विद्या ददाति विनयम्

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पाठ - 7 'नेताजी का चश्मा' (Netaji ka Chashma) (क्षितिज - 2 गद्य खण्ड) पाठ व सारांश कक्षा - 10 अभ्यास प्रश्नोत्तर रचना अभिव्यक्ति एवं व्याकरण

पाठ - 7 'नेताजी का चश्मा'
सम्पूर्ण पाठ

हालदार साहब को हर पंद्रहवें दिन कंपनी के काम के सिलसिले में उस कस्बे से गुजरना पड़ता था। कस्बा बहुत बड़ा नहीं था। जिसे पक्का मकान कहा जा सके वैसे कुछ ही मकान और जिसे बाज़ार कहा जा सके वैसा एक ही बाजार था। कस्बे में एक लड़कों का स्कूल, एक लड़कियों का स्कूल, एक सीमेंट का छोटा-सा कारखाना, दो ओपन एयर सिनेमाघर और एक ठो नगरपालिका भी थी। नगरपालिका थी तो कुछ-न-कुछ करती भी रहती थी। कभी कोई सड़क पक्की करवा दी. कभी कुछ पेशाबघर बनवा दिए, कभी कबूतरों की छतरी बनवा दी तो कभी कवि सम्मेलन करवा दिया। इसी नगरपालिका के किसी उत्साही बोर्ड या प्रशासनिक अधिकारी ने एक बार 'शहर' के मुख्य बाजार के मुख्य चौराहे पर नेताजी सुभाषचंद्र बोस की एक संगमरमर की प्रतिमा लगवा दी। यह कहानी उसी प्रतिमा के बारे में है, बल्कि उसके भी एक छोटे से हिस्से के बारे में।

पूरी बात तो अब पता नहीं, लेकिन लगता है कि देश के अच्छे मूर्तिकारों की जानकारी नहीं होने और अच्छी मूर्ति की लागत अनुमान और उपलब्ध बजट से कहीं बहुत ज्यादा होने के कारण काफ़ी समय ऊहापोह और चिट्ठी-पत्री में बरबाद हुआ होगा और बोर्ड की शासनावधि समाप्त होने की घड़ियों में किसी स्थानीय कलाकार को ही अवसर देने का निर्णय किया गया होगा, और अंत में कस्बे के इकलौते हाई स्कूल के इकलौते ड्राइंग मास्टर मान लीजिए मोतीलाल जी को ही यह काम सौंप दिया गया होगा, जो महीने भर में मूर्ति बनाकर 'पटक देने' का विश्वास दिला रहे थे।

जैसा कि कहा जा चुका है, मूर्ति संगमरमर की थी। टोपी की नोक से कोट के दूसरे बटन तक कोई दो फुट ऊँची। जिसे कहते हैं बस्टा और सुंदर थी। नेताजी सुंदर लग रहे थे। कुछ-कुछ मासूम और कमसिन फ़ौजी वर्दी में मूर्ति को देखते ही 'दिल्ली चलो' और 'तुम मुझे खून दो...' वगैरह याद आने लगते थे। इस दृष्टि से यह सफल और सराहनीय प्रयास था। केवल एक चीज़ की कसर थी जो देखते ही खटकती थी। नेताजी की आँखों पर चश्मा नहीं था। यानी चश्मा तो था, लेकिन संगमरमर का नहीं था। एक सामान्य और सचमुच के चश्मे का चौड़ा काला फ्रेम मूर्ति को पहना दिया गया था। हालदार साहब जब पहली बार इस कस्बे से गुजरे और चौराहे पर पान खाने रुके तभी उन्होंने इसे लक्षित किया और उनके चेहरे पर एक कौतुकभरी मुसकान फैल गई। वाह भई! यह आइडिया भी ठीक है। मूर्ति पत्थर की, लेकिन चश्मा रियल!

औप कस्बा छोड़कर आगे बढ़ गई तब भी हालदार साहब इस मूर्ति के बारे में ही सोचते रहे, और अंत में इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि कुल मिलाकर कस्बे के नागरिकों का यह प्रयास सराहनीय ही कहा जाना चाहिए। महत्त्व मूर्ति के रंग-रूप या कद का नहीं, उस भावना का है वरना तो देश भक्ति भी आजकल मचाक की चीज होती जा रही है।

दूसरी बार जब हालदार साहब उधर से गुजरे तो उन्हें मूर्ति में कुछ अंतर दिखाई दिया। ध्यान से देखा तो पाया कि चश्मा दूसरा है। पहले मोटे फ्रेमवाला चौकोर चश्मा था, अब तार के फ्रेमबाला गोल चश्मा है। हालदार साहब का कौतुक और बढ़ा। वाह भई। क्या आइडिया है मूर्ति कपड़े नहीं बदल सकती लेकिन चश्मा तो बदल हो सकती है।
तीसरी बार फिर नया चश्मा था।

हालदार साहब की आदत पड़ गई, हर बार कस्बे से गुजरते समय चौराहे पर रुकना, पान खाना और मूर्ति को ध्यान से देखना। एक बार जब कौतूहल दुर्दमनीय हो उठा तो पानवाले से ही पूछ लिया, क्यों भई क्या बात है? यह तुम्हारे नेताजी का चश्मा हर बार बदल कैसे जाता है?

पानवाले के खुद के मुँह में पान दुंसा हुआ था। वह एक काला मोटा और खुशमियाच आदमी था। हालदार साहब का प्रश्न सुनकर वह आँखों ही आँखों में हंसा उसकी द थिरकी। पीछे घूमकर उसने दुकान के नीचे पान थूका और अपनी लाल काली बचीसी दिखाकर बोला, कैप्टन चश्मेवाला करता है।
क्या करता है? हालदार साहब कुछ समझ नहीं पाए।
चश्मा चेंज कर देता है। पानवाले ने समझाया।
क्या मतलब? क्यों चेंज कर देता है? हालदार साहब अब भी नहीं समझ पाए।
कोई गिराक आ गया समझो। उसको चौड़े चौखट चाहिए। तो कैप्टन किदर से लाएगा?
तो उसको मूर्तिवाला दे दिया। उदर दूसरा बिठा दिया।

अब हालदार साहब को बात कुछ-कुछ समझ में आई। एक चश्मेवाला है जिसका नाम कैप्टन है। उसे नेताजी की बगैर चश्मेवाली मूर्ति बुरी लगती है। बल्कि आहत करती है, मानो चश्मे के बगैर नेताजी को असुविधा हो रही हो। इसलिए वह अपनी छोटी-सी दुकान में उपलब्ध गिने-चुने फ्रेमों में से एक नेताजी की मूर्ति पर फिट कर देता है। लेकिन जब कोई ग्राहक आता है और उसे वैसे ही फ्रेम की दरकार होती है जैसा मूर्ति पर लगा है तो कैप्टन चश्मेवाला मूर्ति पर लगा फ्रेम-संभवतः नेताजी से क्षमा माँगते हुए लाकर ग्राहक को दे देता है और बाद में नेताजी को दूसरा फ्रेम सौय देता है। वाह भई खूब क्या आइडिया है। लेकिन भाई एक बात अभी भी समझ में नहीं आई हालदार साहब ने पानवाले से फिर पूछा, नेताजी का ओरिजिनल चश्मा कहाँ गया?

पानवाला दूसरा पान मुँह में ठूंस चुका था। दोपहर का समय था, 'दुकान' पर भीड़-भाड़ अधिक नहीं थी। वह फिर आँखों ही आँखों में ईसा उसकी तोंद थिरकी। कत्थे की ठंडी फेंक, पीछे मुड़कर उसने नीचे पीक थूकी और मुसकराता हुआ बोला, मास्टर बनाना भूल गया।

पानवाले के लिए यह एक मजेदार बात थी लेकिन हालदार साहब के लिए चकित और द्रवित करने वाली यानी वह ठीक ही सोच रहे थे। मूर्ति के नीचे लिखा 'मूर्तिकार मास्टर मोतीलाल' वाकई कस्बे का अध्यापक था। बेचारे ने महीने भर में मूर्ति बनाकर पटक देने का वादा कर दिया होगा। बना भी ली होगी लेकिन पत्थर में पारदर्शी चश्मा कैसे बनाया जाए काँचवाला यह तय नहीं कर पाया होगा या कोशिश को होगी और असफल रहा होगा। या बनाते-बनाते 'कुछ और बारीको' के चक्कर में चश्मा टूट गया होगा या पत्थर का चश्मा अलग से बनाकर फिट किया होगा और वह निकल गया होगा। उफ़...!

हालदार साहब को यह सब कुछ बड़ा विचित्र और कौतुकभरा लग रहा था। इन्हीं खयालों में खोए-खोए पान के पैसे चुकाकर, चश्मेवाले की देश भक्ति के समक्ष नतमस्तक होते हुए वह जीप की तरफ चले, फिर रुके पीछे मुड़े और पानवाले के पास जाकर पूछा, क्या कैप्टन चश्मेवाला नेताजी का साथी है? या आजाद हिंद फौज का भूतपूर्व सिपाही?

पानवाला नया पान खा रहा था। पान पकड़े अपने हाथ को मुँह से डेढ़ इंच दूर रोककर उसने हालदार साहब को ध्यान से देखा, फिर अपनी लाल-काली बत्तीसी दिखाई और मुसकराकर बोला- नहीं साबा वो लंगड़ा क्या जाएगा फ़ौज में पागल है पागल वो देखो, बो आ रहा है। आप उसी से बात कर लो। फ़ोटो बोये उपवा दो उसका कहीं।

हालदार साहब को पानवाले द्वारा एक देशभक्त का इस तरह मजाक उड़ाया जाना अच्छा नहीं लगा। मुड़कर देखा तो अवाक् रह गए। एक बेहद बूढ़ा मरियल-सा लंगड़ा आदमी सिर पर गांधी टोपी और आँखों पर काला चश्मा लगाए एक हाथ में एक छोटी-सी संदूकची और दूसरे हाथ में एक बाँस पर देंगे बहुत से चश्मे लिए अभी-अभी एक गली से निकला था और अब एक बंद दुकान के सहारे अपना बाँस टिका रहा था। तो इस बेचारे की दुकान भी नहीं! फेरी लगाता है! हालदार साहब चक्कर में पड़ गए। पूछना चाहते थे, इसे कैप्टन क्यों कहते हैं? क्या यहाँ इसका वास्तविक नाम है? लेकिन पानवाले ने साफ़ बता दिया था कि अब वह इस बारे में और बात करने को तैयार नहीं। ड्राइवर भी बेचैन हो रहा था। काम भी था हालदार साहब जीप में बैठकर चले गए।

दो साल तक हालदार साहब अपने काम के सिलसिले में उस कस्बे से गुजरते रहे और नेताजी की मूर्ति में बदलते हुए चश्मों को देखते रहे। कभी गोल चश्मा होता, तो कभी चौकोर, कभी लाल, कभी काला, कभी धूप का चश्मा, कभी काँचों वाला गोगो चश्मा... पर कोई-न-कोई चश्मा होता जरूर... उस धूलभरी यात्रा में हालदार साहब को कौतुक और प्रफुल्लता के कुछ क्षण देने के लिए। फिर एक बार ऐसा हुआ कि मूर्ति के चेहरे पर कोई भी, कैसा भी चश्मा नहीं था। उस दिन पान की दुकान भी बंद थी। चौराहे की अधिकांश दुकानें बंद थीं।

अगली बार भी मूर्ति की आँखों पर चश्मा नहीं था। हालदार साहब ने पान खाया और धीरे से पानवाले से पूछा- क्यों भई, क्या बात है? आज तुम्हारे नेताजी की आँखों पर चश्मा नहीं है? पानवाला उदास हो गया। उसने पीछे मुड़कर मुँह का पान नीचे थूका और सिर झुकाकर अपनी धोती के सिरे से आँखें पोंछता हुआ बोला साहब! कैप्टन मर गया। और कुछ नहीं पूछ पाए हालदार साहब कुछ पल चुपचाप खड़े रहे, फिर पान के पैसे चुकाकर जीप में आ बैठे और रवाना हो गए।

बार-बार सोचते, क्या होगा उस कौम का जो अपने देश की खातिर घर-गृहस्थी - जवानी जिंदगी सब कुछ होम देनेवालों पर भी हँसती है और अपने लिए बिकने के मौके ढूँढ़ती है। दुखी हो गए। पंद्रह दिन बाद फिर उसी कस्बे से गुजरे। कस्बे में घुसने से पहले ही खयाल आया कि कस्बे की हृदयस्थली में सुभाष की प्रतिमा अवश्य ही प्रतिष्ठापित होगी, लेकिन सुभाष की आँखों पर चश्मा नहीं होगा... क्योंकि मास्टर बनाना भूल गया... और कैप्टन मर गया। सोचा, आज वहाँ रुकेंगे नहीं, पान भी नहीं खाएँगे, मूर्ति की तरफ़ देखेंगे भी नहीं, सीधे निकल जाएँगे। ड्राइवर से कह दिया, चौराहे पर रुकना नहीं, आज बहुत काम है, पान आगे कहीं खा लेंगे।

लेकिन आदत से मजबूर आँखें चौराहा आते हो मूर्ति की तरफ़ उठ गई । कुछ ऐसा देखा कि चीखे, रोको! जीप स्पीड में थी, ड्राइवर ने जोर से ब्रेक मारे रास्ता चलते लोग देखने लगे। जीप रुकते न रुकते हालदार साहब जीप से कूदकर तेज-तेज कदमों से मूर्ति की तरफ लपके और उसके ठीक सामने जाकर अटेंशन में खड़े हो गए।

मूर्ति की आँखों पर सरकंडे से बना छोटा-सा चश्मा रखा हुआ था, जैसा बच्चे बना लेते हैं। हालदार साहब भावुक हैं। इतनी सी बात पर उनकी आँखें भर आई।

लेखक परिचय―
स्वयं प्रकाश

स्वयं प्रकाश का जन्म सन् 1947 में इंदौर (मध्यप्रदेश) स्व' में हुआ। मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करके एक औद्योगिक प्रतिष्ठान में नौकरी करने वाले स्वयं प्रकाश का बचपन और नौकरी का बड़ा हिस्सा राजस्थान में बीता। ये वसुधा पत्रिका के संपादन से जुड़े रहे।

आठवें दशक में उभरे स्वयं प्रकाश आज समकालीन कहानी के महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं। उनके तेरह कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं जिनमें सूरज कब निकलेगा, आएँगे अच्छे दिन भी आदमी जात का आदमी और संघान उल्लेखनीय हैं। उनके बीच में विनय और ईंधन उपन्यास चर्चित रहे हैं। उन्हें पहल सम्मान बनमाली पुरस्कार, राजस्थान साहित्य अकादेमी पुरस्कार आदि पुरस्कारों से पुरस्कृत किया जा चुका है। इनका निधन 2019 में हुआ।‌

मध्यवर्गीय जीवन के कुशल चितेरे स्वयं प्रकाश की कहानियों में वर्ग शोषण के विरुद्ध चेतना है तो हमारे सामाजिक जीवन में जाति, संप्रदाय और लिंग के आधार पर हो रहे भेदभाव के खिलाफ़ प्रतिकार का स्वर भी है। रोचक किस्सागोई शैली में लिखी गई उनकी कहानियाँ हिंदी की वाचिक परंपरा को समृद्ध करती हैं।

पाठ का सारांश

'नेताजी का चश्मा' कहानी स्वयं प्रकाश ने लिखी है। इसमें हालदार साहब का हर पन्द्रहवें दिन कम्पनी के काम से एक छोटे से कस्बे से गुजरना होता था। कस्बे में स्कूल, बाजार, एक कारखाना तथा नगरपालिका थे। नगरपालिका कभी सड़क पक्की कराती, कभी शौचालय बनवाती, कभी-कभी कवि सम्मेलन कराती। एक बार नगरपालिका के एक उत्साही अधिकारी ने कस्बे के मुख्य बाजार के चौराहे पर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की संगमरमर की प्रतिमा लगवा दी। धन के अभाव के कारण स्कूल के ड्रॉइंग मास्टर मोतीलाल से मूर्ति बनवाई। फौजी वर्दी में बनी मूर्ति बहुत आकर्षक थी किन्तु उसमें नेताजी की आँखों पर चश्मा न था। उस पर सचमुच का चश्मा पहना दिया गया।

हालदार साहब पहली बार इस कस्बे से गुजरे तो चौराहे पर पान खाने रुके। उनकी नजर मूर्ति पर गई तो वे मुस्कराए-'यह आइडिया भी ठीक है, मूर्ति पत्थर की और चश्मा रीयल। जब हालदार साहब दोबारा उधर से निकले तो उन्होंने देखा इस बार चश्मा गोल फ्रेम का था। वे हर बार देखते कि चश्मा बदला होता है। उन्होंने पान वाले से पूछ ही लिया कि नेताजी का चश्मा हर बार कैसे बदल जाता है। पान वाले ने बताया कि चश्मा कॅप्टन बदल देता है। कैप्टन एक चश्मे वाला है। उसे बिना चश्मे की मूर्ति अच्छी नहीं लगती इसलिए अपनी छोटी दुकान में से एक चश्मा मूर्ति पर लगा देता है। हालदार साहब ने चश्मे वाले को मन ही मन नमन किया। उन्होंने पान वाले से पूछ लिया कि कैप्टन क्या नेताजी का साथी है। पान वाला बोला, 'नहीं साहब, वह लंगड़ा क्या जाएगा फौज में पागल है पागल। वो देखो वो आ रहा है।' पान वाले की यह बात हालदार साहब को अच्छी नहीं लगी। उन्होंने जब कैप्टन को देखा तो आश्चर्यचकित रह गए। वह मरियल-सा लंगड़ा बूढ़ा आदमी था। उसके सिर पर गाँधी टोपी तथा आँखों पर काला चश्मा था। एक हाथ में छोटी सी संदूकची और दूसरे में एक बाँस का डण्डा था जिसमें चश्मे टंगे थे।

लगभग दो साल तक कम्पनी के काम से हालदार साहब वहाँ से गुजरते रहे और मूर्ति पर बदलते चश्मे देखते रहे। परन्तु एक बार जब वहाँ से गुजरे तो देखा कि मूर्ति की आँखों पर चश्मा नहीं है। उन्होंने पान वाले से पूछा तो वह एकदम उदास होकर बोला-'कैप्टन मर गया।' यह सुनकर वे दुखी हुए। पन्द्रह दिन बाद फिर वहाँ से गुजरे तो सोच रहे थे कि मूर्ति पर चश्मा नहीं होगा। आदतवश उनकी नजर मूर्ति पर पड़ी तो आश्चर्यचकित होकर मूर्ति के सामने जाकर खड़े हो गए। मूर्ति की आँखों पर एक सरकंडे का बना छोटा-सा चश्मा लगा था, जिस तरह का छोटे बच्चे बनाते हैं। यह देखकर हालदार साहब की आँखें भर आईं।

प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1. प्रश्न 1. सेनानी न होते हुए भी चश्मे वाले को लोग कैप्टन क्यों कहते थे ?
उत्तर- कैप्टन चश्मेवाले में देशभक्ति का भाव कूट-कूट कर भरा है। यह देश के बलिदानियों के प्रति आदर का भाव रखता है। नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के प्रति उसके हृदय में सम्मान तथा श्रद्धा का भाव है। बिना चश्मे के नेताजी की मूर्ति उसे अच्छी नहीं लगती है। उसे लगता है कि बिना चश्मे के नेताजी को असुविधा हो रही होगी। उसके मन में देश के प्रति उसी तरह का लगाव है जो फौजियों में होता है। इन्हीं कारणों से लोग उसको कैप्टन कहते हैं।

प्रश्न 2. हालदार साहब ने ड्राइवर को पहले चौराहे पर गाड़ी रोकने के लिए मना किया था लेकिन बाद में तुरन्त रोकने को कहा-
(क) हालदार साहब पहले मायूस क्यों हो गए थे?
उत्तर― हालदार साहब पहले इसलिए मायूस हो गए थे कि उन्हें लगता था कि कैप्टन के मरने के बाद नेताजी की मूर्ति पर चश्मा लगाने वाला कोई नहीं होगा। उन्हें बिना चश्मा के नेताजी अच्छे नहीं लगते थे।

(ख) मूर्ति पर सरकंडे का चश्मा क्या उम्मीद जगाता है?
उत्तर― हालदार साहब ने देखा कि मूर्ति पर सरकंडे का वैसा ही चश्मा लगा है जैसा छोटे बच्चे सरकंडे से बनाया करते हैं। इससे उम्मीद जगती है कि यह सरकंडे का चश्मा किसी बच्चे ने लगाया होगा। बच्चे में देश भक्ति का भाव भविष्य के उज्ज्वल होने की उम्मीद जगाता है। बच्चों में देश-प्रेम और राष्ट्र भक्ति के भाव जग रहे हैं।

(ग) हालदार साहब इतनी सी बात पर भावुक क्यों हो उठे ?
उत्तर― हालदार साहब को लग रहा था कि नेताजी की मूर्ति बिना चश्मे के होगी किन्तु जब उन्होंने मूर्ति पर सरकंडे का चश्मा देखा तो उनके मन की निराशा उज्ज्वल आशा में बदल गई। उनकी समझ में आ गया कि बच्चों में देशप्रेम का भाव है। यह देश के भविष्य के लिए अच्छा संकेत है। यह सोचकर ही वे भावुक हो उठे और उनकी आँखें भर आईं।

प्रश्न 3. नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति को देखकर लेखक के मन में कौन-सी कमी खटकी?
उत्तर― चौराहे पर लगी नेताजी की मूर्ति को देखकर लेखक को सब बातें तो ठीक लगी परन्तु उन्हें एक बात खटकी कि नेताजी की आँखों पर संगमरमर का चश्मा नहीं था। सामान्य से चौड़े चश्मे का फ्रेम मूर्ति पर पहना दिया गया है।

प्रश्न 4. "वो लँगड़ा क्या जाएगा फौज में पागल है पागल।" कैप्टन के प्रति पान वाले की इस टिप्पणी पर अपनी प्रतिक्रिया लिखिए।
उत्तर― "वो लँगड़ा क्या जाएगा फौज में पागल है पागल।" यह टिप्पणी पान वाले की है जो अशिक्षित तथा अज्ञानी है। एक देशभक्त के प्रति ऐसी टिप्पणी सर्वथा अनुचित है। कैप्टन के जो गुण हैं वे उसके मान को बढ़ाने वाले हैं। लँगड़ा होना, निर्धन होना महत्त्वहीन है। महत्त्व उसके मन की महान भावनाओं का है। वह अपनी छोटी-सी दुकान से एक चश्मा मूर्ति पर लगाता है। यह उसके देशप्रेम को प्रकट करता है। मेरी दृष्टि में कैप्टन चश्मे वाला आदर तथा सम्मान का पात्र है।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 1.निम्नलिखित वाक्य पात्रों की कौन-सी विशेषता की ओर संकेत करते हैं-
(क) हालदार साहब हमेशा चौराहे पर रुकते और नेताजी को निहारते।
उत्तर― हालदार साहब जब भी कस्बे से गुजरते तो वे चौराहे पर रुककर पान खाते और नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की प्रतिमा को निहारते हैं। यह बात संकेत करती है कि उनके मन में देश-प्रेम का भाव है। उनके मन में देश के लिए बलिदान होने वाले नेताजी सुभाषचन्द्र के प्रति श्रद्धा का भाव है। वे नेताजी की आँखों पर सरकंडे का चश्मा देखकर बहुत प्रसन्न होते हैं क्योंकि उन्हें भावी पीढ़ी में देश-प्रेम के अंकुर नजर आते हैं। वे सच्चे राष्ट्र भक्त है।
(ख) पान वाला उदास हो गया। उसने पीछे मुड़कर मुँह का पान पीछे थूका और सिर झुकाकर अपनी धोती के सिरे से आँखें पोंछता हुआ बोला- साहब कैप्टन मर गया।
उत्तर― पान वाले के व्यवहार से लगता था कि वह मूर्ख है। उसमें देश-प्रेम या मानवता नहीं है। वह कैप्टन चश्मे वाले की मजाक बनाता था। किन्तु जब कैप्टन चश्मे वाला मर जाता है तो उसके मन में उसके प्रति आदर सम्मान का भाव है। उसकी आँखें भर आती हैं। वह दुःखी होकर हालदार साहब को कैप्टन के मरने की बात बताता है। इस व्यवहार से उसमें भी देश-प्रेम की झलक दिखाई देती है।
(ग) कैप्टन बार-बार मूर्ति पर चश्मा लगा देता था।
उत्तर― यद्यपि कैप्टन निर्धन तथा विकलांग था किन्तु उसमें सैनिक जैसे भाव थे। देश प्रेम की भावना उसके मन में कूट-कूटकर भरी है। नेताजी की मूर्ति बिना चश्मे के उसे आहत करती है, इसलिए अपनी संदूकची से एक फ्रेम निकालकर उस पर फिट कर देता है। वह नेताजी को पूरे देश में देखना चाहता है।

प्रश्न 2.कस्बों, शहरों, महानगरों के चौराहों पर किसी-न-किसी क्षेत्र के प्रसिद्ध व्यक्ति की मूर्ति लगाने का प्रचलन सा हो गया है-
(क) इस तरह की मूर्ति लगवाने के क्या उद्देश्य हो सकते हैं ?
उत्तर― कस्बों, शहरों और महानगरों के चौराहों पर ऐसे व्यक्तियों की मूर्ति लगवाने का प्रचलन हो गया है जिन्होंने देश, समाज आदि के लिए उत्कृष्ट कार्य किया हो ।
इस तरह की मूर्ति लगवाने का यह उद्देश्य होता है कि उस महान व्यक्तित्व से लोग प्रेरणा लें तथा स्वयं अच्छे कार्य करें। इस तरह के लोगों की स्मृति बनी रहे तथा लोग उनके बारे में चर्चा करें। ऐसी मूर्तियाँ देखकर लोगों के मन में श्रेष्ठ कार्य करने का भाव जाग्रत हो ।
(ख) आप अपने इलाके के चौराहे पर किस व्यक्ति की मूर्ति स्थापित करवाना चाहेंगे और क्यों ?
उत्तर― मैं अपने इलाके में किसी देशभक्त या महान साहित्यकार की मूर्ति लगवाना चाहूँगा। इसका कारण यह होगा कि उस मूर्ति को देखकर लोग प्रेरणा ले सकें तथा राष्ट्रहित या साहित्यहित के कार्य कर सकें।
(ग) उस मूर्ति के प्रति आपके एवं दूसरे लोगों के क्या उत्तरदायित्व होने चाहिए ?
उत्तर― चौराहों पर लगी मूर्तियों की नियमित देखभाल, साफ-सफाई आदि नहीं होती है। मूर्तियों पर धूल जमी रहती है, पक्षी बीट कर जाते हैं। आस-पास गन्दगी फैली रहती है। इसलिए मूर्तियों की देखरेख, साफ-सफाई तथा स्वच्छता रखना मेरा तथा दूसरे लोगों का उत्तरदायित्व है। हमें यह कार्य करना चाहिए।

प्रश्न 3. सीमा पर तैनात फौजी ही देशप्रेम का परिचय नहीं देते, हम सभी अपने दैनिक कार्यों में किसी-न-किसी रूप में देश-प्रेम प्रकट करते हैं; जैसे सार्वजनिक सम्पत्ति को नुकसान न पहुँचाना, पर्यावरण संरक्षण आदि। अपने जीवन-जगत से जुड़े ऐसे और कार्यों का उल्लेख कीजिए और उन पर अमल भी कीजिए।
उत्तर― देश की सीमा पर तैनात फौजियों का देश-प्रेम उत्कृष्ट होता है वे सर्दी-गर्मी आदि की परवाह किए बिना देश की रक्षा में लगे रहते हैं। किन्तु हम लोग भी किसी-न-किसी रूप में देश-प्रेम का परिचय देते ही रहते हैं। जैसे—सरकारी या सामाजिक सम्पत्ति की सुरक्षा करना, उसे क्षति न पहुँचाना, वृक्षारोपण करके पर्यावरण शुद्धि का कार्य करना, श्रमदान द्वारा सड़क का निर्माण कराना, मौहल्ले की सफाई कराना आदि। बिजली बचत के उपायों का पालन करना, पानी बचाना, गन्दगी न फैलाना, तोड़-फोड़ का विरोध करना आदि कार्य देश-प्रेम के परिचायक हैं जिन्हें हम स्वयं करते हैं तथा इनको करने के लिए दूसरों को प्रेरित करते हैं।

प्रश्न 4. निम्नलिखित पंक्तियों में स्थानीय बोली का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है, आप इन पंक्तियों को मानक हिंदी में लिखिए―
कोई गिराक आ गया समझो। उसको चौड़े चौखट चाहिए। तो कैप्टन किदर से लाएगा ? तो उसको मूर्तिवाला दे दिया। उदर दूसरा बिठा दिया।
उत्तर― मान लीजिए कोई ग्राहक आ गया। उसे चौड़ा फ्रेम चाहिए। तो कैप्टन कहाँ से लाएगा ? तो उत्तर- उसे मूर्तिवाला फ्रेम दे दिया और मूर्ति पर दूसरा फ्रेम लगा दिया।

प्रश्न 5. "भई खूब? क्या आइडिया है।" इस वाक्य को ध्यान में रखते हुए बताइए कि एक भाषा में दूसरी भाषा के शब्दों के आने से क्या लाभ होते हैं?
उत्तर― भाषा बहता नीर है। एक भाषा के बोलने वाले जब दूसरी भाषा के बोलने वालों के सम्पर्क में शब्दों के आने से भाषाओं का शब्द भण्डार आते हैं तो शब्दों का आदान-प्रदान स्वाभाविक है। इस प्रकार के बढ़ता है। भाव दूसरों तक आसानी से पहुँच जाता है। भाषा में चमत्कार आता है तथा बात रोचक बन जाती है। शब्दों के आने से भाषा सरल, सहज तथा बोधगम्य बन जाती है।

भाषा अध्ययन

प्रश्न 1. निम्नलिखित वाक्यों में निपात शब्द छाँटिए और उनसे नए वाक्य बनाइए―
(क) नगरपालिका थी तो कुछ-न-कुछ करती भी रहती थी।
उत्तर― निपात — कुछ-न-कुछ।
वाक्य― वह काम पर आता है और कुछ-न-कुछ बिगाड़ कर जाता है।
(ख) किसी स्थानीय कलाकार को ही अवसर देने का निर्णय किया गया होगा।
उत्तर― निपात— ही
वाक्य― परिश्रम से ही सफलता मिलती है।
(ग) यानी चश्मा तो था लेकिन संगमरमर का नहीं था।
उत्तर― निपात— तो
वाक्य― वह प्रयास तो करता था पर असफल रहता था।
(घ) हालदार साहब अब भी नहीं समझ पाए।
उत्तर― निपात— भी
वाक्य― जब भी मौका मिले, इस काम को कर डालो।
(ङ) दो साल तक हालदार साहब अपने काम के सिलसिले में उस कस्बे से गुजरते रहे।
उत्तर― निपात— में
वाक्य―बात-बात में टोकना अच्छा नहीं लगता है।

प्रश्न 2. निम्नलिखित वाक्यों को कर्मवाच्य में बदलिए―
(क) वह अपनी छोटी-सी दुकान में उपलब्ध गिने-चुने फ्रेमों में से नेताजी की मूर्ति पर फिट कर देता है।
उत्तर― उसके द्वारा अपनी छोटी-सी दुकान में उपलब्ध गिने-चुने फ्रेमों में से एक नेताजी की मूर्ति पर फिट कर दिया जाता था।
(ख) पान वाला नया पान खा रहा था।
उत्तर― पान वाले द्वारा नया पान खाया जा रहा था।
(ग) पान वाले ने साफ बता दिया था।
उत्तर― पान वाले द्वारा साफ बता दिया गया था।
(घ) ड्राइवर ने जोर से ब्रेक मारे।
उत्तर― ड्राइवर द्वारा जोर से ब्रेक मारा गया।
(ङ) नेताजी ने देश के लिए अपना सब कुछ त्याग दिया।
उत्तर― नेताजी द्वारा देश के लिए अपना सब कुछ त्याग दिया गया।
(च) हालदार साहब ने चश्मे वाले की देशभक्ति का सम्मान किया।
उत्तर― हालदार साहब द्वारा चश्मे वाले की देशभक्ति का सम्मान किया गया।

प्रश्न 3. नीचे लिखे वाक्यों को भाववाच्य में बदलिए―
(क) माँ बैठ नहीं सकती।
उत्तर― माँ से बैठा नहीं जाता।
(ख) मैं देख नहीं सकती।
उत्तर― मुझसे देखा नहीं जाता।
(ग) चलो, अब सोते हैं।
उत्तर― चलो अब सोया जाए।
(घ) माँ रो भी नहीं सकती।
उत्तर― माँ से रोया भी नहीं जाता।

पाठ्येत्तर सक्रियता

प्रश्न 1. लेखक का अनुमान है कि नेताजी की मूर्ति बनाने का काम मजबूरी में ही स्थानीय कलाकार को दिया गया―
(क) मूर्ति बनाने का काम मिलने पर कलाकार के क्या भाव रहे होंगे?
उत्तर- मूर्ति बनाने का काम मिलने पर कलाकार के भाव अपना दायित्व पूर्ण करने के रहे होंगे। क्योंकि कलाकार ड्रॉइंग मास्टर थे इसलिए उनसे लापरवाही की आशा नहीं की जाती है। अध्यापक में जिम्मेदारी का भाव होता है। यदि फ्रीलांस कलाकार होता तो उसके भाव ऊँचे होते काम को लटका सकता था।

(ख) हम अपने इलाके के शिल्पकार, संगीतकार, चित्रकार एवं दूसरे कलाकारों के काम को कैसे महत्त्व और प्रोत्साहन दे सकते हैं, लिखिए।
उत्तर- हम अपने इलाके के शिल्पकार, संगीतकार, चित्रकार आदि कलाकारों के काम को कई प्रकार महत्त्व और प्रोत्साहन दे सकते हैं।
(i) हम उनकी कला की जानकारी अन्य लोगों को देकर उन्हें काम दिलवा सकते हैं।
(ii) हम उनकी कला की प्रशंसा करके उन्हें प्रोत्साहित कर सकते हैं।
(iii) हम उनकी कला में सुधार के लिए उचित परामर्श दे सकते हैं।
(iv) कलाकार को कोई असुविधा या आवश्यकता हो तो उसे पूरा करने में सहायता कर सकते हैं।

प्रश्न 2.कैप्टन फैरी लगाता था।
फेरीवाले हमारे दिन-प्रतिदिन की बहुत सी जरूरतों को आसान बना देते हैं। फेरीवालों के योगदान व समस्याओं पर एक संपादकीय लेख तैयार कीजिए।
उत्तर― फेरीवाले फेरीवाले सामाजिक जीवन का महत्त्वपूर्ण अंग होते हैं। वे गली-गली, घर-घर घूमते हुए विभिन्न आवश्यकताओं की वस्तुएँ घर पर ही उपलब्ध कराते हैं। इस तरह उनका हमारे जीवन में महत्त्वपूर्ण योगदान है। हमें वस्तु लेने बाजार में नहीं जाना पड़ता है; हमारा समय तथा श्रम बचता है।
फेरीवाले सीमित सम्पत्ति तथा साधनों वाले होते हैं इसलिए उनको नित्य प्रति विभिन्न प्रकार की समस्याएँ आती रहती है। धन का अभाव उनकी प्रमुख समस्या है। इसका समाधान उनकी साख पर निर्भर करता है। जो फेरीवाले ईमानदार, बात वाले होते हैं उन्हें धन या उधार आसानी से मिल जाता है। परन्तु जो चालाक तथा बेईमान होते हैं उन्हें परेशानी रहती है। इसलिए फेरीवाले को सीमित लाभ कमाकर अपनी साख बनानी चाहिए। अपने ग्राहकों का विश्वास जीतना चाहिए।

प्रश्न 3.अपने घर के आस-पास देखिए और पता लगाइए कि नगरपालिका ने क्या-क्या काम करवाए हैं? हमारी भूमिका इनमें क्या हो सकती है ?
उत्तर― हमारे घर के आस-पास नगरपालिका ने जो काम कराये हैं उनमें हमारी महत्त्वपूर्ण भूमिका हो सकती है।
(i) नगरपालिका द्वारा बनवाए गए पार्क में हम नए-नए पौधे लगवायें, समय-समय पर खाद, गुड़ाई तथा पानी देने की व्यवस्था में यथासम्भव सहयोग करें। पार्क में हरियाली, पेड़-पौधों को सुरक्षित रखने में सहयोगी बनें।
(ii) गली में जो विद्युत व्यवस्था नगरपालिका ने कराई है उसे तोड-फोड़ से बचाएँ, समय पर बल्ब आदि जलाएँ और बन्द करें। विद्युत बचाने में सहयोग कर सकते हैं।
(iii) नगरपालिका ने जो कूड़ेदान रखवाए हैं उन्हीं में कूड़ा डालें तथा औरों से भी ऐसा करने को कहें ताकि घर के आस-पास सफाई रहे।
(iv) नगरपालिका द्वारा बैठने की बेंच आदि लगवाई गई हों तो उनको सुरक्षित रखने में सहयोगी बन सकते हैं।
(v) जो भी काम नगरपालिका द्वारा कराए गए हों उनका सदुपयोग करने के लिए लोगों को समझाएँ।

कक्षा 10 क्षितिज (हिन्दी) के पद्य एवं गद्य खण्ड के पाठ, उनके सारांश एवं अभ्यास
1. 10th हिन्दी (क्षितिज- 2 काव्य-खण्ड) पाठ 1 'पद' (सूरदास, पदों का अर्थ)
2. पाठ 1 'माता का अँचल' (हिन्दी सहायक वाचन - कृतिका) सारांश, शिवपूजन सहाय - अभ्यास (प्रश्नोत्तर)

कक्षा 9 क्षितिज (हिन्दी) के गद्य खण्ड के पाठ, उनके सारांश एवं अभ्यास
1. पाठ 1 'दो बैलों की कथा' पाठ, का सारांश, अभ्यास एवं व्याकरण
2. सम्पूर्ण कहानी- 'दो बैलों की कथा' - प्रेंमचन्द
3. दो बैलों की कथा (कहानी) प्रेंमचन्द
4. पाठ- 2 'ल्हासा की ओर' - यात्रावृत्त - राहुल सांकृत्यायन
5. पाठ- 2 'ल्हासा की ओर' (यात्रा-वृत्तान्त, लेखक- राहुल सांकृत्यायन), पाठ का सारांश, प्रश्नोत्तर, भाषा अध्ययन, रचना और अभिव्यक्ति (कक्षा 9 हिन्दी)
6. पाठ - 3 'उपभोक्तावाद की संस्कृति' (विषय हिन्दी गद्य-खण्ड कक्षा - 9) प्रश्नोत्तर अभ्यास
7. साँवले सपनों की याद– जाबिर हुसैन, प्रमुख गद्यांश एवं प्रश्नोत्तर।
8. नाना साहब की पुत्री देवी मैना को भस्म कर दिया गया — चपला देवी, Class 9th Hindi क्षितिज पाठ-5 अभ्यास व प्रश्नोत्तर
9. पाठ 6 'प्रेंमचंद के फटे जूते' (विषय- हिन्दी गद्य-खण्ड कक्षा- 9) पाठ का सारांश एवं प्रश्नोत्तर
10. पाठ- 7 'मेरे बचपन के दिन' (विषय- हिन्दी कक्षा- 9 गद्य-खण्ड) सारांश एवं प्रश्नोत्तर

कक्षा 9 क्षितिज (हिन्दी विशिष्ट) के पद्य खण्ड के पाठ, उनके सार, अभ्यास व प्रश्नोत्तर को पढ़ें।
1. पाठ 9 साखियाँ और सबद (पद) भावार्थ एवं प्रश्नोत्तर
2. पाठ 10 'वाख' भावार्थ एवं प्रश्नोत्तर
3. पाठ 11 'सवैये' भावार्थ एवं प्रश्नोत्तर
4. पाठ 12 'कैदी और कोकिला' भावार्थ एवं प्रश्नोत्तर
5. पाठ 13 'ग्रामश्री' भावार्थ एवं प्रश्नोत्तर
6. पाठ 14 चंद्र गहना से लौटती बेर केदारनाथ अग्रवाल भावार्थ एवं अभ्यास
7. पाठ - 15 'मेघ आए' (विषय - हिन्दी काव्य-खण्ड कक्षा- 9) सारांश, भावार्थ एवं प्रश्नोत्तर
8. पाठ - 16 'यमराज की दिशा' (विषय - हिन्दी काव्य-खण्ड कक्षा- 9) सारांश, भावार्थ एवं प्रश्नोत्तर
9. बच्चे काम पर जा रहे हैं' (पाठ - 17 विषय - हिन्दी काव्य-खण्ड कक्षा- 9) सारांश, भावार्थ एवं प्रश्नोत्तर

कक्षा 9 संस्कृत के पाठों व प्रश्नोत्तर पढ़ें।
1. पाठः प्रथमः 'भारतीवसन्तगीतिः' (विषय - संस्कृत कक्षा- 9) सारांश, भावार्थ एवं प्रश्नोत्तर
2. पाठः द्वितीयः 'स्वर्णकाकः' (विषय - संस्कृत कक्षा- 9) सारांश, भावार्थ एवं प्रश्नोत्तर
3. पाठः तृतीयः 'गोदोहनम्' विषय - संस्कृत (कक्षा- 9) सारांश, भावार्थ एवं प्रश्नोत्तर

हिन्दी भाषा के इतिहास से संबंधित इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।।
1. भाषा का आदि इतिहास - भाषा उत्पत्ति एवं इसका आरंभिक स्वरूप
2. भाषा शब्द की उत्पत्ति, भाषा के रूप - मौखिक, लिखित एवं सांकेतिक
3. भाषा के विभिन्न रूप - बोली, भाषा, विभाषा, उप-भाषा
4. मानक भाषा क्या है? मानक भाषा के तत्व, शैलियाँ एवं विशेषताएँ
5. देवनागरी लिपि एवं इसका नामकरण, भारतीय लिपियाँ- सिन्धु घाटी लिपि, ब्राह्मी लिपि, खरोष्ठी लिपि
6. विश्व की प्रारंभिक लिपियाँ, भारत की प्राचीन लिपियाँ

हिन्दी भाषा के इतिहास से संबंधित इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।।
1. हिन्दू (हिन्दु) शब्द का अर्थ एवं हिन्दी शब्द की उत्पत्ति
2. व्याकरण क्या है? अर्थ एवं परिभाषा, व्याकरण के लाभ, व्याकरण के विभाग
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ध्वनि एवं वर्णमाला से संबंधित इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।।
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2. वाणी - यन्त्र (मुख के अवयव) के प्रकार- ध्वनि यन्त्र (वाक्-यन्त्र) के मुख में स्थान
3. हिन्दी भाषा में स्वर और व्यन्जन || स्वर एवं व्यन्जनों के प्रकार, इनकी संख्या एवं इनमें अन्तर
4. स्वरों के वर्गीकरण के छः आधार
5. व्यन्जनों के प्रकार - प्रयत्न, स्थान, स्वरतन्त्रिय, प्राणत्व के आधार पर

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5. बलाघात या स्वराघात क्या है इसकी आवश्यकता, बलाघात के भेद

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5. विदेशी/विदेशज (आगत) शब्द एवं उनके उदाहरण
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5. वाचक, लाक्षणिक एवं व्यंजक शब्द
6. एकार्थी (एकार्थक) शब्द - जैसे आदि और इत्यादि वाक्य में प्रयोग
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I Hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
rfhindi.com

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