पाठ 1 'माता का अँचल' (हिन्दी सहायक वाचन - कृतिका) सारांश, शिवपूजन सहाय || अभ्यास (प्रश्नोत्तर) || Path 1 Mata ka anchal class 10th kritika hindi
रचना परिचय― माता का अँचल
शिवपूजन सहाय
यह अंश शिवपूजन सहाय के उपन्यास देहाती दुनिया से लिया गया है। सन् 1926 में प्रकाशित देहाती दुनिया हिंदी का पहला आंचलिक उपन्यास माना जाता है। इतना ही नहीं यह स्मरण-शिल्प में लिखा गया हिंदी का पहला उपन्यास भी माना जाता है। इसमें ग्रामीण जीवन का चित्रण ग्रामीण जनता की भाषा में किया गया है। लेखक ने उपन्यास की भूमिका में यह संकेत दिया है कि ठेठ से ठेठ देहाती या अपढ़ गँवार, निरक्षर हलवाए और मज़दूर भी बड़ी आसानी से इसे समझ सकें। आत्मकथात्मक शैली में रचे गए इस उपन्यास का कथा-शिल्प अत्यंत मौलिक और प्रयोगधर्मी है। शिशु चरित्र भोलानाथ कथानक का दृष्टि बिंदु है।
संकलित अंश में ग्रामीण अंचल और उसके चरित्रों का एक अनोखा चित्र है। बालकों के खेल, कौतूहल, माँ की ममता, पिता का दुलार, लोकगीत आदि अनेक प्रसंग इसमें शामिल हैं। शहर की चकाचौंध से दूर गाँव की सहजता को रचनाकार ने आत्मीयता से प्रस्तुत किया है। यहाँ बाल मनोभावों की अभिव्यक्ति करते-करते लेखक ने तत्कालीन समाज के पारिवारिक परिवेश का चित्रण भी किया है।
पाठ- 1 माता का अँचल
जहाँ लड़कों का संग, तहाँ बाजे मृदंग
जहाँ बुड्डों का संग, तहाँ खरचे का तंग
हमारे पिता तड़के उठकर, निबट नहाकर पूजा करने बैठ जाते थे। हम बचपन से ही उनके अंग लग गए थे। माता से केवल दूध पीने तक का नाता था। इसलिए पिता के साथ ही हम भी बाहर की बैठक में ही सोया करते। वह अपने साथ ही हमें भी उठाते और साथ ही नहला-धुलाकर पूजा पर बिठा लेते। हम भभूत का तिलक लगा देने के लिए उनको दिक करने लगते थे। कुछ हँसकर कुछ झुंझलाकर और कुछ डाँटकर वह हमारे चौड़े लिलार' में त्रिपुंड कर देते थे। हमारे लिलार में भभूत खूब खुलती थी। सिर में लंबी-लंबी जटाएँ थीं। भभूत रमाने से हम खासे 'बम भोला' बन जाते थे।
पिता जी हमें बड़े प्यार से 'भोलानाथ' कहकर पुकारा करते। पर असल में हमारा नाम था 'तारकेश्वरनाथ' हम भी उनको 'बाबूजी' कहकर पुकारा करते और माता को 'मइयाँ'।
जब बाबू जी रामायण का पाठ करते तब हम उनको बगल में बैठे-बैठे आइने में अपना मुँह निहारा करते थे। जब वह हमारी ओर देखते तब हम कुछ लजाकर और मुसकराकर आइना नीचे रख देते थे। वह भी मुसकरा पड़ते थे।
पूजा-पाठ कर चुकने के बाद वह राम-राम लिखने लगते। अपनी एक 'रामनामा बही' पर हज़ार राम-नाम लिखकर वह उसे पाठ करने की पोथी के साथ बाँधकर रख देते। फिर पाँच सौ बार कागज़ के छोटे-छोटे टुकड़ों पर राम-नाम लिखकर आटे की गोलियों में लपेटते और उन गोलियों को लेकर गंगा जी की ओर चल पड़ते थे।
उस समय भी हम उनके कंधे पर विराजमान रहते थे। जब वह गंगा में एक-एक आटे की गोलियाँ फेंककर मछलियों को खिलाने लगते तब भी हम उनके कंधे पर ही बैठे-बैठे हँसा करते थे। जब वह मछलियों को चारा देकर घर की ओर लौटने लगते तब बीच रास्ते में झुके हुए पेड़ों की डालों पर हमें बिठाकर झूला झुलाते थे।
कभी-कभी बाबू जी हमसे कुश्ती भी लड़ते। वह शिथिल होकर हमारे बल को बढ़ावा देते और हम उनको पछाड़ देते थे। यह उतान पड़ जाते और हम उनकी छाती पर चढ़ जाते थे। जब हम उनकी लंबी-लंबी मूँछें उखाड़ने लगते तब वह हँसते-हँसते हमारे हाथों को मूँछों से छुड़ाकर उन्हें चूम लेते थे। फिर जब हमसे खट्टा और मीठा चुम्मा माँगते तब हम बारी-बारी कर अपना बायाँ और दाहिना गाल उनके मुँह की ओर फेर देते थे। बाएँ का खट्टा चुम्मा लेकर जब वह दाहिने का मीठा चुम्मा लेने लगते तब अपनी दाढ़ी या मूँछ हमारे कोमल गालों पर गड़ा देते थे। हम झुंझलाकर फिर उनकी मूँछें नोचने लग जाते थे। इस पर वह बनावटी रोना रोने लगते और हम अलग खड़े-खड़े खिल-खिलाकर हँसने लग जाते थे।
उनके साथ हँसते-हँसते जब हम घर आते तब उनके साथ ही हम भी चौके पर खाने बैठते थे। वह हमें अपने ही हाथ से, फूल के एक कटोरे में गोरस और भात सानकर खिलाते थे। जब हम खाकर अफर' जाते तब मइयाँ थोड़ा और खिलाने के लिए हठ करती थी। वह बाबू जी से कहने लगती आप तो चार-चार दाने के कौर बच्चे के मुँह में देते जाते हैं; इससे वह थोड़ा खाने पर भी समझ लेता है कि हम बहुत खा गए आप खिलाने का ढंग नहीं जानते-बच्चे को भर-मुँह कौर खिलाना चाहिए।
जब खाएगा बड़े-बड़े कौर, तब पाएगा दुनिया में ठौर।
― देखिए, मैं खिलाती हूँ। मरदुए क्या जाने कि बच्चों को कैसे खिलाना चाहिए, और महतारी के हाथ से खाने पर बच्चों का पेट भी भरता है।
यह कह वह थाली में दही-भात सानती और अलग-अलग तोता मैना कबूतर, हंस, मोर आदि के बनावटी नाम से कौर बनाकर यह कहते हुए खिलाती जाती कि जल्दी खा लो, नहीं तो उड़ जाएँगे; पर हम उन्हें इतनी जल्दी उड़ा जाते थे कि उड़ने का मौका ही नहीं मिलता था।
जब हम सब बनावटी चिड़ियों को चट कर जाते थे तब बाबू जी कहने लगते- अच्छा. अब तुम 'राजा' हो जाओ खेलो।
बस, हम उठकर उछलने-कूदने लगते थे। फिर रस्सी में बँधा हुआ काठ का घोड़ा लेकर नंग-धड़ंग बाहर गली में निकल जाते थे।
जब कभी मइयाँ हमें अचानक पकड़ पाती तब हमारे लाख छटपटाने पर भी एक चुल्लू कड़वा तेल" हमारे सिर पर डाल ही देती थी। हम रोने लगते और बाबू जी उस पर बिगड़ खड़े होते; पर वह हमारे सिर में तेल बोथकर" हमें उबटकर ही छोड़ती थी। फिर हमारी नाभी और लिलार में काजल की बिंदी लगाकर चोटी गूँथती और उसमें फूलदार लट्टू बाँधकर रंगीन कुरता टोपी पहना देती थी। हम खासे 'कन्हैया' बनकर बाबू जी की गोद में सिसकते - सिसकते बाहर आते थे।
बाहर आते ही हमारी बाट जोहनेवाला बालकों का एक झुंड मिल जाता था। हम उन खेल के साथियों को देखते ही, सिसकना भूलकर, बाबू जी की गोद से उतर पड़ते और अपने हमजोलियों के दल में मिलकर तमाशे करने लग जाते थे।
तमाशे भी ऐसे-वैसे नहीं, तरह-तरह के नाटक ! चबूतरे का एक कोना ही नाटक घर बनता था। बाबू जी जिस छोटी चौकी पर बैठकर नहाते थे, वही रंगमंच बनती। उसी पर सरकंडे के खभों पर कागज का चंदोआ तानकर, मिठाइयों की दुकान लगाई जाती। उसमें चिलम के खोंचे पर कपड़े के थालों में ढेले के लड्डू, पत्तों की पूरी कचौरियाँ, गीली मिट्टी की जलेबियाँ, फूटे घड़े के टुकड़ों के बताशे आदि मिठाइयाँ सजाई जातीं। ठीकरों के बटखरे और जस्ते के छोटे-छोटे टुकड़ों के पैसे बनते। हमीं लोग खरीदार और हमीं लोग दुकानदार। बाबू जी भी दो-चार गोरखपुरिए पैसे खरीद लेते थे।
थोड़ी देर में मिठाई की दुकान बढ़ाकर हम लोग घरौंदा बनाते थे। धूल की मेड़ दीवार बनती और तिनकों का छप्पर। दातून के खंभे, दियासलाई की पेटियों के किवाड़, घड़े के मुँहड़े की चूल्हा-चक्की, दीए की कड़ाही और बाबू जी की पूजा वाली आचमनी कलछी बनती थी। पानी के घी, धूल के पिसान और बालू की चीनी से हम लोग ज्योनार " तैयार करते थे। हम लोग ज्योनार करते और हमीं लोगों की ज्योनार बैठती थी। जब पंगत बैठ जाती थी तब बाबू जी भी धीरे से आकर, पाँत के अंत में, जीमने" के लिए बैठ जाते थे। उनको बैठते देखते ही हम लोग हँसकर और घरौंदा बिगाड़कर भाग चलते थे। वह भी हँसते-हँसते लोट-पोट हो जाते और कहने लगते- फिर कब भोज होगा भोलानाथ?
कभी-कभी हम लोग बरात का भी जुलूस निकालते थे। कनस्तर का तंबूरा बजता, अमोले को घिसकर शहनाई बजायी जाती, टूटी चूहेदानी की पालकी बनती, हम समधी. बनकर बकरे पर चढ़ लेते और चबूतरे के एक कोने से चलकर बरात दूसरे कोने में जाकर दरवाजे लगती थी। वहाँ काठ की पटरियों से घिरे, गोबर से लिपे, आम और केले की टहनियों से सजाए हुए छोटे आँगन में कुल्हिए का कलसा रखा रहता था। वहीं पहुँचकर बरात फिर लौट आती थी। लौटने के समय, खटोली पर लाल ओहार डालकर, उसमें दुलहिन को चढ़ा लिया जाता था। लौट आने पर बाबू जी ज्यों ही ओहार उघारकर दुलहिन का मुख निरखने लगते, त्यों ही हम लोग हँसकर भाग जाते।
थोड़ी देर बाद फिर लड़कों की मंडली जुट जाती थी। इकट्ठा होते ही राय जमती कि खेती की जाए। बस, चबूतरे के छोर पर घिरनी गड़ जाती और उसके नीचे की गली कुआँ बन जाती थी। मूँज की बटी हुई पतली रस्सी में एक चुक्कड़ बाँध गराड़ी पर चढ़ाकर लटका दिया जाता और दो लड़के बैल बनकर 'मोट' खींचने लग जाते। चबूतरा खेत बनता, कंकड़ बीज और ठेंगा हल-जुआठा। बड़ी मेहनत से खेत जोते-बोए और पटाए जाते। फसल तैयार होते देर न लगती और हम हाथोंहाथ फसल काट लेते थे। काटते समय गाते थे―
ऊँच नीच में बई कियारी, जो उपजी सो भई हमारी।
फसल को एक जगह रखकर उसे पैरों से रौंद डालते थे। कसोरे का सूप बनाकर ओसाते और मिट्टी की दीए के तराजू पर तौलकर राशि तैयार कर देते थे। इसी बीच बाबू जी आकर पूछ बैठते थे इस साल की खेती कैसी रही भोलानाथ?
बस, फिर क्या, हम लोग ज्यों-का-त्यों खेत-खलिहान छोड़कर हँसते हुए भाग जाते थे। कैसी मौज की खेती थी।
ऐसे-ऐसे नाटक हम लोग बराबर खेला करते थे। बटोही भी कुछ देर ठिठककर हम लोगों के तमाशे देख लेते थे।
जब कभी हम लोग ददरी के मेले में जाने वाले आदमियों का झुंड देख पाते तब कूद-कूदकर चिल्लाने लगते थे―
चलो भाइयो ददरी, सतू पिसान की मोटरी।
अगर किसी दूल्हे के आगे-आगे जाती हुई ओहारदार पालकी देख पाते, तब खूब जोर से चिल्लाने लगते थे―
रहरी" में रहरी पुरान रहरी डोला के कनिया हमार मेहरी।
इसी पर एक बार बूढ़े वर ने हम लोगों को बड़ी दूर तक खदेड़कर ढेलों से मारा था। उस खसूट-खब्बीस की सूरत आज तक हमें याद है। न जाने किस ससुर ने वैसा जमाई ढूँढ़ निकाला था। वैसा घोड़ मुँहा आदमी हमने कभी नहीं देखा।
आम की फसल में कभी-कभी खूब आँधी आती है। आँधी के कुछ दूर निकल जाने पर हम लोग बाग की ओर दौड़ पड़ते थे। वहाँ चुन-चुनकर घुले-घुले 'गोपी' आम चावते थे।
एक दिन की बात है, आँधी आई और पट पड़ गयी। आकाश काले बादलों से ढक गया। मेघ गरजने लगे। बिजली कौंधने और ठंडी हवा सनसनाने लगी। पेड़ झूमने और जमीन चूमने लगे। हम लोग चिल्ला उठे―
एक पइसा की लाई, बाजार में छितराई, बरखा उधरे बिलाई।
लेकिन बरखा न रुकी; और भी मूसलाधार पानी होने लगा। हम लोग पेड़ों की जड़ से धड़ से सट गए, जैसे कुत्ते के कान में अँठई चिपक जाती है। मगर बरखा जमी नहीं, थम गई।
बरखा बंद होते ही बाग में बहुत-से बिच्छू नज़र आए। हम लोग डरकर भाग चले। हम लोगों में बैजू बड़ा ढीठ था। संयोग की बात, बीच में मूसन तिवारी मिल गए। बेचारे बूढ़े आदमी को सूझता कम था। बैजू उनको चिढ़ाकर बोला―
बुढ़वा बेईमान माँगे करैला का चोखा।
हम लोगों ने भी बैजू के सुर में सुर मिलाकर यही चिल्लाना शुरू किया। मूसन तिवारी ने बेतहाशा खदेड़ा। हम लोग तो बस अपने-अपने घर की ओर आँधी हो चले।
जब हम लोग न मिल सके तब तिवारी जी सीधे पाठशाला में चले गए। वहाँ से हमको और बैजू को पकड़ लाने के लिए चार लड़के 'गिरफ्तारी वारंट' लेकर छूटे। इधर ज्यों ही हम लोग घर पहुँचे, त्यों ही गुरु जी के सिपाही हम लोगों पर टूट पड़े। बैजू तो नौ-दो ग्यारह हो गया; हम पकड़े गए। फिर तो गुरु जी ने हमारी खूब खबर ली।
बाबू जी ने यह हाल सुना। वह दौड़े हुए पाठशाला में आए। गोद में उठाकर हमें पुचकारने और फुसलाने लगे। पर हम दुलारने से चुप होनेवाले लड़के नहीं थे। रोते-रोते उनका कंधा आँसुओं से तर कर दिया। वह गुरु जी की चिरौरी करके हमें घर ले चले। रास्ते में फिर हमारे साथी लड़कों का झुंड मिला। वे जोर से नाचते और गाते थे―
माई पकाई गरर गरर पूआ, हम खाइब पूआ, ना खेलब जुआ।
फिर क्या था, हमारा रोना-धोना भूल गया। हम हठ करके बाबू जी की गोद से उतर पड़े और लड़कों की मंडली में मिलकर लगे वही तान-सुर अलापने। तब तक सब लड़के सामनेवाले मकई के खेत में दौड़ पड़े। उसमें चिड़ियों का झुंड चर रहा था। वे दौड़-दौड़कर उन्हें पकड़ने लगे, पर एक भी हाथ न आई। हम खेत से अलग ही खड़े होकर गा रहे थे―
राम जो की चिरई, राम जी का खेत, खा लो चिरई, भर-भर पेट हमसे कुछ दूर बाबू जी और हमारे गाँव के कई आदमी खड़े होकर तमाशा देख रहे थे और यही कहकर हँसते थे कि 'चिड़िया की जान जाए, लड़कों का खिलौना'। सचमुच 'लड़के और बंदर पराई पीर नहीं समझते।'
एक टीले पर जाकर हम लोग चूहों के बिल से पानी उलीचने लगे। नीचे से ऊपर पानी फेंकना था। हम सब थक गए। तब तक गणेश जी के चूहे की रक्षा के लिए शिव जी का साँप निकल आया। रोते-चिल्लाते हम लोग बेतहाशा भाग चले! कोई औधा गिरा. कोई अटाचिट । किसी का सिर फूटा, किसी के दाँत टूटे। सभी गिरते पड़ते भागे। हमारी सारी देह लहूलुहान हो गई। पैरों के तलवे काँटों से छलनी हो गए।
हम एक सुर से दौड़े हुए आए और घर में घुस गए। उस समय बाबू जी बैठक के. ओसारे में बैठकर हुक्का गुड़गुड़ा रहे थे। उन्होंने हमें बहुत पुकारा पर उनकी अनसुनी करके हम दौड़ते हुए मइयाँ के पास ही चले गए। जाकर उसी की गोद में शरण ली।
'महयाँ' चावल अमनिया कर रही थी। हम उसी के आँचल में छिप गए। हमें डर से काँपते देखकर वह जोर से रो पड़ी और सब काम छोड़ बैठी अधीर होकर हमारे भय का कारण पूछने लगी। कभी हमें अंग भरकर दबाती और कभी हमारे अंगों को अपने आँचल से पोंछकर हमें चूम लेती। बड़े संकट में पड़ गई।
झटपट हल्दी पीसकर हमारे घावों पर थोपी गई। घर में कुहराम मच गया। हम केवल धीमे सुर से "सी...स... साँ" कहते हुए महयाँ के आँचल में लुके चले जाते थे। सारा शरीर थर-थर काँप रहा था। रोंगटे खड़े हो गए थे। हम आँखें खोलना चाहते थे; पर वे खुलती न थीं। हमारे काँपते हुए ओंठों को मइयाँ बार-बार निहारकर रोती और बड़े लाड़ से हमें गले लगा लेती थी।
इसी समय बाबू जी दौड़े आए। आकर झट हमें मइयाँ की गोद से अपनी गोद में लेने लगे। पर हमने मइयाँ के आँचल की प्रेम और शांति के चंदोवे की छाया न छोड़ी...।
पाठ का सारांश
शिवपूजन सहाय द्वारा रचित 'माता का अँचल' नामक पाठ वात्सल्य रस से परिपूर्ण है। प्रस्तुत पाठ में शैशव-काल के क्रिया-कलापों को चित्रित किया गया है। माता-पिता के स्नेह तथा शिशु मंडली द्वारा मिल-जुलकर खेले जाने वाले खेलों का बड़ा ही मनोरम वर्णन लेखक ने किया है। लेखक ने स्पष्ट किया है कि शिशु का अधिकांश समय भले ही पिता के साथ बीता हो, भले ही अधिक स्नेह पिता से मिला हो लेकिन आपदाओं में शिशु को माँ के अँचल में ही शरण मिलती है। यह सच है कि 'माँ का अँचल' इतना विशाल है कि वह अपने बच्चे पर मुसीबत नहीं आने देती, वह सब कुछ झेलते हुए अपने शिशु की रक्षा करती है। वास्तव में माँ का हृदय कितना कोमल है, वह कितनी स्नेहमयी है।
पिता द्वारा मिले पूजा-संस्कार― लेखक अपने शैशव काल से ही पिता के साथ सुबह जल्दी उठकर नहा-धोकर पूजा में बैठता था। वह अपने माथे पर अपने पिता से त्रिपुंड लगवाता था। लम्बी जटाओं के कारण वह एक दम बम भोला लगता था। पिता जी उसे भोलानाथ कहा करते थे। लेखक अपने पिता को 'बाबूजी' तथा माँ को 'मँइया' कहा करता था। जब लेखक के पिता रामायण पाठ करते थे तो लेखक शीशे में अपना मुँह देखा करता था। पिता जी अपनी राम-नाम बही पर हजार राम-नाम लिखा करते थे। फिर कागज के टुकडों पर 500 बार राम-नाम लिखकर आटे की गोलियों में लपेटकर मछलियों को गोलियाँ खिलाने गंगा की ओर चल देते थे और मैं पिता के कंधों पर बैठा मुस्कराता रहता था।
बड़े लाड़-प्यार से भोजन करना― पिताजी अपने ही साथ फूल के कटोरे में गोरस और भात सानकर खिलाते थे। माँ और खिलाने की हठ किया करती थी। वह कहती थी―
"जब खाएगा बड़े-बड़े कौर, तब पाएगा दुनिया में ठौर।"
आप खाना खिलाना क्या जानें? बच्चे का पेट तो माँ के हाथों भरता है। तब माँ दही-भात सानकर तोता, मैना, कबूतर, हंस और मोर का नाम लेकर खिलाती चली जाती थी। फिर रस्सी में बँधा लकड़ी का घोड़ा लेकर गली में खेलने चला जाता। माँ उसके बालों में तेल लगाकर, चोटी गूँथकर, माथे पर बिंदी लगाकर, चोटी में फूलदार लटटू बाँधकर, रंगीन कुरता और टोपी पहनाकर ही भेजती थी।
तरह-तरह के खेलकूद― रोते-सिसकते हुए जब भी लड़कों का झुंड मिल जाता, वे एक साथ मिलकर दुकान-दुकान खेलते, थोड़ी देर बाद कागज, मिट्टी, लकड़ी, माचिस आदि से घर बनाते। मिट्टी, घास का ही भोजन बनाते, पंगत बैठती और खाने के लिए खाना परोसा जाता । कभी-कभी पंगत में बैठे पिताजी को देखकर सब हँस देते थे। कभी-कभी तो बारात निकाली जाती। चूहेदानी की पालकी बनती, कनस्तर का ढोल बजता, अमोले की शहनाई बनती। दूल्य बकरे पर बैठकर एक कोने से दूसरे कोने तक जाता।
कभी-कभी खेती करने का भी नाटक किया जाता था दो बच्चे बैल बनकर हल खींचते कंकड़ के बीज बोते । थोड़ी देर बाद फसल काट ली जाती। उसे पैरों से रौंदते फिर मिट्टी के दिये। को तराजू बनाकर फसल तौली जाती। इस प्रकार के अनेक खेल-खेले जाते थे।
चिढ़ाने की सजा ― एक दिन आंधी के बाद जोर की बारिश हुई। बिजली कौंधने लगी। तेज हवा के कारण पेड़ों की डालें जमीन को छूने लगीं।
वे चिल्लाए―
एक पइसा की लाई, बाजार में छितराई, बरखा उधरे बिलाई।
परंतु वर्षा मूसलाधार बढ़ती गई। बच्चे पेड़ों की जड़ से सट गए। वर्षा बंद होने पर वहाँ बहुत से बिच्छू निकल आए। बच्चे भागे, संयोग से रास्ते में मूसन तिवारी नामक बूढ़ा मिल गया। बैजू ने उसे चिढ़ाया―
बुढ़वा बेईमान माँगे करैला का चोखा।
मूसन तिवारी उनके पीछे पड़ गया। सारे बच्चे भाग गए। मूसन तिवारी पाठशाला पहुँच गए। उन्होंने बैजू और लेखक को पकड़ मँगाया। बैजू तो भाग गया लेकिन लेखक पकड़ा गया। लेखक के पिता विद्यालय पहुँचे। उसे गोद में उठाकर पुचकारने लगे और फुसलाने लगे। लेखक ने रो-रोकर उनका कंधा आँसुओं से गीला कर दिया। रास्ते में बच्चों का झुंड दिख गया। लेखक पिता की गोद से उतरकर बच्चों के साथ मिल गया और मकई के खेत में घुसकर चिड़िया उड़ाने लगे। हमें चिड़िया उड़ाते गाँव के लोग हँसते हुए कहने लगे―
"चिड़िया की जान जाए लड़कों का खिलौना।"
माँ की गोद में शरण एक बार टीले पर चुहे के बिल में पानी उलीचने लगे। पानी उलीचने पर चूहा तो निकला नहीं, साँप निकल आया। हम डर-कर राते-चिल्लाते भागे और माँ के अंचल में शरण ली माँ सब कुछ छोड़कर भय का कारण पूछने लगी। वे मुझे बार-बार सहलाती, अपने हाथों से सीने में दबा लेती। घर में कुहराम मच गया। सारा शरीर काँप रहा था। मेरे काँपते होठों को देखकर माँ रोती और बड़े लाड़ से गले लगाती। इसी बीच बाबूजी दौड़े आए माँ की गोद से मुझे लेने लगे, लेकिन मैंने माँ के आँचल को न छोड़ा।
लेखक परिचय
शिवपूजन सहाय का जन्म सन् 1893 में बिहार के भोजपुर जिले के उनवाँस गाँव में हुआ। आपका बचपन का नाम भोलानाथ था। आपने गाँव की पाठशाला में प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। दसवीं पास करके आप बनारस में नकलनवीस हो गए। महात्मा गाँधी से प्रभावित होकर आपने नौकरी छोड़ दी और स्वाधीनता आंदोलन में सक्रिय हो गए। सन् 1963 में आपका देहांत हो गया।
इनकी रचनाओं में 'वे दिन वे लोग', 'देहाती दुनिया', बिम्ब प्रतिबिम्ब', 'मेरा जीवन', 'स्मृतिशेष', 'ग्राम सुधार', 'हिंदी भाषा और साहित्य', 'विभूति' आदि प्रमुख हैं। उन्होंने 'जागरण', 'माधुरी', हिमालय, 'मतवाला' आदि पत्र-पत्रिकाओं में संपादन कार्य किया। वे अपने समय में प्रसिद्ध साहित्यकार रहे शिवपूजन रचनावली में इनकी सभी रचनाएँ प्रकाशित हैं।पाठ का सार संक्षेप
शिवपूजन सहाय द्वारा लिखित 'माता का अँचल' में बच्चे के सही विकास के लिए माता-पिता दोनों के वात्सल्य की आवश्यकता को दर्शाया है। तारकेश्वरनाथ को पिता प्यार से भोलानाथ कहते थे। भोलानाथ का बचपन से ही जितना जुड़ाव पिता से था उतना माँ से नहीं। पिता के साथ सोता तो पिता ही उसे नहलाते, सुलाते, घुमाते, खिलाते थे। पिता के साथ भोलानाथ भोजन कर लेता तो माँ उसे तोता, मैना, कबूतर, मोर आदि के नाम से बनाए गए दही-भात के गोले खिलाती थी। माँ को वह बहुत प्यारा था। वे उसको सजाकर कन्हैया बना देती। अपने साथ के बच्चों के साथ भोलानाथ नाटक करते, मिठाई की दुकान सजाते, घरोंदा बनाकर चूल्हा-चक्की करते। दावत होती तो पिताजी भी आ बैठते बारात चढ़ती, विदा होकर बहू आती तो पिताजी दुल्हन का मुँह देखने आते, सब बच्चे हँसकर भाग जाते। एक दिन बच्चे आम के बाग में खेल रहे थे। मूसलाधार वर्षा होने लगी। वर्षा बंद होने पर निकलने वाले बिच्छुओं को देखकर बच्चे भागने लगे। रास्ते में वृद्ध तिवारी को एक बच्चे ने चिढ़ा दिया। तिवारी जी ने पाठशाला में गुरुजी से शिकायत कर दी। गुरुजी के भेजे चार बच्चे भोलानाथ को पकड़कर ले गए जो उस पर डाँट पड़ी। पिताजी को पता चला तो गुरुजी से प्रार्थना कर भोलानाथ को छुड़ाकर घर ला रहे थे कि वे रास्ते में खेलते मिले बच्चों के साथ खेलने लगे सब बच्चे एक मक्का के खेत में चिड़ियाँ पकड़ते पकड़ते चूहे के बिल में पानी डालने लगे बिल में से साँप ने मुँह निकाला कि सभी बच्चे गिरते-पड़ते चोट खाते घरों को भाग लिए। पिता बैठे हुए हुक्का पी रहे थे पर भोलानाथ उनके पास न रुके। सीधे मइया के अंचल में जा छिपे।
शब्दार्थ
अँचल = गोद, आँचल।
मृदंग = ढोलक, एक तरह का वाद्य यंत्र।
तड़के = भोर, सवेरा।
भभूत = राख।
दिक् करना = परेशान करना।
लिलार = ललाट, मस्तक।
त्रिपुंड = एक प्रकार का तिलक जिसमें ललाट पर तीन आड़ी या अर्ध चंद्राकार रेखाएँ बनाई जाती हैं।
निहारा = देखा।
रमाने = रचाने, लगाने।
पोथी = ग्रन्थ, किताब।
उतान = पीठ के बल लेटना।
फूल = एक प्रकार की मिश्र धातु जो चमकदार होती है।
गोरस = गाय का दूध।
अफर जाना = पेट भर जाना।
ठौर = स्थान, जगह, थाह।
मरदुए = आदमी।
ठीकरा = मिट्टी का टुकड़ा।
बोधकर = सराबोर कर।
बाट जोहना = इंतजार करना।
हमजोली = साथी।
चंदोआ = छोटा शामियाना।
बटखरा = वस्तुएँ तौलने का बाट।
घरौंदा = घर, निवास स्थान।
ज्योनार = भोज, दावत।
जीमने = खाने के लिए।
पाँत = पंक्ति।
तंबूरा = एक वाद्य यंत्र।
अमोला = गुठली से उगता हुआ आम का छोटा-सा पौधा।
ओहार = पर्दे के लिए डाला हुआ कपड़ा।
निरखना = देखना।
कसोरा = मिट्टी का बना छोटा कटोरा।
मोट = पानी खींचने के लिए बना चमड़े का बड़ा-सा थैला।
कियारी = छोटा खेत।
ओसाना = भूसा-अनाज को अलग-अलग करना।
बटोही = राही। पटाना-सींचना।
बेतहाशा = वेग से।
रहरी = अरहर।
नौ दो ग्यारह होना = भाग जाना।
चिरौरी = विनती।
छलनी होना = बिंध जाना।
पराई-पीर = दूसरों का दर्द।
लहूलुहान होना = खून से लथपथ होना।
ओसारा = बरामदा।
कुहराम मचना = शोर मच जाना।
ठिठककर = चौंककर।
पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर
प्र. 1. प्रस्तुत पाठ के आधार पर यह कहा जा सकता है कि बच्चे का अपने पिता से अधिक जुड़ाव था, फिर भी विपदा के समय वह पिता के पास न जाकर माँ की शरण लेता है। आपकी समझ से इसकी क्या वजह हो सकती है?
अथवा
माँ के प्रति अधिक लगाव न होते हुए भी विपत्ति के समय भोलानाथ माँ के अंचल में ही प्रेम और शांति पाता है। इसका आप क्या कारण मानते हैं?
उत्तर― यह सच है कि बच्चे (लेखक) को अपने पिता से बहुत लगाव था। उसके पिता उसका लालन-पालन ही नहीं करते थे अपितु उसके संग दोस्तों जैसा व्यवहार भी करते थे। लेकिन माँ का स्नेह हृदयस्पर्शी होता है। यही कारण है कि विपदा के समय शिशु पिता के पास न जाकर माँ के पास जाता है। माँ की गोद में सुरक्षा के साथ-साथ वात्सल्य स्नेह की पूर्ण अनुभूति करता है।
प्र. 2. आपके विचार से भोलानाथ अपने साथियों को देखकर सिसकना क्यों भूल जाता है?
उत्तर― वास्तव में भोलानाथ को अपने साथियों के साथ खेलने में अधिक आनंद मिलता था, क्योंकि सबके सब उसी की उम्र के, आदतों और विचारों वाले थे। जब वह अपने साथियों से मिल जाता तो उनकी शरारतें, मसखरी, हुल्लड़बाजी और मस्ती देखकर सब कुछ भूल जाता था। यहाँ तक कि साथियों के बीच सिसकने या रोने से हीनता का अनुभव होता हैं, अतः (लेखक) वह साथियों के बीच सिसकना और रोना भूल जाता है।
प्र. 3. भोलानाथ और उसके साथियों के खेल और खेलने की सामग्री आपके खेल और खेलने की सामग्री से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर― आज जमाना बदल चुका है। आज के माता-पिता अपने बच्चों की हर आवश्यकताओं का ध्यान रखते हैं। आज के माता-पिता अपने बच्चों को दूर गलियों में खेलने की अनुमति नहीं देते हैं। न ही नंग-धड़ंग घूमने की अनुमति देते हैं। भोलानाथ के समय में पास-पड़ोस से लेकर दूर तक आत्मीय संबंध थे। न कोई डर था न कोई फिक्र। बच्चे धूल में खेलकर आनंद लेते थे। आज बच्चे बाजार से खरीदी वस्तुओं, खेल-खिलौनों से खेलते हैं। खेलने के लिए उनकी समय-सीमा तय कर दी जाती है। बच्चों को धूल-मिट्टी में खेलने से मना किया जाता है। बरसात में अगर बच्चे बाहर रह जाते हैं तो मां-बाप की जान ही निकल जाती है। आज का युग पहले की तुलना में वास्तव में बनावटी और रसहीन हो गया है।
प्र. 4. पाठ में आए ऐसे प्रसंगों का वर्णन कीजिए जो आपके दिल को छू गए हों?
उत्तर― पाठ का सबसे रोमांचक प्रसंग वह है जब साँप बच्चों के पीछे पड़ जाता है तब वे बच्चे किस प्रकार गिरते-पड़ते माँ के अँचल में छिपकर सहारा लेते हैं। यह प्रसंग पाठक को झकझोर देता है।
पाठ में गुदगुदाने वाले प्रसंग भी अनेक हैं। विशेष रूप से बच्चे के पिता का मित्रतापूर्वक बच्चों के खेल में शामिल होना मन को छू लेता है। जैसे ही बच्चे खेती-खेती, शादी, भोज, दुकान-दुकान आदि खेल खेलते हैं, बच्चे (लेखक) का पिता बच्चा बनकर खेल का आनंद लेता है। पिता का इस प्रकार बच्चा बन जाना बहुत ही सुखद अनुभव है, जो सभी पाठकों को गुदगुदा देता है।
प्र. 5. इस उपन्यास अंश में तीस के दशक की ग्राम्य-संस्कृति का चित्रण है। आज की ग्रामीण संस्कृति में आपको किस तरह के परिवर्तन दिखाई देते हैं?
उत्तर― आज की ग्रामीण संस्कृति काफी परिवर्तित है। आज पुरुषों की सामूहिक कार्यप्रणाली, आत्मीय स्नेह समाप्त हो गया है, मात्र दिखावा रह गया है। कुछ परिवर्तन निम्नवत् हैं―
(i) आज की नई संस्कृति बच्चों को धूल-मिट्टी में खेलने से बचाती है जिससे आज के बच्चे धरती की गोद से वंचित हो रहे हैं।
(ii) घरों के बाहर घूमने-फिरने व खुली हवा के लिए मैदान भी नहीं रहे। लोग डिब्बे जैसे घरों में रह रहे हैं।
(ii) आज घर सिमट गए हैं। घरों के आगे चबूतरों का प्रचलन समाप्त हो गया है, जहाँ लोग बैठकर गपशप करते थे।
(iv) आज बच्चों के खेल व खेल सामग्री बदल चुकी हैं।
खेल-सामग्री मँहगी होने के कारण कुछ बच्चे खेलों से ही वंचित रह जाते हैं।
प्र. 6. पाठ पढ़ते-पढ़ते आपको भी अपने माता-पिता का लाड़-प्यार याद आ रहा होगा। अपनी इन भावनाओं को डायरी में अंकित कीजिए।
उत्तर― छात्र स्वयं अपने स्व-अनुभव से करें।
प्र. 7. यहाँ माता-पिता का बच्चे के प्रति जो वात्सल्य व्यक्त हुआ है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर― शिवपूजन सहाय द्वारा रचित 'माँ का अंचल' में माता-पिता के वात्सल्य का बहुत । सरस और मनमोहक वर्णन हुआ है। बच्चे के पिता अपने बच्चे के साथ माँ जैसा प्यार करते हैं। पिता का अपने साथ बच्चे को नहलाना-धुलाना, पूजा में साथ बैठाना, शिशु ही की सज्जा-शृंगार करना, झूला झुलाना आदि बहुत मनोहारी दृश्य उत्पन्न करता है। पिता के साथ लड़ना, बच्चे के द्वारा पिता की मूँछों को पकड़ना, इस पर बनावटी रोना तथा शिशु का हँस पड़ना मनोहारी लगता है। माँ के द्वारा बच्चे को गोरस और भात-तोता, कबूतर, , कौआ आदि का नाम लेकर खिलाना, चोटी बनाना, तिलक लगाना, शिशु शृंगार करना, यह सब पाठक को आनंदित कर देता है। ये सभी दृश्य पाठक को शैशव की याद दिलाते हैं।
प्र. 8. 'माता का अँचल' शीर्षक की उपयुक्तता बताते हुए कोई अन्य शीर्षक सुझाएँ।
उत्तर― इस पाठ के लिए 'माता का अँचल' शीर्षक की उपयुक्तता सार्थक सिद्ध नहीं होती है। प्रस्तुत पाठ में लेखक के बचपन की तीन विशेषताएँ हैं जो वर्णित की गई हैं―
(i) बच्चे का पिता के साथ लगाव।
(ii) शैशव काल की अद्भुत क्रीड़ाएँ।
(ii) माँ का वात्सल्य।
'माता का अँचल' उपर्युक्त तीनों में केवल अंतिम को ही व्यक्त करता है। इसका अन्य शीर्षक हो सकता है―
(i) बचपन के वे दिन।
(ii) कोई लौटा दे मेरे रस-भरे दिन।
(ii) मेरा शैशव।
प्र. 9. बच्चे माता-पिता के प्रति अपने प्रेम को कैसे अभिव्यक्त करते हैं?
उत्तर― बच्चे अपने माता-पिता के प्रति अपने प्रेम को उनके साथ रहकर, उनकी दी गई शिक्षा में रुचि लेकर, उनके साथ खेलकर, उनकी गोद में या कंधे पर बैठकर प्रकट करते हैं। इसके साथ ही बच्चे अपने माता-पिता की जन्म वर्षगाँठ, शादी की सालगिरह पर तोहफे देकर प्रेम प्रकट करते हैं।
प्र. 10. इस पाठ में बच्चों की जो दुनिया रची गई है, वह आपके बचपन की दुनिया से किस तरह भिन्न है?
उत्तर― हमारा बचपन इस पाठ में वर्णित बचपन से पूरी तरह भिन्न है। प्रस्तुत पाठ में जो बच्चों की दुनिया रची गई है, उसकी पृष्ठभूमि पूर्णतः ग्रामीण जीवन पर आधारित है। हमें अपने पिता का ऐसा लाड़-प्यार नहीं मिला, कारण-मँहगाई का जमाना, आय कम और उस पर परिवार का बोझ। पहले के बच्चे दिन भर मनमौजी होकर मस्ती में बच्चों की टोली में निर्द्वन्द्व होकर खेलते थे। आज चारों ओर अपहरण के भय से हमें खेलने के लिए दूर जाने की अनुमति न मिल पाने के कारण हम खेलों से वंचित रह जाते हैं। आज यह सब बदल गया है। पाँच साल का होते ही पढ़ाई का बोझ सिर पर पड़ गया। 90% से कम अंक लाने पर सजा का भय, खेलने के समय-सीमा में कमी, खुले मैदान में जाकर घूमने की मनाही आदि सब कुछ हो गया। मैं अपनी मौज-मस्ती को इन सबके आगे रौंदता चला आया हूँ। मुझे तो कभी हुल्लड़बाजी करने का मौका ही नहीं मिला। अब तो ऐसा लगता है, शायद मेरा बचपन अब बुढ़ापे में आए, अपने नाती-पोतों के साथ खेल सकूँ।
प्र. 11. फणीश्वरनाथ रेणु और नागार्जुन की आंचलिक रचनाओं को पढ़िए।
उत्तर― छात्र पुस्तकालय से पुस्तक लेकर पढ़ें।
परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
(क) लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. "माता का अंचल' नामक पाठ में निहित जीवन मूल्यों की चर्चा कीजिए।
उत्तर― 'माता का अंचल' वात्सल्य पर आधारित पाठ है। इसमें सबसे बड़ा जीवन मूल्य है अपनी संतान से अथाह प्रेम माताएँ अपने बच्चों के जन्म से लेकर पालन-पोषण तक अपना सारा कुछ समर्पित कर देती हैं। वे अपने बच्चे के सुख में अपने सुख की अनुभूति करती हैं। माँ का यह वात्सल्य-त्याग, बलिदान और तपस्या पर आधारित होता है। यही बलिदान बच्चों को अपने माता-पिता की सेवा के लिए तैयार करता है।
प्रश्न 2. शिशु (लेखक) का नाम भोलानाथ कैसे पड़ा?
उत्तर― शिशु का मूल नाम तारकेश्वर नाथ था। तारकेश्वर के पिता स्वयं भोलेनाथ अर्थात् शिव के भक्त थे। पूजा के समय अपने समीप बैठाकर, माथे पर भभूत और त्रिपुंडाकार तिलक लगाकर लंबी जटाओं वाले शिशु (लेखक) से कहते बन गया भोलेनाथ फिर तारकेश्वर न कहकर भोलेनाथ कहकर पुकारने लगे और नाम पड़ गया भोलेनाथ।
प्रश्न 3. 'माता का अंचल' पाठ के शीर्षक की सार्थकता किस घटना में निहित है लिखिए।
उत्तर― साँप से भयभीत बालक जब भागकर माँ के अँचल में छिप जाता है और स्वयं को सुरक्षित अनुभव करता है तो 'मी का अंचल' का बोध होता है। वह शीर्षक सचमुच सार्थक है। इस पाठ में माँ के वात्सल्य का ही वर्णन है।
प्रश्न 4. लेखक किस डर से माँ के आँचल में आ दुबका?
उत्तर― जब साँप ने लेखक और उसके साथियों पर फुंकार मारी तो वे भयभीत हो गए। लेखक भय के कारण भागकर माँ के आँचल में आ दुबका।
प्रश्न 5. साँप के डर से बच्चे कैसे भागे?
उत्तर― जब बच्चों ने साँप को फुंकार मारते और क्रोधित होते देखा तो वे सब डरकर भागे। किसी को कुछ भी सूझ नहीं रहा था। सभी बच्चे काँटों, ककड़ों आदि की परवाह न करते हुए गिरते-पड़ते भाग रहे थे। किसी के पैर में चोट आई तो किसी के हाथ और सिर में। सभी का शरीर खून से लथपथ हो गया था।
(ख) दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. भोलानाथ के पिताजी की पूजा के कौन-कौन से अंग थे?
उत्तर― भोलानाथ के पिताजी की पूजा के चार अंग थे―
(i) भगवान शंकर की विधिवत् पूजा करना।
(ii) रामायण का पाठ करना।
(iii) 'रामनाम वही' पर राम-राम लिखना।
(iv) इसके अतिरिक्त छोटे-मोटे कागज पर राम-नाम लिखकर उन कागजों को आटे की गोली में लपेटकर उन गोलियों को गंगा में फेंककर मछलियों को खिलाना।
प्रश्न 2. बाल-स्वभाव पर पाठ के आधार पर विचार प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर― बाल-स्वभाव में कोई भी सुख-दुःख स्थाई नहीं होता है। बच्चे अपने मन के अनुकूल स्थितियों को देखकर बड़े से बड़े दुःख को भूलकर सामान्य हो जाते हैं। उन्हें खेल प्रिय होते हैं। वे स्नेह को पहचानते हैं। भोलानाथ माँ के उबटन पर सिसकता है, ऐसे ही गुरु जी द्वारा सजा देने पर रोता है परन्तु तुरंत ही बालकों की टोली देखकर वह सिसकना बंद कर देता है और खेलने में मस्त हो जाता है। कहने का तात्पर्य है- बाल-स्वभाव निश्छल होता है।
प्रश्न 3. 'माता का अँचल' पाठ के आधार पर पिता की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर― 'माता का अँचल' नामक पाठ में पिता मृदुल स्वभाव के थे। वे ईश्वर के परम भक्त, और परम स्नेही थे। वे प्रतिदिन नित्यक्रिया के पश्चात स्नान आदि करने के बाद, भगवान की पूजा भक्ति करने के लिए बैठ जाते थे। पूजा के स्थान पर ही बैठकर हजार बार राम-नाम लिखते थे। राम-नाम लिखकर आटे की गोलियों में उन छोटे-छोटे कागज के टुकड़ों को लपेट कर गंगा में जाकर मछलियों को खिला आते थे। यह उनका भक्त-स्वभाव था। वे शिशुओं की तरह ही भोले और स्नेही थे। बच्चों के खेलों में वे सम्मिलित हो जाते थे। खूब हँसी करते थे। अपने पुत्र के प्रति उनमें अगाध स्नेह था। थे । वे एक माँ की तरह अपने बच्चों का लालन-पालन करने में नहीं झिझकते।
प्रश्न 4. 'माता का अँचल' पाठ में बच्चों के विविध खेलों का उल्लेख है। आज के बाल जीवन में ऐसे खेलों की कमी आने के कारणों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर― 'माता का अँचल' नामक पाठ में लेखक ने बच्चों द्वारा खेले जाने वाले विविध खेलों का वर्णन किया है, लेकिन आज वे खेल नदारद हो गए हैं। आज नगर में रहने वाले बच्चे ऐसे खेलों से काफी दूर हो गए । आज माता-पिता अपने बच्चों को पैदा होते ही पढ़ाकू, कमाऊ और सयाना बनाने में सक्रिय हो गए हैं। वे बच्चों को बात-बात पर खेलने के लिए मना करते हैं। खेलने को वे समय गँवाना कहते हैं। यही कारण है कि आजकल ऐसे खेलों की बहुतायत कमी हो गई है।
(ग) मूल्यपरक प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. बालक संकट के क्षण में पिता के पास न जाकर माता के पास क्यों जाता है ? 'माता का अंचल' पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर― 'माता का अंचल' पाठ बाल-मनोविज्ञान का बहुत सुंदर उद्घाटन करता है। यद्यपि पिता शरीर से बलवान होते हैं, अतः वे बच्चे को अधिक अच्छी सुरक्षा दे सकते हैं. फिर भी बच्चे पिता के पास न जाकर अपनी माँ की गोद में शरण लेना पसंद करते हैं। इसका कारण यह है कि माँ की गोद में जैसी ममता होती है, लाइ-दुलार होता है वही उसके जख्मों को भरकर सुरक्षा दे सकता है। बालक भोलानाथ सॉप के भय से सुरक्षा चाहता था। वह ऐसे सुरक्षित स्थान में छिप जाना चाहता था, जहाँ साँप उ ढूँढ न सके। इसके लिए भोलानाथ को माँ के अँचल से सुरक्षित स्थान कोई नहीं लगा। माँ के हाथों के स्पर्श से उसे सहलाना और लोरी गाकर या प्यार भरे वचनों से दुलारना उसे बहुत सुरक्षा देता है।
प्रश्न 2. बच्चे पक्षियों, चूहों या अन्य पशुओं के साथ निर्ममतापूर्ण व्यवहार करते हैं। उनके इस व्यवहार को आप क्रूरता कहेंगे या मनोरंजन ? पाठ के आधार पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर― बच्चे अबोध होते हैं। उनमें अच्छे या बुरे का ज्ञान नहीं होता। उनका हर क्रिया-कलाप मनोरंजन के लिए होता है। बच्चे जब किसी पालतू पशु, पक्षी, चूहों, कीड़े-मकोड़े आदि को पकड़ते हैं, मारते हैं या परेशान करते हैं, तो उनका एकमात्र ध्येय मनोरंजन करना ही होता है। वे उनके हाव-भाव, प्रतिक्रिया देखकर हँसना चाहते हैं, आनंद उठाना चाहते हैं। उन्हें कष्ट पहुँचने का उन्हें तनिक भी ज्ञान नहीं होता। मात्र मनोरंजन होता है, उनका तो बस एक मात्र खेल ही होता है। उनकी शरारत हिंसात्मक नहीं होती। अतः हम उन्हें केवल समझा सकते हैं, उन्हें क्रूर नहीं कह सकते।
अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न
1. 'माँ का अँचल' पाठ के आधार पर लेखक के पिता की विशेषताएँ लिखिए।
2. घर में पूजा-पाठ का माहौल होने से बच्चों पर क्या सकारात्मक प्रभाव पड़ता है? 'माता का अँचल' पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
3. 'माँ का अँचल' पाठ में बच्चों की जो दुनिया रची गई है, वह आपकी दुनिया से कैसे भिन्न है?
4. पिता के आने पर खेल खेलते बच्चे भाग क्यों जाते हैं?
5. भोलानाथ के पिता में एक प्रकार की भावुकता है। आप उस भावुकता को पंसद करते हैं या नहीं- अपने अनुभवों के आधार पर टिप्पणी कीजिए।
6. साँप के डर से सब बच्चे कैसे भागे?
7. बच्चों द्वारा की गई कौन-सी शरारत उन्हें महँगी पड़ी?
कक्षा 10 क्षितिज (हिन्दी) के पद्य एवं गद्य खण्ड के पाठ, उनके सारांश एवं अभ्यास
10th हिन्दी (क्षितिज- 2 काव्य-खण्ड) पाठ 1 'पद' (सूरदास, पदों का अर्थ)
कक्षा 9 क्षितिज (हिन्दी) के गद्य खण्ड के पाठ, उनके सारांश एवं अभ्यास
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4. जरा दृष्टि दोष और दृष्टि वैषम्य | Presbyopia And Astigmatism
5. आँखों की संरचना का सचित्र वर्णन | Pictorial Description Of Eye Structure
भौतिक विज्ञान के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़ें। (Also read these 👇 episodes of Physics.)
1. प्रकाशीय यन्त्र क्या होते हैं? | What Are Optical Instruments?
2. सूक्ष्मदर्शी और दूरदर्शी क्या होते हैं? | What Are Microscopes And Telescopes?
3. सरल सूक्ष्मदर्शी का चित्र सहित वर्णन | Simple Microscope With Diagram
4. संयुक्त सूक्ष्मदर्शी की संरचना, रेखाचित्र और कार्यविधि | Structure, Diagram And Procedure Of Compound Microscope
5. खगोलीय दूरदर्शी का चित्र सहित वर्णन | Astronomical Telescope With Diagram
भौतिक विज्ञान के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़ें। (Also read these 👇 episodes of Physics.)
1. प्रकाश का वर्णक्रम क्या है? | प्रकाश का वर्ण विक्षेपण || What Is The Spectrum Of Light? | Dispersion Of Light
2. प्रकाश के प्राथमिक वर्ण और मिश्र वर्ण | Primary Colours And Composite Colours Of Light
3. पूरक वर्ण (रंग) क्या होते हैं? | What Are Complementary Colours?
4. वस्तुएँ रंगीन क्यों दिखाई देती हैं? | Why Do Objects Appear Colourful?
5. वर्णक क्या है? | What Is Pigment?
भूगोल के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़ें। (Also read these 👇 episodes of Geography.)
1. संसाधन किसे कहते हैं? | संसाधनों के प्रकार || Who Are The Resources?
2. जैव और अजैव संसाधन | Biotic And Abiotic Resources
3. नवीकरणीय और अनवीकरणीय संसाधन | Renewable And Non-Renewable Resources
4. मानव जीवन में संसाधनों का महत्व | Importance Of Resources In Human Life
5. संसाधनों का वर्गीकरण– स्वामित्व और पुनः पुर्ति के आधार पर | Classification Of Resources– On Ownership And Replenishment Basis
भूगोल के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़ें। (Also read these 👇 episodes of Geography.)
1. संसाधनों का वर्गीकरण – वितरण के आधार पर | Classification Of Resources – On Distribution Basis
2. संसाधनों का वर्गीकरण – प्रयोग के आधार पर | Classification Of Resources – Based On Use
भौतिक विज्ञान के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़ें। (Also read these 👇 episodes of Physics.)
1. मानव जीवन में ऊर्जा स्त्रोतों का महत्व | Importance Of Energy Sources In Human Life
2. अनवीकरणीय और नवीकरणीय ऊर्जा स्त्रोत | Non-Renewable And Renewable Energy Sources
3. जीवाश्म ईंधन क्या है? | What Is Fossil Fuel?
4. कोयला क्या है? | कोयले के प्रकार || What Is Coal? | Types Of Coal
5. पेट्रोलियम क्या है? | What Is Petroleum?
भौतिक विज्ञान के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़ें। (Also read these 👇 episodes of Physics.)
1. पेट्रोलियम परिष्करण का प्रभाजी आसवन | Fractional Distillation Of Petroleum Refining
2. सम्पीडित प्राकृतिक गैस | Compressed Natural Gas (CNG)
3. द्रव पेट्रोलियम गैस | Liquefied Petroleum Gas (LPG)
4. दहन और ज्वलन ताप | Combustion And Ignition Temperature
5. ईंधन का ऊष्मीय मान या कैलोरी मान | Calorific Value Of Fuel
भौतिक विज्ञान के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़ें। (Also read these 👇 episodes of Physics.)
1. अच्छे ईंधन का चयन कैसे करें? | How To Choose Good Fuel?
2. नाभिकीय ऊर्जा क्या है? | What Is Nuclear Energy?
3. नाभिकीय संलयन क्या है? | हाइड्रोजन बम || What Is Nuclear Fusion? | Hydrogen Bomb
4. नाभिकीय विखण्डन क्या है? | What Is Nuclear Fission?
5. नियंत्रित और अनियंत्रित श्रृंखला अभिक्रिया | Controlled And Uncontrolled Chain Reaction
I Hope the above information will be useful and
important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण
होगी।)
Thank you.
R F Temre
rfhindi.com
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