र गहना से लौटती बेर केदारनाथ अग्रवाल भावार्थ एवं अभ्यास
7. पाठ - 15 'मेघ आए' (विषय - हिन्दी काव्य-खण्ड कक्षा- 9) सारांश, भावार्थ एवं प्रश्नोत्तर
8. पाठ - 16 'यमराज की दिशा' (विषय - हिन्दी काव्य-खण्ड कक्षा- 9) सारांश, भावार्थ एवं प्रश्नोत्तर
9. बच्चे काम पर जा रहे हैं' (पाठ - 17 विषय - हिन्दी काव्य-खण्ड कक्षा- 9) सारांश, भावार्थ एवं प्रश्नोत्तर

I Hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
rfhindi.com

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